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शेखावाटी की 'सायरा बानो' की त्याग, प्रेम और बलिदान की कहानी...जो देती है नौजवानों को प्रेरणा - शहीद

भारत देश का इतिहास वीरों और वीरांगनाओं की गाथाओं से भरा है. उन्हीं के त्याग, बलिदान और संघर्ष के बलबूते हमें आजादी मिली और आज भी सुरक्षित रहते हैं. झुंझुनूं जिले के हजारों वीरों ने भी देश सेवा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं. जिनकी गाथा सुनकर गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है. जिले के धनूरी गांव की वीरांगना सायरा बानो की कहानी भी त्याग, प्रेम और बलिदान की है.

त्याग, प्रेम और बलिदान की कहानी...
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Published : Jul 21, 2019, 5:55 PM IST

झुंझुनूं. प्रदेश के झुंझुनूं जिले से हर साल सैकड़ों जवान देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होते हैं. करीब 450 से ज्यादा जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. करगिल में भी राजस्थान के 53 जवान शहीद हुए थे. जिनमें से 22 झुंझुनूं के थे. ऐसे में चर्चा होती है कि झुंझुनूं की मिट्टी में आखिर ऐसा क्या है. जो यहां के नौजवानों को सेना में कमीशन होने के लिए प्रेरित करता है. इसका जवाब है कि गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ने की कहानी सुनने पर अभिमन्यु ही पैदा होते हैं. झुंझुनूं के नौजवान सायरा बानो जैसी वीरांगनाओं की कहानी सुनकर बड़े होते हैं. इसके चलते उनमें त्याग, बलिदान और हद से ज्यादा देश प्रेम होता है. सायरा बानो की कहानी सुनकर आप भी सोचेंगे कि आखिर कोई इतना त्याग कैसे कर सकता है. लेकिन ऐसे ही लोग इतिहास बनाते हैं.

त्याग, प्रेम और बलिदान की कहानी...जो देती है नौजवानों को प्रेरणा

उम्र के 100 बरस पार कर चुकी सायरा बानो किसी युद्ध में नहीं गई. लेकिन उनकी लड़ाई किसी सैनिक से कम नहीं है. सायरा बानो का निकाह सेना के जवान सईद ताज मोहम्मद कायमखानी से हुआ था. निकाह के थोड़े दिन बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हो गया. सेना की ओर से फरमान आने पर उनके पति को युद्ध के लिए जाना पड़ा. पुरानी रवायतों के चलते सायरा बानो पति का चेहरा तक नहीं देख सकी. 1946 में उनके पति ताज मोहम्मद की शहादत की सूचना आई. पति के प्रति अपार प्रेम के चलते सायरा बानो ने दूसरी शादी नहीं की. 1947 में हिंदुस्तान का बंटवारा होने पर उनके पति का परिवार पाकिस्तान चला गया. लेकिन सायरा बानो ने अपने मायके झुंझुनूं से 15 किलोमीटर दूर धनूरी गांव में ही रहना तय कर लिया.

सायरा बानो बताती है कि मुझे नहीं पता कि मेरे पति का चेहरा कैसा था, वह कैसे दिखते थे. लोगों व परिवार ने दूसरी शादी के लिए भी कहा लेकिन मुझे उनकी यादों में ही रहना था. सायरा बानो को सेना की ओर से पेंशन मिलती है. उन्होंने पहले अपने माता-पिता की सेवा की, बहनों को भी पढ़ाया लिखाया और उनकी शादी की. अब भतीजे के परिवार के साथ रहती हैं. हर महीने की एक तारीख को याद से पेंशन लाने जाती है. कुछ पैसा दान पुण्य में खर्च करती है और कुछ परिवार चलाने में.

झुंझुनूं. प्रदेश के झुंझुनूं जिले से हर साल सैकड़ों जवान देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होते हैं. करीब 450 से ज्यादा जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. करगिल में भी राजस्थान के 53 जवान शहीद हुए थे. जिनमें से 22 झुंझुनूं के थे. ऐसे में चर्चा होती है कि झुंझुनूं की मिट्टी में आखिर ऐसा क्या है. जो यहां के नौजवानों को सेना में कमीशन होने के लिए प्रेरित करता है. इसका जवाब है कि गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ने की कहानी सुनने पर अभिमन्यु ही पैदा होते हैं. झुंझुनूं के नौजवान सायरा बानो जैसी वीरांगनाओं की कहानी सुनकर बड़े होते हैं. इसके चलते उनमें त्याग, बलिदान और हद से ज्यादा देश प्रेम होता है. सायरा बानो की कहानी सुनकर आप भी सोचेंगे कि आखिर कोई इतना त्याग कैसे कर सकता है. लेकिन ऐसे ही लोग इतिहास बनाते हैं.

त्याग, प्रेम और बलिदान की कहानी...जो देती है नौजवानों को प्रेरणा

उम्र के 100 बरस पार कर चुकी सायरा बानो किसी युद्ध में नहीं गई. लेकिन उनकी लड़ाई किसी सैनिक से कम नहीं है. सायरा बानो का निकाह सेना के जवान सईद ताज मोहम्मद कायमखानी से हुआ था. निकाह के थोड़े दिन बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हो गया. सेना की ओर से फरमान आने पर उनके पति को युद्ध के लिए जाना पड़ा. पुरानी रवायतों के चलते सायरा बानो पति का चेहरा तक नहीं देख सकी. 1946 में उनके पति ताज मोहम्मद की शहादत की सूचना आई. पति के प्रति अपार प्रेम के चलते सायरा बानो ने दूसरी शादी नहीं की. 1947 में हिंदुस्तान का बंटवारा होने पर उनके पति का परिवार पाकिस्तान चला गया. लेकिन सायरा बानो ने अपने मायके झुंझुनूं से 15 किलोमीटर दूर धनूरी गांव में ही रहना तय कर लिया.

