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मंडावा में 'भूल' कर बैठे राठौड़, करारी शिकस्त से लगा सियासी कद को धक्का.... - मंडावा उपचुनाव

राजस्थान विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा गठबंधन का मैच एक-एक से बराबर हो गया है. लेकिन भाजपा के कब्जे वाली सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने बड़ी जीत हासिल की है. लेकिन मंडावा उपचुनाव हारने के साथ ही कद्दावर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ की राजनीति को भी बड़ा झटका लगा है. क्योंकि राठौड़ झुंझुनू में दो बार के उपचुनाव में प्रभारी रहे और दोनों ही बार पार्टी की हार हुई है...

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Published : Oct 24, 2019, 8:02 PM IST

झुंझुनूं. मंडावा में मिली शिकस्त ने कद्दावर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ की राजनीति को भी बड़ा झटका दिया है. राठौड़ झुंझुनू में दो बार के उपचुनाव में प्रभारी रहे और दोनों ही बार पार्टी की हार हुई है.

दरअसल, राजेंद्र राठौड़ सदा से ही अपनी घुसपैठ झुंझुनूं की राजनीति में रखते रहे हैं. पहली बार राठौड़ को भाजपा के राज में सूरजगढ़ वासियों ने हार का मुंह दिखाया और उनके जिगरी दोस्त दिवंगत दिगंबर सिंह को मात दी थी. अब दूसरी बड़ी हार मंडावा ने तो झुंझुनू की राजनीति में राठौड़ की घुसपैठ को पूरी तरह से नकार दिया है.

स्पेशल रिपोर्ट: उपचुनाव में राजेंद्र राठौड़ को प्रभारी रहते दो बार मिल चुकी है शिकस्त

पढ़ें- प्रभारी के रूप में मंडावा की हार को मैं सहर्ष स्वीकार करता हूं, ETV Bharat पर उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बोले

दरअसल, विधानसभा सीट से 9 भाजपाई दावेदार थे. लेकिन किसी को भी टिकट नहीं देने पर अपने आप को ठगा सा महसूस करने वाले 9 प्रत्याशी मन मारकर प्रचार-प्रसार में जुटे जरूर थे. लेकिन जोश कहीं भी नजर नहीं आया. दबे स्वर में कई दावेदार तो कांग्रेसी पृष्ठभूमि रखने वाली सुशीला सींगड़ा को भाजपा प्रत्याशी बनाने का आरोप राठौड़ पर ही थोपते हैं. लेकिन पार्टी लाइन की वजह से खुलकर सामने नहीं आ पाते हैं.

पढ़ें- मंडावा से जीत के बाद रीटा चौधरी ने जताया वोटर्स का आभार, ETV भारत से खास बातचीत में कहा - क्षेत्र की मांगें ही मेरी प्राथमिकता

वहीं जहां टिकट दिलाने के बाद राठौड़ ने श्रेय लिया. तो उसका लोगों ने सूत सहित चुकता करते हुए 33 हजार मतों से हराकर राठौड़ और उनके प्रत्याशी को नकार दिया. साथ ही मूल भाजपाइयों ने पार्टी को भी एक बार सबक सिखाया है. इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी पृष्ठभूमि के राजेंद्र भाम्बू को भी भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. अब एक बार फिर से मंडावा में कांग्रेसी प्रष्ठभूमी से आने वाली सुशीला को मिली शिकस्त ने पार्टीलाइन में ये संदेश दिया है कि भाजपा अब पैराशूट और कांग्रेसी को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे. यही भूल राजेंद्र राठौड़ से हो गई लगती है.

