झुंझुनू. शेखावाटी अंचल में खेती से जुड़े जाट जाति के मतदाता ही यहां की तीनों सीटों सीकर, चूरू व झुंझुनू में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. यही वजह है कि शेखावाटी की तीनों सीटों पर पिछले तीन दशक से जाटों को ही प्रतिनिधित्व मिलता आ रहा है.
आजादी के बाद और 80 के दशक से पहले इस लोकसभा सीट पर ब्राह्मण, बनिया व कायस्थ समाज के लोगों ने प्रतिनिधित्व किया लेकिन धीरे-धीरे जाट समाज में राजनीतिक जागृति पैदा हुई. उसके बाद से सीकर में 1980, चूरू में 1985 में व झुंझुनू में 1996 के बाद से जाट के अलावा कोई सांसद नहीं बन पाया है.
अब तो समीकरण कुछ इस तरह बन चुके हैं कि कोई भी प्रमुख राजनीतिक दल प्रयोग के तौर पर भी अन्य समाज के लोगों को टिकट नहीं देता है. हालांकि इस बार कांग्रेस ने शेखावाटी अंचल की चूरू लोकसभा सीट पर नया प्रयोग किया है. कांग्रेस ने चूरू सीट पर मुस्लिम समुदाय के रफीक मंडेलिया को टिकट दिया है. अब देखने वाली बात होगी कि दशकों के इतिहास में कितना परिवर्तन आता है.
जाट आरक्षण का मुद्दा खा गया था दो सीट
प्रदेश में 1995 के बाद से जाट महासभा के नेतृत्व में जाट आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ रहा था. आरक्षण नहीं देने के चलते जाटों की नाराजगी कांग्रेस और भाजपा दोनों से चल रही थी. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में झुन्झुनू प्रचार करने आए तो शीशराम ओला के समर्थकों ने जाट आरक्षण के मुद्दे पर उन्हें बोलने नहीं दिया ऐसे में उन्हें भाषण बीच में ही छोड़ कर जाना पड़ा.
इसके बाद वाजपेयी ने सीकर में जाते ही अपने भाषण की शुरुआत ही इस बात से कि यदि वे सत्ता में आए तो जाट समेत किसान जातियों को आरक्षण देंगे. ऐसे में शीशराम ओला तो जाट आरक्षण का खुलकर समर्थन करने के चलते चुनाव जीत गए लेकिन सीकर और चूरू की दोनों सीट वाजपेयी की घोषणा से भाजपा के खाते में चली गई. वहीं मांग पूरी होने के बाद इन सीटों पर जाटों ने अपना वर्चस्व कायम कर लिया.
झुंझुनू में सेना के प्रति मोह
वही झुंझुनू में भी जाटों में राजनीतिक जागृति आ चुकी थी लेकिन कांग्रेस की ओर से टिकट कैप्टन अयूब खान को दे दिया जो सेना में वीर चक्र से सम्मानित थे. झुंझुनू में सेना के प्रति हर वर्ग का विशेष जुड़ाव रहा है और अयूब खान चुनाव जीत गए. हालांकि जब कांग्रेस की ओर से जब उनको लगातार कर दिया जाने लगा तो शीशराम ओला जाट नेता के रूप में उभरे. बाद में 1996 में कांग्रेस का टिकट होने के बाद भी अयूब खान चुनाव नहीं जीत पाया.
जाट मतदाताओं के भरोसे शीशराम ओला कांग्रेस से जीतकर पहली बार सांसद बने. इसके बाद अगला चुनाव जाटों की एक तरफा वोटिंग के नाम रहा और शीश राम ओला वापस कांग्रेस सेकुलर से सांसद बने. कांग्रेस को भी समझ में आ गया था कि पार्टी को लोकसभा सीट जीतनी है तो शीशराम ओला को ही टिकट देना होगा. उसके बादइतिहास गवाहहै कि जीवन केअंतिम समय तक शीशराम ओला ही सांसद रहे .
अन्य जातियों में एससी बाहुल्य
वही जाटों के बाद शेखावाटी में अनुसूचित जाति का बाहुल्य है. इसके बाद मुस्लिम मतदाताओं की संख्या है. इसके अलावा राजपूत, सैनी, गुर्जर आदि लगभग बराबर संख्या के मतदाता हैं. जाति के नेताओं व उनकी मांगों की यदि बात की जाए तो शेखावाटी में लगभग सभी लोग खेती व नौकरियों से जुड़े हैं. ऐसे में ना तो कोई जाति का नेता उभर आया है और ना ही उनका कोई मुद्दा है. किसानों के मुद्दे यहां हर जाति को प्रभावित करता है. जाट आरक्षण का मुद्दा समाप्त होने के बाद अब कोई भी जातिगत बुद्धा शेखावाटी में नहीं है.
गत चुनाव में जाट व एससी भी गए भाजपा के पक्ष में
शेखावाटी में जाट व एससी परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोटर है और यही कारण है कि शेखावाटी कांग्रेस का गढ भी रहा है. वर्ष 2004 व 2009 में भी इन जातियों का झुकाव कांग्रेस की ओर ही था. लेकिन 2014 में जरूर जाट व अनुसूचित जाति के मतदाताओं का झुकाव देश के राजनीतिक माहौल की तरह ही भाजपा के पक्ष में हो गया था.
इसके साथ ही तीनों सीटें भाजपा के खाते में चली गई थी. हालांकि चूरू से रामसिंह कस्वा लगातार अन्य जातियों जाटों के सहयोग से के सहयोग से लगभग दो दशक तक भाजपा से सांसद रहे. वही सीकर से हालात मिले-जुले रहें. यहां 2004 में यहां से भाजपा जीती तो 2009 में कांग्रेस ने वापस सीट हथिया ली थी.