झुंझुनूं. मंडावा में मिली शिकस्त ने कद्दावर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ की राजनीति को भी बड़ा झटका दिया है. राठौड़ झुंझुनू में दो बार के उपचुनाव में प्रभारी रहे और दोनों ही बार पार्टी की हार हुई है.
दरअसल, राजेंद्र राठौड़ सदा से ही अपनी घुसपैठ झुंझुनूं की राजनीति में रखते रहे हैं. पहली बार राठौड़ को भाजपा के राज में सूरजगढ़ वासियों ने हार का मुंह दिखाया और उनके जिगरी दोस्त दिवंगत दिगंबर सिंह को मात दी थी. अब दूसरी बड़ी हार मंडावा ने तो झुंझुनू की राजनीति में राठौड़ की घुसपैठ को पूरी तरह से नकार दिया है.
दरअसल, विधानसभा सीट से 9 भाजपाई दावेदार थे. लेकिन किसी को भी टिकट नहीं देने पर अपने आप को ठगा सा महसूस करने वाले 9 प्रत्याशी मन मारकर प्रचार-प्रसार में जुटे जरूर थे. लेकिन जोश कहीं भी नजर नहीं आया. दबे स्वर में कई दावेदार तो कांग्रेसी पृष्ठभूमि रखने वाली सुशीला सींगड़ा को भाजपा प्रत्याशी बनाने का आरोप राठौड़ पर ही थोपते हैं. लेकिन पार्टी लाइन की वजह से खुलकर सामने नहीं आ पाते हैं.
वहीं जहां टिकट दिलाने के बाद राठौड़ ने श्रेय लिया. तो उसका लोगों ने सूत सहित चुकता करते हुए 33 हजार मतों से हराकर राठौड़ और उनके प्रत्याशी को नकार दिया. साथ ही मूल भाजपाइयों ने पार्टी को भी एक बार सबक सिखाया है. इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी पृष्ठभूमि के राजेंद्र भाम्बू को भी भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. अब एक बार फिर से मंडावा में कांग्रेसी प्रष्ठभूमी से आने वाली सुशीला को मिली शिकस्त ने पार्टीलाइन में ये संदेश दिया है कि भाजपा अब पैराशूट और कांग्रेसी को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे. यही भूल राजेंद्र राठौड़ से हो गई लगती है.
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कौन लेगा हार की जिम्मेदारी
राठौड़ ने भी मंडावा उपचुनाव में कांग्रेस की प्रधान सुशीला सींगड़ा को भाजपा का उम्मीदवार बनवाकर अपनी पीठ थपथपा ली थी. बताया जा रहा है कि राठौड़ ने जयपुर में हार की नैतिक जिम्मेदारी ले ली है, लेकिन इतना जरूर है कि राठौड़ को लगातार दो बार मिली हार के बाद अब उन्हें शेखावाटी में प्रभारी बनाने से भाजपा जरूर विचार करेगी.