पढ़ें- मंडावा में सांसद पुत्र को टिकट ना देना पार्टी आलाकमान का दुस्साहसी फैसला था : सतीश पूनिया

कौन लेगा हार की जिम्मेदारी
राठौड़ ने भी मंडावा उपचुनाव में कांग्रेस की प्रधान सुशीला सींगड़ा को भाजपा का उम्मीदवार बनवाकर अपनी पीठ थपथपा ली थी. बताया जा रहा है कि राठौड़ ने जयपुर में हार की नैतिक जिम्मेदारी ले ली है, लेकिन इतना जरूर है कि राठौड़ को लगातार दो बार मिली हार के बाद अब उन्हें शेखावाटी में प्रभारी बनाने से भाजपा जरूर विचार करेगी.

झुंझुनूं. मंडावा में मिली शिकस्त ने कद्दावर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ की राजनीति को भी बड़ा झटका दिया है. राठौड़ झुंझुनू में दो बार के उपचुनाव में प्रभारी रहे और दोनों ही बार पार्टी की हार हुई है.

दरअसल, राजेंद्र राठौड़ सदा से ही अपनी घुसपैठ झुंझुनूं की राजनीति में रखते रहे हैं. पहली बार राठौड़ को भाजपा के राज में सूरजगढ़ वासियों ने हार का मुंह दिखाया और उनके जिगरी दोस्त दिवंगत दिगंबर सिंह को मात दी थी. अब दूसरी बड़ी हार मंडावा ने तो झुंझुनू की राजनीति में राठौड़ की घुसपैठ को पूरी तरह से नकार दिया है.

स्पेशल रिपोर्ट: उपचुनाव में राजेंद्र राठौड़ को प्रभारी रहते दो बार मिल चुकी है शिकस्त

पढ़ें- प्रभारी के रूप में मंडावा की हार को मैं सहर्ष स्वीकार करता हूं, ETV Bharat पर उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बोले

दरअसल, विधानसभा सीट से 9 भाजपाई दावेदार थे. लेकिन किसी को भी टिकट नहीं देने पर अपने आप को ठगा सा महसूस करने वाले 9 प्रत्याशी मन मारकर प्रचार-प्रसार में जुटे जरूर थे. लेकिन जोश कहीं भी नजर नहीं आया. दबे स्वर में कई दावेदार तो कांग्रेसी पृष्ठभूमि रखने वाली सुशीला सींगड़ा को भाजपा प्रत्याशी बनाने का आरोप राठौड़ पर ही थोपते हैं. लेकिन पार्टी लाइन की वजह से खुलकर सामने नहीं आ पाते हैं.

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वहीं जहां टिकट दिलाने के बाद राठौड़ ने श्रेय लिया. तो उसका लोगों ने सूत सहित चुकता करते हुए 33 हजार मतों से हराकर राठौड़ और उनके प्रत्याशी को नकार दिया. साथ ही मूल भाजपाइयों ने पार्टी को भी एक बार सबक सिखाया है. इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी पृष्ठभूमि के राजेंद्र भाम्बू को भी भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. अब एक बार फिर से मंडावा में कांग्रेसी प्रष्ठभूमी से आने वाली सुशीला को मिली शिकस्त ने पार्टीलाइन में ये संदेश दिया है कि भाजपा अब पैराशूट और कांग्रेसी को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे. यही भूल राजेंद्र राठौड़ से हो गई लगती है.

पढ़ें- मंडावा में सांसद पुत्र को टिकट ना देना पार्टी आलाकमान का दुस्साहसी फैसला था : सतीश पूनिया

कौन लेगा हार की जिम्मेदारी
राठौड़ ने भी मंडावा उपचुनाव में कांग्रेस की प्रधान सुशीला सींगड़ा को भाजपा का उम्मीदवार बनवाकर अपनी पीठ थपथपा ली थी. बताया जा रहा है कि राठौड़ ने जयपुर में हार की नैतिक जिम्मेदारी ले ली है, लेकिन इतना जरूर है कि राठौड़ को लगातार दो बार मिली हार के बाद अब उन्हें शेखावाटी में प्रभारी बनाने से भाजपा जरूर विचार करेगी.