सायरा बानो बताती है कि मुझे नहीं पता कि मेरे पति का चेहरा कैसा था, वह कैसे दिखते थे. लोगों व परिवार ने दूसरी शादी के लिए भी कहा लेकिन मुझे उनकी यादों में ही रहना था. सायरा बानो को सेना की ओर से पेंशन मिलती है. उन्होंने पहले अपने माता-पिता की सेवा की, बहनों को भी पढ़ाया लिखाया और उनकी शादी की. अब भतीजे के परिवार के साथ रहती हैं. हर महीने की एक तारीख को याद से पेंशन लाने जाती है. कुछ पैसा दान पुण्य में खर्च करती है और कुछ परिवार चलाने में.

Intro:यह देश वीरो और वीरांगनाओं की कहानियों से भरा हुआ है, उन्ही के त्याग बलिदान और और संघर्ष के बलबूते हम सुरक्षित रहते हैं सामान्य जीवन जीते हैं। ऐसे में हमें उन वीरों और वीरांगनाओं का सलाम करना चाहिए। वीरो की भूमि झुंझुनू जिले के धनूरी गांव की वीरांगना सायरा बानो की कहानी ऐसे ही संघर्ष त्याग प्रेम और बलिदान की है


Body:झुंझुनू। देश में सबसे अधिक 450 से ज्यादा शहीद झुंझुनू जिले ने दिए हैं, सबसे अधिक सेना में जवान यहीं से हैं, कारगिल में भी राजस्थान के हुए 53 शहीद में से 22 शहीद झुंझुनू के ही थे। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर झुंझुनू में सेना के प्रति जुनून की हद तक पागलपन क्यों है, इसका जवाब यह है कि जब गर्भ से ही चक्रव्यूह तोड़ने की कहानी सुनेंगे तो अभिमन्यु ही पैदा होंगे। झुंझुनू के लोग सायरा बानो जैसी वीरांगनाओं की कहानी सुनकर बड़े होते हैं तो उनमें त्याग, बलिदान, प्रेम और हद से ज्यादा देशप्रेम क्यों नहीं होगा। सायरा बानो की कहानी सुनकर आप की भी आंखें नम हो जाएंगी, आप भी यह सोच सकते हैं कि कोई इतना त्याग कैसे कर सकता है, हो सकता है आज की युवा पीढ़ी को उनका प्रेम पागलपन लगे लेकिन इतिहास ऐसे ही लोगों से बनता है।

तो मिलिए सायरा बानो से
झुर्रियों से भरे हुए चेहरे वाली 100 वर्ष से ज्यादा उम्र की सायरा बानो किसी युद्ध में तो नहीं गई लेकिन उनकी लड़ाई किसी फौजी से कम नहीं है। उनका निकाह हुआ ही था, सपने और अरमान अंगड़ाई ले ही रहे थे कि उनके पति सईद ताज मोहम्मद कायमखानी का द्वितीय विश्व युद्ध युद में भाग लेने के लिए सेना की ओर से फरमान आ गया। पुरानी रवायतें कि ना तो पति का चेहरा देख सकी और ना ही दो शब्द गुफ्तगू के हो सके। विश्व युद्ध 6 साल चला और आखिरकार 1946 में ताज मोहम्मद कायमखानी की शहादत की सूचना आ गई। बिना देखे चेहरे और बिना बात किए मोहब्बत का इतना असर था, पति की शहादत को जिंदा रखने की इतनी ख्वाहिश थी कि उन्होंने दूसरी शादी नहीं की। इस बीच एक और जलजला आया, भारत और पाक दो देश बने और पति का पूरा परिवार भी पाकिस्तान चला गया। ऐसे में सारा बानो अपने मायके झुंझुनू जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर धनूरी गांव में ही रहना तय कर लिया। उम्र कितने पड़ाव पार कर लिए हैं कि उनके शब्दों को पूरा विराम नहीं मिल पाता लेकिन फिर भी कुछ बातें शेयर करती है। वह बताती है कि मुझे नहीं पता कि मेरे पति का चेहरा कैसा था कैसे दिखते थे लोगों व परिवार ने दूसरी शादी के लिए भी कहा लेकिन मुझे उनकी यादों में ही रहना था।

सरकार देती है पेंशन
सायरा बानो को सेना की ओर से अच्छी खासी पेंशन मिलती है। उन्होंने पहले अपने माता-पिता की सेवा की। बहनों को भी पढ़ाया लिखाया और शादी की । अब भतीजे का परिवार के साथ रहती हैं। हर एक तारीख को अब भी याद से पेंशन लाने जाती है, कुछ पैसा दान पुण्य में खर्च करती है और कुछ से परिवार चलता है। ऐसी ही वीरांगनाओं की कहानियों की वजह से झुंझुनू को पूरे देश में जाना जाता है और उनसे ही प्रेरणा लेकर यहां के वीर जवान देश सेवा में जुटे रहते हैं।


बाइट वन कैप्टन हसन खां सेवानिवृत्त सैनिक

बाईट 2 सायरा बानो वीरांगना

बाइट 3 वीरांगना के भतीजे की बहू










Conclusion:
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