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स्पेशल: बारिश की बेरुखी ने बढ़ाई किसानों की चिंता, बर्बादी की कगार पर फसलें - झालावाड़ में खेती

प्रदेश में सबसे ज्यादा बारिश होने वाले झालावाड़ जिले के किसानों को इस बार कम बारिश ने चिंता में डूबा दिया है. बारिश न होने से फसलों की न तो बढ़ोतरी हो पा रही है और ना ही खेतों में लगी फसलों पर दवाइयों का कोई असर हो पा रहा है. ऐसे में किसान बारिश का इंतजार करते-करते भविष्य को लेकर भी काफी चिंतित हैं. देखिये ये रिपोर्ट...

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फसलों को लेकर चिंतित हैं किसान
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Published : Aug 14, 2020, 10:14 PM IST

झालावाड़. राजस्थान के चेरापूंजी कहे जाने वाले झालावाड़ के किसानों की चिंताएं फिर से बढ़ गई हैं. प्रदेश में राजधानी सहित कई हिस्सों में मानसून सक्रिय हो चुका है. लेकिन झालावाड़ के किसानों को अभी भी बारिश का इंतजार है. राजस्थान में सबसे ज्यादा बारिश होने वाले जिलों में झालावाड़ का नाम आता है, लेकिन मानसून की बेरुखी ने इस बार किसानों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है. फसलों की बुवाई के बाद से किसान अभी तक अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं. किसानों का इंतजार अभी खत्म नहीं हो पा रहा है, जिससे किसानों की फसलों में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है.

फसलों को लेकर चिंतित हैं किसान

बारिश न होने से फसलों में औसत वृद्धि भी नहीं हो पा रही है. साथ ही पौधों में दवाइयों का भी असर नहीं हो रहा है, जिसके चलते खरपतवार से पौधों को नुकसान होने लग गया है. जिले में कम बारिश का असर बुआई में भी देखने को मिला है. किसानों ने इस साल उड़द की 1 हजार हेक्टेयर कम बुवाई की है. ऐसे में इस बार 44 हजार हेक्टेयर में ही उड़द की बुवाई हुई है.

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बारिश न होने से फसलें हो रहीं खराब

यह भी पढ़ेंः स्पेशल रिपोर्ट: बादलों ने मोड़ा मुंह, झालावाड़ के बांध पड़े खाली, बढ़ी किसानों की चिंता

किसानों ने बताया कि समय पर बारिश न हो पाने के कारण फसलों की ग्रोथ नहीं हो पा रही है. साथ ही फसलों में रोग भी अधिक लग रहा है. ऐसे में जब पौधों में कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं, तो पानी की कमी के कारण पौधों में दवाइयों का असर भी नहीं हो पा रहा. जिससे कीटाणु और खरपतवार नष्ट नहीं हो रहे हैं. वो फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः SPECIAL: नागौर में बीते साल के मुकाबले मानसून रहा फीका, 75 MM कम बारिश से बुवाई 10 फीसदी घटी

किसानों ने बताया कि जिले में सबसे ज्यादा सोयाबीन (2 लाख 28 हजार हेक्टेयर) की खेती की गई है. ऐसे में बारिश की कमी के कारण सोयाबीन की फसल में पीलिया रोग बढ़ रहा है. इसके लिए जिस दवाई का इस्तेमाल करते हैं, उसके बाद पानी गिरना जरूरी होता है. लेकिन पानी भी नहीं गिर रहा है, जिससे दवाई का भी सही से उपयोग नहीं हो पा रहा है. वहीं बारिश नहीं होने से खेतों में सोयाबीन की फसल से ज्यादा खरपतवार बढ़ गई है, जिसके चलते स्प्रे के छिड़काव का असर भी नहीं हो पा रहा है.

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फसलों को लेकर चिंतित हैं किसान

जिले में मक्के की बुआई 42 हजार हेक्टेयर में की गई है. ऐसे में मक्के की फसल को लेकर किसानों ने बताया कि इसमें बारिश की कमी के कारण इल्ली के द्वारा मक्के के पेड़ के तने में नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे मक्के का पौधा बढ़ नहीं पा रहा है. कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं तो वह कुछ ही दिनों के लिए प्रभावी रहता है और बाद में वापस वहां पर इल्ली नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है.

