झुंझुनू. सरकारी मदद उस असहाय पीड़ित व्यक्ति की की जाती है जिसकी उसको खासी जरूरत होती है. लेकिन यदि कोई उस सहायता राशि के लिए ही पीड़ित और असहाय बन जाए तो निश्चित ही सवाल उठने लगते हैं. अनुसूचित जाति की पीड़िता के साथ दुष्कर्म का मामला दर्ज होने के साथ ही उन्हें तुरंत 1 लाख की सहायता मिलती है.
जिससे वो अपना कानूनी पक्ष मजबूती से रख सके और उसके परिवार को आर्थिक संबल भी मिल सके. लेकिन जब सहायता मिलने के बाद कोर्ट में खुद पीड़ित व्यक्ति यह मना कर दे कि उसके साथ कोई दुराचार हुआ ही नहीं है, तो ऐसे में निश्चित ही सवाल उठता है कि जो सहायता राशि दी गई थी, उसका क्या. ऐसे ही दो मामले झुंझुनू की एक अदालत में जब सामने आए तो खुद न्यायालय ने ही सहायता राशि वापस लेने को लेकर जिला कलेक्टर को आदेश दिया.
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यह है नियम
एससी/एसटी अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को अपमानित करने या सामाजिक बहिष्कार की धमकी देने पर 1 लाख और किसी महिला की ओर से उसका पीछा करने का आरोप लगाने पर भी 2 लाख की सहायता राशि दिए जाने का प्रावधान है. दुष्कर्म के मामलों में 4 लाख की सहायता का प्रावधान है. ऐसे में मामलों में रिपोर्ट दर्ज होते ही सहायता मद में 25 फीसदी राशि जारी कर दी जाती है. वहीं अगर मामला झूठा पाया जाता है तो उसे वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है.
यह है मामला
दरअसल, झुंझनू जिले की पॉक्सो अदालत में दो ऐसे मामले न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत हुए. जिनमें पीड़ित पक्ष को सहायता राशि मंजूर की जा चुकी थी. लेकिन पीड़ित पक्ष द्वारा इसमें किसी प्रकार की अनहोनी नहीं घटना के बयान देकर एफआर लगवा दी थी. पुलिस ने जब दोनों मामलों में पीड़ित पक्ष को अदालत में एफआर (फाइनल रिपोर्ट) के साथ पेश किया तो उसे स्वीकार कर लिया गया. लेकिन जब अदालत के संज्ञान में यह बात लाई गई कि उन्हें सहायता राशि मंजूर की जा चुकी है. तब न्यायाधीश ने आदेश में इस जिला कलेक्टर को सहायता राशि वापस लेने की बात कही.
न्यायालय ने की है यह टिप्पणी
अदालत ने इस मामले में टिप्पणी की है कि जब अपराध हुआ ही नहीं तो इस तरह की राशि सरकार को लौटाई जाए, लेकिन इस बारे में कोई प्रत्यक्ष नियम ही नहीं है. किसी भी व्यक्ति को यह छूट नहीं दी जा सकती कि वह एक साथ दोनों पर सवारी करें. पहले तो आरोप लगाकर सरकार से पैसे ले और फिर आरोप से मुकर जाए. अब न्यायालय ने अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम के तहत पीड़ित को दी जाने वाली राशि में से 75 फीसदी राशि न्यायालय का फैसला आने के बाद दिए जाने का सुझाव विधि आयोग को दिया है.
न्यायालय ने कहा कि उनके सामने ऐसे अनेक मामले आए हैं, जिनमें 70 फीसदी मामलों में परिवादी बयान से पलट जाता है. इसका अर्थ यह हुआ कि बहुत बड़े पैमाने पर सहायता राशि का दुरुपयोग हो रहा है, मामले में लोक अभियोजक लोकेंद्र सिंह शेखावत ने पैरवी की. साथ ही यह कहा कि यह राशि लोक धन से दी जाती है, इस तरह की राशि का दुरुपयोग होता है. ऐसे में संज्ञान लेकर इसे रोकने के आदेश जारी किए जाएं.
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पहले भी सामने आ चुका है ऐसा ही एक मामला
इसी न्यायालय में पिछले साल भी ऐसा मामला आया था, जिसमें दुष्कर्म पीड़िता अपने बयानों से बदल गई थी. उस मामले में न्यायालय ने कलेक्टर से रिपोर्ट मंगवाई तो पता चला कि पीड़िता अनुसूचित जाति एवं जनजाति की होने के आधार पर पुलिस ने मामला न्यायालय में पेश करने से पहले ही उसे 4 लाख 12 हजार रुपए दिलवा दिए, जबकि यह प्रावधान नहीं है. उस मामले में भी न्यायालय ने कलेक्टर को पत्र लिखकर यह राशि वसूलने के आदेश दिए थे. तब न्यायालय ने ऐसे मामलों में भ्रष्टाचार की भी आशंका जताई थी.