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स्पेशल: नहीं थम रही अन्नदाताओं की मुसीबतें...काली मस्सी के प्रकोप से नहीं बचा किसानों के तिलों में तेल

झालावाड़ जिले में खरीफ के बाद अब रबी की फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इस साल बारिश ने जहां सोयाबीन और अन्य फसलों कहर ढाया, तो वहीं रबी सीजन में पानी की कमी के साथ तरह-तरह के रोग किसानों को सताने लगे हैं. वर्तमान में किसान काली मस्सी और अन्य बीमारियों के प्रकोप से जूझ रहे हैं. जिले की सिंगोली और अन्य अंचलों में तिल के पौधे पीले पड़कर स्वतः ही नष्ट होने लग गए हैं. नतीजन किसान इन पौधों को उखाड़कर फेंक रहे हैं. देखें यह खास रिपोर्ट...

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नहीं थम रही अन्नदाताओं की मुसीबतें
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Published : Oct 17, 2020, 2:20 PM IST

झालावाड़: इस साल किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. पहले कोरोना के कहर के कारण किसानों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी. वहीं अब फसलों में लगने वाले रोगों ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. जिले की मुख्य फसलें जैसे सोयाबीन और मक्का पहले से ही बर्बाद हो चुकी हैं. ऐसे में अब तिल की फसल पर भी काली मस्सी रोग का भारी प्रकोप देखने को मिल रहा है. काली मस्सी रोग के कारण तिल के पौधे पीले पड़ रहे हैं. जिससे फसल में फूल तो आ रहे हैं, लेकिन तिल नहीं लग पा रहे हैं. जिससे किसान मायूस हो गए हैं.

काली मस्सी के प्रकोप से नहीं बचा किसानों के तिलों में तेल

क्या है काली मस्सी

काली मस्सी फसलों में लगने वाला एक प्रकार का रोग है. दिन में गर्मी, रात में सर्दी और नमी वाले मौसम में काली मस्सी का प्रकोप रबी सीजन की हर फसल पर दिखाई देता है. इसके असर में आने के बाद पौधे सूर्य की रोशनी में फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया नहीं कर पाते, जिससे भोजन नहीं बनता. नतीजतन पौधे की बढ़वार रुक जाती है. धीरे-धीरे पौधा पीला पड़कर नष्ट हो जाता है. समय रहते देखरेख नहीं होने की दशा में पौधा व फसल चौपट हो जाती है.

झालावाड़ में करीब 600 हेक्टेयर भूभाग में किसानों ने तिल की खेती की है. किसानों ने बड़ी उम्मीदों के साथ तिल की खेती की थी और शुरुआत में अच्छे नतीजे भी देखने को मिल रहे थे. तिल के पौधे अच्छे तरीके से बड़े हो रहे थे और उनमें फूल भी आ गए थे. लेकिन तिल में काली मस्सी के प्रकोप के कारण किसानों की ये फसल भी बर्बादी की कगार पर पहुंच रही है.

4 से 5 बीघा में बोई गई है तिल की फसल

किसान ओमप्रकाश ने बताया कि उसने 4 से 5 बीघा में तिल की फसल बो रखी है. लेकिन अब तिल में काली मस्सी के रोग के कारण उनमें तिल नहीं लग पा रहे हैं. जिससे पौधे का कोई मतलब नहीं रह गया है. फसल में जितनी लागत लगाई गई थी, अब वह भी मिलने की उम्मीद नहीं लग रही है.

पढे़ं: Special: रात के समय रोशनी से जगमगाएंगे उदयपुर के पर्यटन स्थल

किसान देवीलाल बताते हैं कि पहले उनके सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई. ऐसे में अब काली मस्सी रोग के कारण तिल की फसल भी बर्बादी की कगार पर पहुंच चुकी है. काली मस्सी रोग के कारण पौधे पीले पड़ रहे हैं. जिससे पौधों के फूल झड़ कर नीचे गिर रहे हैं. जिससे अब पौधों में तिल नहीं आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि काली मस्सी के प्रकोप से बचने के लिए उन्होंने प्रशासन को भी अवगत करवाया है. लेकिन ना तो उनको उचित मार्गदर्शन मिल पाया और ना ही उनका कोई सर्वे करवाया गया है.

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नहीं थम रही अन्नदाताओं की मुसीबतें

यह करें किसान

  • फसल में मेटालेजिम व मेकोजैव कीटनाशक का छिड़काव करें.
  • यह छिड़काव फसल के 30 से 35, 55 से 60 व 70 दिन के होने पर करें.
  • पीला पड़ चुका पौधा तत्काल उखाड़कर फेंक दें.

अनदेखी का परिणाम

  • समय रहते देखरेख नहीं होने पर फसल चौपट हो जाएगी.
  • उत्पादन प्रभावित होगा. लागत निकालना मुश्किल होगी.
  • एक से दूसरे और दूसरे से बाकी पौधों में यह रोग बढ़ता जाएगा.

किसान घनश्याम भील के मुताबिक उन्होंने मजदूरी और बीज सहित करीब 5 हजार की लागत से 5 बीघा में तिल की फसल बोई थी. लेकिन अब वह पूरी तरह से बर्बाद होती जा रही है. फसल को रोग से बचाने के लिए उन्होंने काली मस्सीरोधक और अन्य केमिकल दवाइयों का भी छिड़काव किया, लेकिन फसलों में कोई सुधार होता हुआ नजर नहीं आ रहा है.