यह भी पढ़ेंः Special: औसत बारिश में पिछड़ा कोटा, जुलाई में 10 सालों में सबसे कम बरसात, किसानों के सामने गहराया संकट

कृषि विभाग के उप निदेशक का कहना है कि जिले में बारिश तो पिछली बार के मुकाबले काफी कम हुई है, जिससे किसानों को थोड़ी परेशानी भी हुई है. लेकिन इसका एक अच्छा पहलू यह भी है कि किसानों को इस बार बारिश नहीं होने से खरपतवार हटाने का अधिक समय मिला. साथ ही बारिश नहीं होने से किसान खरपतवार हटाने के लिए केमिकल का नहीं. बल्कि मजदूरों का इस्तेमाल काम कर रहे हैं, जिससे जमीन भी उपजाऊ बनी हुई है तथा पौधों में भी केमिकल का इस्तेमाल कम हो रहा है, जो पौधों के लिए अच्छा साबित होगा. बता दें कि झालावाड़ जिले में औसत 950 एमएम बारिश होती है. लेकिन अब तक 398 एमएम बारिश ही हो पाई है. जबकि पिछले साल 15 अगस्त के पहले तक 718 एमएम बारिश हो चुकी थी.

झालावाड़. राजस्थान के चेरापूंजी कहे जाने वाले झालावाड़ के किसानों की चिंताएं फिर से बढ़ गई हैं. प्रदेश में राजधानी सहित कई हिस्सों में मानसून सक्रिय हो चुका है. लेकिन झालावाड़ के किसानों को अभी भी बारिश का इंतजार है. राजस्थान में सबसे ज्यादा बारिश होने वाले जिलों में झालावाड़ का नाम आता है, लेकिन मानसून की बेरुखी ने इस बार किसानों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है. फसलों की बुवाई के बाद से किसान अभी तक अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं. किसानों का इंतजार अभी खत्म नहीं हो पा रहा है, जिससे किसानों की फसलों में काफी नुकसान देखने को मिल रहा है.

फसलों को लेकर चिंतित हैं किसान

बारिश न होने से फसलों में औसत वृद्धि भी नहीं हो पा रही है. साथ ही पौधों में दवाइयों का भी असर नहीं हो रहा है, जिसके चलते खरपतवार से पौधों को नुकसान होने लग गया है. जिले में कम बारिश का असर बुआई में भी देखने को मिला है. किसानों ने इस साल उड़द की 1 हजार हेक्टेयर कम बुवाई की है. ऐसे में इस बार 44 हजार हेक्टेयर में ही उड़द की बुवाई हुई है.

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बारिश न होने से फसलें हो रहीं खराब

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किसानों ने बताया कि समय पर बारिश न हो पाने के कारण फसलों की ग्रोथ नहीं हो पा रही है. साथ ही फसलों में रोग भी अधिक लग रहा है. ऐसे में जब पौधों में कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं, तो पानी की कमी के कारण पौधों में दवाइयों का असर भी नहीं हो पा रहा. जिससे कीटाणु और खरपतवार नष्ट नहीं हो रहे हैं. वो फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

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किसानों ने बताया कि जिले में सबसे ज्यादा सोयाबीन (2 लाख 28 हजार हेक्टेयर) की खेती की गई है. ऐसे में बारिश की कमी के कारण सोयाबीन की फसल में पीलिया रोग बढ़ रहा है. इसके लिए जिस दवाई का इस्तेमाल करते हैं, उसके बाद पानी गिरना जरूरी होता है. लेकिन पानी भी नहीं गिर रहा है, जिससे दवाई का भी सही से उपयोग नहीं हो पा रहा है. वहीं बारिश नहीं होने से खेतों में सोयाबीन की फसल से ज्यादा खरपतवार बढ़ गई है, जिसके चलते स्प्रे के छिड़काव का असर भी नहीं हो पा रहा है.

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फसलों को लेकर चिंतित हैं किसान

जिले में मक्के की बुआई 42 हजार हेक्टेयर में की गई है. ऐसे में मक्के की फसल को लेकर किसानों ने बताया कि इसमें बारिश की कमी के कारण इल्ली के द्वारा मक्के के पेड़ के तने में नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे मक्के का पौधा बढ़ नहीं पा रहा है. कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं तो वह कुछ ही दिनों के लिए प्रभावी रहता है और बाद में वापस वहां पर इल्ली नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है.

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कृषि विभाग के उप निदेशक का कहना है कि जिले में बारिश तो पिछली बार के मुकाबले काफी कम हुई है, जिससे किसानों को थोड़ी परेशानी भी हुई है. लेकिन इसका एक अच्छा पहलू यह भी है कि किसानों को इस बार बारिश नहीं होने से खरपतवार हटाने का अधिक समय मिला. साथ ही बारिश नहीं होने से किसान खरपतवार हटाने के लिए केमिकल का नहीं. बल्कि मजदूरों का इस्तेमाल काम कर रहे हैं, जिससे जमीन भी उपजाऊ बनी हुई है तथा पौधों में भी केमिकल का इस्तेमाल कम हो रहा है, जो पौधों के लिए अच्छा साबित होगा. बता दें कि झालावाड़ जिले में औसत 950 एमएम बारिश होती है. लेकिन अब तक 398 एमएम बारिश ही हो पाई है. जबकि पिछले साल 15 अगस्त के पहले तक 718 एमएम बारिश हो चुकी थी.

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