झुंझुनूं. प्रदेश के झुंझुनूं जिले से हर साल सैकड़ों जवान देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होते हैं. करीब 450 से ज्यादा जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. करगिल में भी राजस्थान के 53 जवान शहीद हुए थे. जिनमें से 22 झुंझुनूं के थे. ऐसे में चर्चा होती है कि झुंझुनूं की मिट्टी में आखिर ऐसा क्या है. जो यहां के नौजवानों को सेना में कमीशन होने के लिए प्रेरित करता है. इसका जवाब है कि गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ने की कहानी सुनने पर अभिमन्यु ही पैदा होते हैं. झुंझुनूं के नौजवान सायरा बानो जैसी वीरांगनाओं की कहानी सुनकर बड़े होते हैं. इसके चलते उनमें त्याग, बलिदान और हद से ज्यादा देश प्रेम होता है. सायरा बानो की कहानी सुनकर आप भी सोचेंगे कि आखिर कोई इतना त्याग कैसे कर सकता है. लेकिन ऐसे ही लोग इतिहास बनाते हैं.
उम्र के 100 बरस पार कर चुकी सायरा बानो किसी युद्ध में नहीं गई. लेकिन उनकी लड़ाई किसी सैनिक से कम नहीं है. सायरा बानो का निकाह सेना के जवान सईद ताज मोहम्मद कायमखानी से हुआ था. निकाह के थोड़े दिन बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हो गया. सेना की ओर से फरमान आने पर उनके पति को युद्ध के लिए जाना पड़ा. पुरानी रवायतों के चलते सायरा बानो पति का चेहरा तक नहीं देख सकी. 1946 में उनके पति ताज मोहम्मद की शहादत की सूचना आई. पति के प्रति अपार प्रेम के चलते सायरा बानो ने दूसरी शादी नहीं की. 1947 में हिंदुस्तान का बंटवारा होने पर उनके पति का परिवार पाकिस्तान चला गया. लेकिन सायरा बानो ने अपने मायके झुंझुनूं से 15 किलोमीटर दूर धनूरी गांव में ही रहना तय कर लिया.
सायरा बानो बताती है कि मुझे नहीं पता कि मेरे पति का चेहरा कैसा था, वह कैसे दिखते थे. लोगों व परिवार ने दूसरी शादी के लिए भी कहा लेकिन मुझे उनकी यादों में ही रहना था. सायरा बानो को सेना की ओर से पेंशन मिलती है. उन्होंने पहले अपने माता-पिता की सेवा की, बहनों को भी पढ़ाया लिखाया और उनकी शादी की. अब भतीजे के परिवार के साथ रहती हैं. हर महीने की एक तारीख को याद से पेंशन लाने जाती है. कुछ पैसा दान पुण्य में खर्च करती है और कुछ परिवार चलाने में.