चिड़ावा (झुंझुनूं). सांप्रदायिक सौहार्द और कौमी एकता की मिसाल नरहड़ शरीफ दरगाह में शुक्रवार से तीन दिवसीय भादवा मेला शुरु हो गया. श्री कृष्ण जन्माष्ट्मी पर आयोजित होने वाले इस मेले के पहले दिन ही जायरिनों का आना शुरु हो गया है.
देशभर से श्रद्धालुओं का आने का सिलसिला शुरू
श्रीकृष्ण जन्म उत्सव पर तीन दिवसीय भादवा मेले में शामिल होने के लिए राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, दिल्ली, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र आदि राज्यों से लाखों जायरिनो का आना शुरू हो गया है. अजमेर की दरगाह के बाद दूसरी सबसे बड़ी दरगाह नरहड़ शरीफ दरगाह संभवतया देश की पहली ऐसी दरगाह है. जहां श्री कृष्ण जन्म उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.
दरगाह अद्भुत आस्था का केंद्र
जन्माष्टमी पर नरहड़ में भरने वाला ऐतिहासिक मेला और जन्माष्टमी की रात होने वाला रतजगा सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देशभर में कौमी एकता की अनूठी मिसाल का अद्भुत आस्था केंद्र बनाता है. इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूर-दराज से नरहड़ आने वाले हिंदू जात्री दरगाह में नवविवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जड़ूले उतारते हैं.
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नरहड़ ने सदैव हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश की
दरगाह के वयोवृद्ध खादिम हाजी अजीज खान पठान बताते हैं कि यह कहना तो मुश्किल है कि नरहड़ में जन्माष्टमी मेले की परम्परा कब और कैसे शुरू हुई. लेकिन इतना जरूर है कि देश विभाजन एवं उसके बाद और कहीं संप्रदाय, धर्म-मजहब के नाम पर भले ही हालात बने-बिगड़े हो पर नरहड़ ने सदैव हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल ही पेश की है. वे बताते हैं कि जन्माष्टमी पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं. ठीक उसी प्रकार अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में चिड़ावा के प्रख्यात दूलजी राणा परिवार के कलाकार ख्याल (श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिकाओं) की प्रस्तुति देकर रतजगा कर पुरानी परम्परा को आज भी जीवित रखे हुए हैं. नरहड़ का यह वार्षिक मेला अष्टमी एवं नवमी को पूरे परवान पर रहता है.
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लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं शक्करबार बाबा
राजस्थान व हरियाणा में तो शक्करबार बाबा को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है. शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है. इस क्षेत्र के लोगों की गाय, भैंसों के बछड़ा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह पर चढ़ाया जाता है. तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है. हाजिब शक्करबार साहब की दरगाह के परिसर में जाल का एक विशाल पेड़ है. जिस पर जायरीन अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं. मन्नत पूरी होने पर गांवों में रात जगा होता है. जिसमें महिलाएं बाबा के बखान के लोकगीत जकड़ी गाती हैं.
चिराग का काजल बड़ा ही चमत्कारी माना जाता है
दरगाह में बने संदल की मिट्टी को खाके शिफा कहा जाता है. जिसे लोग श्रद्धा से अपने साथ ले जाते हैं. लोगों की मान्यता है कि इस मिट्टी को शरीर पर मलने से पागलपन दूर हो जाता है. दरगाह में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं. हजरत के अस्ताने के समीप एक चांदी का दीपक हर वक्त जलता रहता है. इस चिराग का काजल बड़ा ही चमत्कारी माना जाता है. इसे लगाने से आंखों के रोग दूर होने का विश्वास है.
तीन दिवसीय मेले की तैयारियां पूरी
हजरत हाजिब शकरबार शाह दरगाह में तीन दिवसीय मेले की तैयारियां पूरी कर ली गई है. मेले के दूसरे दिन 24 अगस्त को शाम चार बजे ग्रामीणों की ओर से हनुमान मंदिर से दरगाह तक वासुदेव की झांकी निकाली जाएगी. जन्माष्टमी मेले को लेकर वक्फ बोर्ड, खादिम परिवार व ग्राम पंचायत की ओर से प्रशासन के सहयोग से साफ-सफाई, बिजली, पानी, यातायात, चिकित्सा व्यवस्था की गई हैं. मेला स्थल व्यवस्था बनाए बेरिकेटिंग भी की गई है.