कृषि विभाग के उपनिदेशक कैलाश चंद मीणा का कहना है कि झालावाड़ की जमीन में अधिक बारिश के चलते नमी अधिक रहती है. जबकि तिल की फसल कम बारिश के क्षेत्रों में अच्छे से होती है. ऐसे में तिल की फसल में दिक्कत आ रही है.

झालावाड़: इस साल किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. पहले कोरोना के कहर के कारण किसानों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी. वहीं अब फसलों में लगने वाले रोगों ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. जिले की मुख्य फसलें जैसे सोयाबीन और मक्का पहले से ही बर्बाद हो चुकी हैं. ऐसे में अब तिल की फसल पर भी काली मस्सी रोग का भारी प्रकोप देखने को मिल रहा है. काली मस्सी रोग के कारण तिल के पौधे पीले पड़ रहे हैं. जिससे फसल में फूल तो आ रहे हैं, लेकिन तिल नहीं लग पा रहे हैं. जिससे किसान मायूस हो गए हैं.

काली मस्सी के प्रकोप से नहीं बचा किसानों के तिलों में तेल

क्या है काली मस्सी

काली मस्सी फसलों में लगने वाला एक प्रकार का रोग है. दिन में गर्मी, रात में सर्दी और नमी वाले मौसम में काली मस्सी का प्रकोप रबी सीजन की हर फसल पर दिखाई देता है. इसके असर में आने के बाद पौधे सूर्य की रोशनी में फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया नहीं कर पाते, जिससे भोजन नहीं बनता. नतीजतन पौधे की बढ़वार रुक जाती है. धीरे-धीरे पौधा पीला पड़कर नष्ट हो जाता है. समय रहते देखरेख नहीं होने की दशा में पौधा व फसल चौपट हो जाती है.

झालावाड़ में करीब 600 हेक्टेयर भूभाग में किसानों ने तिल की खेती की है. किसानों ने बड़ी उम्मीदों के साथ तिल की खेती की थी और शुरुआत में अच्छे नतीजे भी देखने को मिल रहे थे. तिल के पौधे अच्छे तरीके से बड़े हो रहे थे और उनमें फूल भी आ गए थे. लेकिन तिल में काली मस्सी के प्रकोप के कारण किसानों की ये फसल भी बर्बादी की कगार पर पहुंच रही है.

4 से 5 बीघा में बोई गई है तिल की फसल

किसान ओमप्रकाश ने बताया कि उसने 4 से 5 बीघा में तिल की फसल बो रखी है. लेकिन अब तिल में काली मस्सी के रोग के कारण उनमें तिल नहीं लग पा रहे हैं. जिससे पौधे का कोई मतलब नहीं रह गया है. फसल में जितनी लागत लगाई गई थी, अब वह भी मिलने की उम्मीद नहीं लग रही है.

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किसान देवीलाल बताते हैं कि पहले उनके सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई. ऐसे में अब काली मस्सी रोग के कारण तिल की फसल भी बर्बादी की कगार पर पहुंच चुकी है. काली मस्सी रोग के कारण पौधे पीले पड़ रहे हैं. जिससे पौधों के फूल झड़ कर नीचे गिर रहे हैं. जिससे अब पौधों में तिल नहीं आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि काली मस्सी के प्रकोप से बचने के लिए उन्होंने प्रशासन को भी अवगत करवाया है. लेकिन ना तो उनको उचित मार्गदर्शन मिल पाया और ना ही उनका कोई सर्वे करवाया गया है.

राजस्थान हिंदी न्यूज, rajathan latest news, jhalawar news in hindi, किसानों की फसलें खराब
नहीं थम रही अन्नदाताओं की मुसीबतें

यह करें किसान

  • फसल में मेटालेजिम व मेकोजैव कीटनाशक का छिड़काव करें.
  • यह छिड़काव फसल के 30 से 35, 55 से 60 व 70 दिन के होने पर करें.
  • पीला पड़ चुका पौधा तत्काल उखाड़कर फेंक दें.

अनदेखी का परिणाम

  • समय रहते देखरेख नहीं होने पर फसल चौपट हो जाएगी.
  • उत्पादन प्रभावित होगा. लागत निकालना मुश्किल होगी.
  • एक से दूसरे और दूसरे से बाकी पौधों में यह रोग बढ़ता जाएगा.

किसान घनश्याम भील के मुताबिक उन्होंने मजदूरी और बीज सहित करीब 5 हजार की लागत से 5 बीघा में तिल की फसल बोई थी. लेकिन अब वह पूरी तरह से बर्बाद होती जा रही है. फसल को रोग से बचाने के लिए उन्होंने काली मस्सीरोधक और अन्य केमिकल दवाइयों का भी छिड़काव किया, लेकिन फसलों में कोई सुधार होता हुआ नजर नहीं आ रहा है.

कृषि विभाग के उपनिदेशक कैलाश चंद मीणा का कहना है कि झालावाड़ की जमीन में अधिक बारिश के चलते नमी अधिक रहती है. जबकि तिल की फसल कम बारिश के क्षेत्रों में अच्छे से होती है. ऐसे में तिल की फसल में दिक्कत आ रही है.

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