झालावाड़. जिले की जनता पेयजल के लिए मुख्य तौर पर नदियों पर निर्भर है और अगर बात करें झालावाड़ शहर की तो यहां के लोग कालीसिंध नदी पर निर्भर है. इसी नदी से पानी पीएचईडी विभाग द्वारा टंकियों में संग्रहित किया जाता है और उसके बाद फिल्टर करते हुए लोगों तक पहुंचाया जाता है. बीते सालों की बात करें तो कभी भी यह स्थिति नहीं आई कि काली सिंध नदी में पानी की कमी हो लेकिन फिर भी कभी बारिश कम होती है तो भी कालीसिंध नदी में कुछ ऐसी देह है जिनमें काफी भारी मात्रा में पानी भरा हुआ रहता है.
कालीसिंध नदी में मुख्य तौर पर पीपाजी की देह, बिंदु देह और बलिंडा घाट का देह. जहां पर कभी भी पानी का स्तर कम नहीं होता है. वहीं झालावाड़ शहर का ऐतिहासिक जल प्रबंधन भी लोगों को प्यासा नहीं रहने देता है. झालावाड़ के आस पास तकरीबन 9 तालाब है जिनमें मुख्य रूप से गावड़ी का तालाब, कृष्ण सागर, नया तालाब, दुर्गापुरा का तालाब, खंड्या का तालाब व धनवाड़ा का तालाब मुख्य है. इन तालाबों की रोचक बात यह है कि यह सभी तालाब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.
बारिश के दिनों में जब कभी भी एक तालाब भरता है तो उसका पानी ओवर फ्लो होते हुए दूसरे तालाब में चला जाता है. तालाबों में गांवड़ी तालाब का पानी भरने के बाद धोरों से पानी छोटी कोठी तक आ जाता है और उसके बाद छोटी कोठी से पानी खंड्या तालाब में आ जाता है वहां से यह पानी धनवाड़ा तालाब में चला जाता है. वही कृष्ण सागर का पानी नया तालाब में और वहां से गोदाम की तलाई और मंगलपुरा टेक तक पानी पहुंच जाता है. जब सारे तालाब भर जाते हैं तो यह पानी कालीसिंध नदी और आहू नदी में चला जाता है.
झालावाड़ में आज भी लोग बावड़ियों और कुओ से पानी भरते हुए नजर आ जाते हैं. बावडियों में यहां पर मुख्य तौर पर चंद्रावत जी की बावड़ी, गर्ल्स स्कूल की बावड़ी, खारी बावड़ी, पीडब्ल्यूडी की बावड़ी और रमणीक नाथ की बावड़ी है और कुआं में काकाजी का कुआं और ईदगाह का कुआं इनमें पानी का इतना अथाह भंडार है कि लोग आज भी यहां से पानी भरते है.