झुंझुनू. नगर परिषद के चुनाव आने से पहले ओला परिवार झुंझुनू के राजनीतिक परिदृश्य में कम ही दिखाई दे रहा था. जिससे ऐसा लग रहा था कि शीशराम ओला के जाने के बाद धीरे-धीरे ओला परिवार का झुंझुनू की राजनीति में प्रभुत्व कम हो रहा है. शीशराम ओला की साल 2013 में मृत्यु के बाद उनकी राजनीतिक विरासत के रूप में पुत्रवधू पूर्व जिला प्रमुख राजबाला ओला को झुंझुनू लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट मिला. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
इसके बाद साल 2018 के विधानसभा चुनाव में शीशराम ओला के पुत्र बृजेंद्र ओला को कांग्रेस की टिकट पर विधायक बनने का मौका मिला. लेकिन उन्हें भी मंत्री पद नहीं दिया गया. इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ओला परिवार का एमपी का टिकट ही कट गया और उनकी जगह सूरजगढ़ के पूर्व विधायक श्रवण कुमार को प्रत्याशी बनाया गया. इधर ओला परिवार की विश्वस्त झुंझुनू पंचायत समिति के प्रधान सुशीला सीगड़ा को भी कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया और वह भी भाजपा में चली गई.
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इसके बाद आए नगर परिषद के चुनाव
झुंझुनू नगर परिषद में शीशराम ओला के रहते हुए हमेशा से कांग्रेस का दबदबा रहा है. लेकिन उनकी मृत्यु के बाद गत नगर परिषद चुनाव में कांग्रेस के ज्यादा पार्षद आने के बावजूद भाजपा जोड़ तोड़ कर बोर्ड बनाने में सफल हो गई और इसे शीशराम ओला के पुत्र और झुंझुनूं के विधायक बृजेंद्र ओला की असफलता माना गया था. ऐसे में इस बार के नगर परिषद चुनाव में विधायक बृजेंद्र ओला और उनकी पत्नी पूर्व जिला प्रमुख ने शुरुआत से ही कमान संभाली. अपनी गणित के अनुसार ही टिकट बांटे और विरोधियों को टिकट से दूर भी कर दिया और अब 60 में से 34 वार्ड जीतकर बोर्ड बनाने की भी तैयारी कर ली है.