Intro: पहले भाजपा के राज में उपचुनाव में सूरजगढ़ में अब मंडावा में दूसरी करारी मात ने राजेंद्र राठौड़ की राजनीति को बड़ा धक्का लगा है वे झुंझुनू में दो बार के उपचुनाव में प्रभारी रहे और दोनों ही बार पार्टी की हार हो गई।


Body:झुंझुनू। मंडावा उपचुनाव हारने के साथ ही कद्दावर जाट नेता राजेंद्र राठौड़ की राजनीति को भी बड़ा झटका लगा है चूरू से विधायक राजेंद्र राठौड़ के सपने को बड़ा धक्का लगा है या यूं कहें कि राठौड़ अब नई 'ठोड' ढूंढनी होगी दरअसल राजेंद्र राठौड़ सदा से ही अपनी घुसपैठ झुंझुनू के राजनीति में रखते रहे हैं। लेकिन क्षेत्र में जाट और राजपूतों की पुरानी अदावत का असर भी देखने को मिलता है राठौड़ को भाजपा के राज में सूरजगढ़ वासियों ने आईना दिखाया और उनके जिगरी दोस्त स्वर्गीय दिगंबर को मात दी थी। इसमें कहीं ना कहीं राठौड़ को जाट बहुलता वाली सूरजगढ़ सीट के मतदाताओं ने नकार दिया था इसके साथ ही दिखाते हुए उन्हें दोबारा जाट बहुल क्षेत्रों में नहीं आने की एक तरह से नसीहत भी दी थी लेकिन अब दूसरी बड़ी हार मंडावा ने तो राठौड़ की घुसपैठ की राजनीति से झुंझुनू वासियों ने उन्हें पूरी तरह से नकार दिया है।

महसूस कर रहे थे ठगा हुआ

जहां मंडावा विधानसभा सीट से 9 भाजपाई दावेदार थे लेकिन किसी को भी टिकट नहीं देने पर अपने आप को ठगा सा महसूस करने वाले नो प्रत्याशी मन मारकर प्रचार-प्रसार में जुटे जरूर थे लेकिन जोश कहीं भी नजर नहीं आया। दबे स्वर में कई दावेदार तो कांग्रेसी पृष्ठभूमि रखने वाली झुंझुनू से कांग्रेश की तीन बार प्रधान रहने वाली सुशीला सिगड़ा को भाजपा के प्रत्याशी बनाने का राठौड़ पर ही आरोप थोपते हैं। लेकिन पार्टी लाइन की वजह से खुलकर सामने नहीं आ पाते हैं जहां टिकट दिलाने के बाद राठौड़ ने थोक में श्रेय लिया उसे लोगों ने सूत सहित चुकता करते हुए 33000 मतों से हराकर राठौड़ और उनके प्रत्याशी को नकार दिया। साथ ही मूल भाजपाइयों ने पार्टी को भी एक बार सबक सिखाया है झुंझुनू से इसी बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी पृष्ठभूमि के राजेंद्र भाम्बू को प्रत्याशी बनाया जिसे जनता ने नकार दिया और दूसरी बार फिर से मंडावा में कांग्रेसी की सुशीला को भारी मतों से शिकस्त देकर भाजपाइयों ने यह भी पार्टी को नसीहत दे दी है। कि भाजपा अब पैराशूट और कांग्रेसी को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे और यही भूल राजेंद्र राठौड़ से हो गई।


कौन लेगा हार की जिम्मेदारी
राठौड़ ने भी मंडावा उपचुनाव में कांग्रेस की प्रधान सुशीला सीगड़ा को भाजपा का उम्मीदवार बनवाकर अपनी पीठ थपथपा ली थी। बताया जा रहा है कि राठौड़ ने जयपुर में हार की नैतिक जिम्मेदारी ले ली है लेकिन इतना जरूर है कि राठौड़ को लगातार दो बार मिली हार के बाद अब उन्हें शेखावाटी में प्रभारी बनाने से भाजपा जरूर विचार करेगी।

बाइट राजन चौधरी वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक


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