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झालावाड़ में खरीफ की फसल पर तिहरा वार..कम बारिश, कोरोना और कीट की मार

झालावाड़ में खरीफ की फसल को इस बार तिहरा नुकसान होने की आशंका है. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस सीजन में कम बारिश, कीटों और फसली रोगों के असर, साथ ही कोरोना संक्रमण के दौर में लगी पाबंदियों के कारण फसलों के रखरखाव में आई दिक्कतों के कारण खरीफ की फसलों का उत्पादन औसत से भी कम रहने की संभावना है.

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Published : Nov 10, 2020, 11:39 AM IST

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किसानों पर मौसम की मार

झालावाड़. जिले में खरीफ की फसलों का उत्पादन इस बार औसत से भी कम रहने की संभावना है. कृषि विभाग ने आशंका जताई है कि इस सीजन में कम बारिश, फसली रोगों और कोरोना के कारण किसानों पर तिहरी मार पड़ने वाली है. जिले में कृषि लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है. यहां खरीफ में सोयाबीन, उड़द, मक्का और चावल की बुवाई की जाती है तो वहीं रबी के सीजन में गेहूं, चना, सरसों की बुवाई की जाती है.

किसानो पर तिहरी मार

झालावाड़ में खरीफ की फसल लगभग पूरी तरह से कट चुकी है. कृषि विभाग ने भी चिंता जताई है कि इस बार फसलों का उत्पादन औसत से भी कम रह सकता है. झालावाड़ में करीबन 3 लाख 28 हजार 18 एकड़ में खरीफ की सभी फसलों की बुवाई की गई थी. जिनमें 2 लाख 32 हजार 250 एकड़ में सोयाबीन, 5340 एकड़ में चावल, 42300 एकड़ में मक्का, 36286 एकड़ में उड़द और 4227 एकड़ में मूंगफली की बुवाई की गई थी.

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रोग की भेंट चढ़ गई फली

पढ़ें- गुर्जर समाज के 41 सदस्यीय दल का बड़ा बयान, कहा- हमें स्वीकार नहीं विजय बैंसला का नेतृत्व

ये है मुख्य कारण..

राज्य में सबसे अधिक बारिश झालावाड़ में होती है. पिछले वर्ष जिले में करीब 1550 एमएम बारिश हुई थी. लेकिन इस सीजन में महज 700 एमएम बारिश हुई है. कृषि विभाग के उपनिदेशक कैलाश चंद मीणा के मुताबिक अल्प वर्षा के कारण खरीफ की फसलों के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ा है. उन्होंने बताया कि खरीफ की फसलें मुख्यतः बारिश पर ही निर्भर होती हैं, बारिश की कमी के कारण फसलों में काफी नुकसान देखने को मिला है.

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मौसम और हालात की बेरुखी

रोग व बीमारियों का प्रकोप..

खरीफ की फसलों के उत्पादन में कमी का एक बड़ा कारण फसल में लगने वाले रोग भी रहे हैं. सोयाबीन में पीलिया रोग दिखाई दे रहा है, मक्के की फसल में तना छेदक कीट, तिल व अन्य फसलों में काली मस्सी भी दिखाई दे रही है. जिसके कारण उत्पादन प्रभावित हुआ है.

पढ़ें- मैं हमेशा प्रदेश के लिए उपलब्ध रहा हूं और रहूंगा, किसी को इसमें आशंका नहीं होनी चाहिए: सचिन पायलट

कोरोना का प्रभाव..

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जिले में कृषि है प्रमुख आजीविका

कोरोना महामारी के दौरान लगाई गई पाबंदियों के चलते भी किसान समय पर खाद बीज नहीं ले पाए. फसलों का उचित रखरखाव भी नहींं कर पाए. जिसके कारण फसलों में काफी नुकसान देखने को मिला है. झालावाड़ में सोयाबीन का औसत उत्पादन 1200 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर होता है. उड़द का 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और मक्का का 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बार अल्प वर्षा और रोगों के कारण सोयाबीन का उत्पादन घटकर 1000 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर, उड़द का 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और मक्का का 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहने का अनुमान है.

झालावाड़. जिले में खरीफ की फसलों का उत्पादन इस बार औसत से भी कम रहने की संभावना है. कृषि विभाग ने आशंका जताई है कि इस सीजन में कम बारिश, फसली रोगों और कोरोना के कारण किसानों पर तिहरी मार पड़ने वाली है. जिले में कृषि लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है. यहां खरीफ में सोयाबीन, उड़द, मक्का और चावल की बुवाई की जाती है तो वहीं रबी के सीजन में गेहूं, चना, सरसों की बुवाई की जाती है.

किसानो पर तिहरी मार

झालावाड़ में खरीफ की फसल लगभग पूरी तरह से कट चुकी है. कृषि विभाग ने भी चिंता जताई है कि इस बार फसलों का उत्पादन औसत से भी कम रह सकता है. झालावाड़ में करीबन 3 लाख 28 हजार 18 एकड़ में खरीफ की सभी फसलों की बुवाई की गई थी. जिनमें 2 लाख 32 हजार 250 एकड़ में सोयाबीन, 5340 एकड़ में चावल, 42300 एकड़ में मक्का, 36286 एकड़ में उड़द और 4227 एकड़ में मूंगफली की बुवाई की गई थी.

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ये है मुख्य कारण..

राज्य में सबसे अधिक बारिश झालावाड़ में होती है. पिछले वर्ष जिले में करीब 1550 एमएम बारिश हुई थी. लेकिन इस सीजन में महज 700 एमएम बारिश हुई है. कृषि विभाग के उपनिदेशक कैलाश चंद मीणा के मुताबिक अल्प वर्षा के कारण खरीफ की फसलों के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ा है. उन्होंने बताया कि खरीफ की फसलें मुख्यतः बारिश पर ही निर्भर होती हैं, बारिश की कमी के कारण फसलों में काफी नुकसान देखने को मिला है.

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रोग व बीमारियों का प्रकोप..

खरीफ की फसलों के उत्पादन में कमी का एक बड़ा कारण फसल में लगने वाले रोग भी रहे हैं. सोयाबीन में पीलिया रोग दिखाई दे रहा है, मक्के की फसल में तना छेदक कीट, तिल व अन्य फसलों में काली मस्सी भी दिखाई दे रही है. जिसके कारण उत्पादन प्रभावित हुआ है.

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जिले में कृषि है प्रमुख आजीविका

कोरोना महामारी के दौरान लगाई गई पाबंदियों के चलते भी किसान समय पर खाद बीज नहीं ले पाए. फसलों का उचित रखरखाव भी नहींं कर पाए. जिसके कारण फसलों में काफी नुकसान देखने को मिला है. झालावाड़ में सोयाबीन का औसत उत्पादन 1200 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर होता है. उड़द का 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और मक्का का 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बार अल्प वर्षा और रोगों के कारण सोयाबीन का उत्पादन घटकर 1000 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर, उड़द का 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और मक्का का 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहने का अनुमान है.

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