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CORONA की मार: थम गए सुर, धीमी पड़ी थाप और बढ़ गई पेट की आग

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन से देश के सभी वर्ग आहत हुआ है. इसमें समाज का एक ऐसा वर्ग शामिल है, जिसकी ओर शायद किसी का अब तक ध्यान ही ना गया हो. ये वे कलाकार है, जो रोज तबले की थाप और हारमोनियम के सुर से अपने घर-परिवार का पेट पालते थे. इन हालातों में इनके पास अपना पेट पालने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा है. ऐसे समय में सरकार को इनके मदद के लिए कुछ करना चाहिए.

jhunjhnu news, झुंझुनू की खबर
कोरोना की मार ने कलाकारों को भी दाने-दाने के लिए किया मोहताज
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Published : Apr 24, 2020, 9:23 PM IST

झुंझुनू. कोरोना के इस संकट काल में देश के सभी वर्ग प्रभावित हुए है. इसमें एक ऐसा भी वर्ग है, जिसके हाछ कभी तबले पर चला करते थे, वो हाथ अब भला कैसे किसी से मदद मांगे. जी हां हम बात कर रहे हैं, उन कलाकारों की जो अपना रोज तबले की थाप और हारमोनियम के सुर से अपने घर-परिवार का पेट पालते थे. आज के समय में उनके पास अपना पेट पालने के कोई विकल्प नहीं बचा है. इसमें राजस्थान के झुंझुनू जिले के मशहूर कव्वाल, भजन गायक से लेकर कई तरह के वाद्य यंत्र बजाने वाले साजिंदे भी शामिल हैं.

कोरोना की मार ने कलाकारों को भी दाने-दाने के लिए किया मोहताज

सरकार को करनी चाहिए इनकी मदद

कई कलाकार ऐसे भी हैं जो हारमोनियम, ढोलक, तबला, बैंजो, ऑर्गन, ऑक्टोपैड बजाकर और बड़े कलाकारों के साथ जुगलबंदी कर रोटी कमाते हैं. लेकिन इस कोरोना संक्रमण के दौर में उनके पास मार्च से लेकर जून तक के कोई कार्यक्रम नहीं है. ऐसे में इनकी ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए. क्योंकि, यही चार महीने इनके कमाने के लिए होते है, जिससे इनके साल भर का गुजारा होता है. इसलिए सरकार को इनकी मदद के लिए कुछ विशेष इंतजाम करने चाहिए, ताकि ये अपनी कला को बचा के रख सके और सम्मान भी बचा सके.

यह भी पढ़ेंः रियलिटी चेकः हाथों के हुनर से कमाकर खाने वाले प्रशासन की देख रहे राह...हर सुविधा से हैं महरूम

परिवार के सभी सदस्य करते है यही काम

इनमें कई परिवार ऐसे भी है, जिनमें सभी लोग यही काम करते हैं. इतना ही नहीं, वे कई पीढ़ियों से यही काम कर रहे हैं. यह लोग संगीत, कव्वाली, भजन, जागरण, गजल, लोकगीत के कार्यक्रम कर अपना और अपने परिवार के पेट पालने का काम करते है और उनकी यही रोजी-रोटी है. और तो और इनके इस काम के चलते लोग इन्हें काफी सम्मान की नजरों से देखते है और सम्मान भी करते है. ऐसे में वे हर किसी से इस लॉकडाउन के समय में कुछ मांग भी नहीं सकते. इन हालातों को शहर के कव्वालों ने कुछ इस अंदाज में बंया किया और कहा कि 'गरीब वह नहीं जो मांगने से शर्माएं, गरीब वह है जिसे मांगना नहीं आए.'

झुंझुनू. कोरोना के इस संकट काल में देश के सभी वर्ग प्रभावित हुए है. इसमें एक ऐसा भी वर्ग है, जिसके हाछ कभी तबले पर चला करते थे, वो हाथ अब भला कैसे किसी से मदद मांगे. जी हां हम बात कर रहे हैं, उन कलाकारों की जो अपना रोज तबले की थाप और हारमोनियम के सुर से अपने घर-परिवार का पेट पालते थे. आज के समय में उनके पास अपना पेट पालने के कोई विकल्प नहीं बचा है. इसमें राजस्थान के झुंझुनू जिले के मशहूर कव्वाल, भजन गायक से लेकर कई तरह के वाद्य यंत्र बजाने वाले साजिंदे भी शामिल हैं.

कोरोना की मार ने कलाकारों को भी दाने-दाने के लिए किया मोहताज

सरकार को करनी चाहिए इनकी मदद

कई कलाकार ऐसे भी हैं जो हारमोनियम, ढोलक, तबला, बैंजो, ऑर्गन, ऑक्टोपैड बजाकर और बड़े कलाकारों के साथ जुगलबंदी कर रोटी कमाते हैं. लेकिन इस कोरोना संक्रमण के दौर में उनके पास मार्च से लेकर जून तक के कोई कार्यक्रम नहीं है. ऐसे में इनकी ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए. क्योंकि, यही चार महीने इनके कमाने के लिए होते है, जिससे इनके साल भर का गुजारा होता है. इसलिए सरकार को इनकी मदद के लिए कुछ विशेष इंतजाम करने चाहिए, ताकि ये अपनी कला को बचा के रख सके और सम्मान भी बचा सके.

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परिवार के सभी सदस्य करते है यही काम

इनमें कई परिवार ऐसे भी है, जिनमें सभी लोग यही काम करते हैं. इतना ही नहीं, वे कई पीढ़ियों से यही काम कर रहे हैं. यह लोग संगीत, कव्वाली, भजन, जागरण, गजल, लोकगीत के कार्यक्रम कर अपना और अपने परिवार के पेट पालने का काम करते है और उनकी यही रोजी-रोटी है. और तो और इनके इस काम के चलते लोग इन्हें काफी सम्मान की नजरों से देखते है और सम्मान भी करते है. ऐसे में वे हर किसी से इस लॉकडाउन के समय में कुछ मांग भी नहीं सकते. इन हालातों को शहर के कव्वालों ने कुछ इस अंदाज में बंया किया और कहा कि 'गरीब वह नहीं जो मांगने से शर्माएं, गरीब वह है जिसे मांगना नहीं आए.'

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