जोधपुर. कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक लोकसभा में पास हो चुका है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 370 पर फैसला आने के बाद राज्यसभा में इस विधेयक पर चल चर्चा हुई, जिसमें गृहमंत्री अमित शाह ने देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू पर कश्मीर विलय के कार्य को बखूबी ढंग से नहीं करने का आरोप लगाया. इस दौरान उन्होंने लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की भी जमकर तारीफ की. इसी कड़ी में उन्होंने जोधपुर का जिक्र करते हुए इस रियासत को भारत में विलय के सरदार पटेल के कार्य को सराहा.
गृहमंत्री शाह ने राज्यसभा में कहा कि जब देश में देशी रियासतों के विलय की बात आई तो पंडित नेहरू ने कश्मीर को विलय करने का जिम्मा अपने हाथ में लिया था, जबकि सरदार पटेल को हैदराबाद, जूनागढ़, जोधपुर सहित अन्य रियासतों को शामिल करने की जिम्मेदारी मिली थी. नेहरू अपने काम में पूरी तरह सफल नहीं हुए और उसे अधूरा छोड़ दिया, जबकि सरदार पटेल ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया. उन्होंने हैदराबाद और जोधपुर जैसी रियासतों को भारत में शामिल किया.
आजादी से 4 दिन पहले जोधपुर का विलय : मारवाड़ जैसी बड़ी रियासत के 1949 में वृहत राजस्थान में शामिल होने से पहले इसे भारत में विलय किया गया था. आजादी से चार दिन पहले यानी 11 अगस्त 1947 को जोधपुर रियासत भारत में शामिल हुई. उस दौरान काफी उथल-पुथल हुई थी, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है. दरअसल, जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह भारत के बजाय पाकिस्तान में मिलना चाहते थे. जिस पर मारवाड़ ही नहीं, बल्कि देश की जनता, स्वतंत्रता सेनानी और जनप्रतिनिधि भी सकते में आ गए. हालांकि, जोधपुर के इतिहासकार मानते हैं कि हनवंत सिंह एक महाराजा होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे. उनका लक्ष्य था कि जोधपुर को भारत में विशेष दर्जा मिले, इसके लिए उन्होंने कई मांगें रखी थी. वो मांगें नहीं मानने पर उन्होंने पाकिस्तान में मिल जाने की बात कही थी. जबकि वे और उनके पिता उम्मेद सिंह यह निर्णय ले चुके थे कि वे भारत में ही रहेंगे, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी जून 1947 में मृत्यु हो गई थी.
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भोपाल से संपर्क, माउंटबेटन से मुलाकात : उम्मेद सिंह के बाद रियासत की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी. उस समय बीकानेर और जैसलमेर रियासत भोपाल नवाब के संपर्क में थी. नवाब के सलाहकार सर जफरउल्लाह खान ने हनवंत सिंह से मुलाकात कर पाकिस्तान में शामिल होने की बात कही. उन्होंने हनवंत सिंह से कहा था कि अगर आप पाकिस्तान में मिलते हैं तो जिन्ना आपकी सभी शर्तें मानने के लिए खाली पेपर पर हस्ताक्षर करने को तैयार है. इसके बाद उन्होंने जिन्ना से दिल्ली में मुलाकात की थी, लेकिन उसी दिन इंपिरियल होटल में सरदार पटेल के विश्वस्त वीपी मेनन भी महाराजा हनवंतसिंह से मिले. उन्हें पता चला कि जैसलमेर के महाराज कुमार व हनवंतसिंह जिन्ना से मिल चुके हैं.
पत्रकार लैरी कॉलिंस और लैपियर की लिखी किताब 'फ्रिडम एट मिड नाइट' के हिंदी वर्जन के पेज 171-172 में इस पूरी घटना का जिक्र किया गया है, जिसमें बताया गया है कि मेनन ने माउंटबेटन को हनवंत सिंह से मिलने के लिए तैयार किया था. माउंट बेटन ने महाराजा हनवंत सिंह से बात कर उन्हें उनके पिता व सरदार पटेल के संबंधों के बारे में बताया. इस पर महाराज हनवंत सिंह भारत में विलय होने के लिए तैयार हो गए. उस किताब के अनुसार, चर्चा के बाद माउंटबेटन कमरे से बाहर निकल गए और अब कमरे में मेनन और हनवंत सिंह अकेले रह गए. हस्ताक्षर करने के लिए महाराजा ने जो पेन निकाला, उसने गन का रूप ले लिया. महाराजा ने उसे मेनन पर तान दिया. माउंटबेटन ने वापस आकर उनसे गन छीन ली. वो पेन रूपी गन बाद में माउंटबेटन अपने साथ ही ले गए और एक संग्राहालय में दे दिया.
जैसलमेर के राजा के साथ की चर्चा : हनवंत सिंह के सलाहकार और जोधपुर रियासत के सबसे बड़े अधिकारी ओंकार सिंह बाबरा ने अपनी पुस्तक 'एक महाराजा की अंतर्कथा' में जिक्र किया था कि दरअसल वो गन नहीं पेन ही था, बस उसका रूप गन जैसा हो गया था. बाबरा ने अपनी किताब में लिखा कि मेनन भी महाराजा हनवंत सिंह की विशेष शर्तें मानने को तैयार थे. मेनन की किताब 'इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट' के पेज 80 पर उन्होंने लिखा है कि महाराज ने जो रियायतें बताई थी, उनको लेकर मेनन ने कहा था कि जो आप चाहते हैं वो असंभव है. तब महाराजा ने कहा था कि जिन्ना खाली पेपर दे रहे हैं. इस पर मेनन ने कहा कि आप धोखा खा जाएंगे. इस घटना के बाद महाराजा हनवंत सिंह और जैसलमेर महाराजकुमार तीन दिन के लिए जोधपुर आए. उस समय हिंदू रियासत के मुस्लिम देश में शामिल होने पर भविष्य की परेशानियों पर चर्चा हुई. तीन दिन बाद 11 अगस्त को दिल्ली में हनवंत सिंह ने भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.