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जालोरः रत्नावटी के प्राचीन मंदिर खोते जा रहे अपना इतिहास, जरूरत है सहेजने की

जालोर उपखंड मुख्यालय से 15 किमी दूर रत्नावटी नगरी है, जिसे वर्तमान में रतनपुर के नाम से जाना जाता है. इस गांव में प्राचीन शिवालय के खंडहर खड़े हैं. जो लापरवाही और अनदेखी के चलते बबूल की झाड़ियों घिर चुके है. इस अवस्था में भी यह प्राचीन मंदिर अपने अतीत को बयां कर रहे है. साथ ही इनकी भव्य गाथा दर्शकों के मन में साकार होती सी प्रतीत हो रही है. सैकड़ों साल पुरानी पुरातन संपदाओं को सहेजने की जरूरत है. रानीवाड़ा क्षेत्र में अनेक विरासत खंडहर हैं, उन्हें सहेजने वाला कोई नहीं है.

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रत्नावटी के प्राचीन मंदिर खोते जा रहे इतिहास
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Published : Apr 16, 2020, 5:17 PM IST

रानीवाड़ा (जालोर). किसी भी क्षेत्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है. क्षेत्र का इतिहास जितना गौरवशाली होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊंचा माना जाएगा. लेकिन आज के समय में लोग अपने इतिहास के बारे में कुछ नहीं जानते है. जिसके चलते उनका इतिहास गहरे अंधेरे में खोता जा रहा है.

रत्नावटी के प्राचीन मंदिर खोते जा रहे इतिहास

ऐसा ही कुछ जालोर के उपखण्ड क्षेत्र में रत्नावटी नगरी के नाम से प्रसिद्ध रतनपुर गांव का खास इतिहास है, जिसकी पुरातन संपदा चारों ओर बिखरी हुई है. जो अंधेरों में खोती जा रही है. वहीं गांव के ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव में रत्नावटी मंदिर, जैन मंदिर और शिव मंदिर हुआ करता था. जहां रोजाना पूजा-आरती 2 सौ साल पूर्व बाहरी आक्राताओं ने लुटने की मांशा से इन मंदिरों पर आक्रमण कर दिया. जिनको बचाने के लिए गांव के लोगों ने अपनी जान की भी परवा नहीं की, लेकिन आज यह मंदिर अपने इतिहास के साथ-साथ अपना वर्तमान की भूलता जा रहा है.

इन कलाकृतियों का कोई कद्रदान नहीं
इन प्राचीन खंडरों के गुम्बद के नीचे जमीन पर एक मूर्ति है. जो देखने पर कोई जैन मूर्ति प्रतीत होती है. ऐसा कहा जाता है कि रत्नावटी नगरी प्राचीन काल में जैन नगरी हुआ करती थी. उसका एक दरवाजा वर्तमान में सूरजवाड़ा पर सूरजपोल के नाम से हुआ करता था. रत्नावटी नगरी का ऐतिहासिक महत्व भी किसी मायने मे कम नहीं. यहां के मंदिरों और अन्य स्थलों पर लगाए गए एक-एक पत्थर की कलाकृति बेजोड़ है. कलाकृतियों से उकरे पत्थर के वे टुकड़े अब मीलों के दायरे में फैले क्षेत्र में इधर-उधर पड़े अपनी दयनीय स्थिति को बयां कर रहे हैं. कलाकृतियों की बदौलत जो पत्थर अपनी खूबसूरती पर इठलाया करते थे, उनका कद्रदान अब कोई नहीं है. जिसके चलते वे अपनी पहचान खोती जा रही है.

पढ़ेंः जालोरः गुजरात से अपने घर आया शख्स, प्रशासन ने भेजा क्वॉरेंटाइन सेंटर

चार स्तंभों पर टिका कलात्मक मंडप
पूर्व प्रधानाध्यापक छैलसिंह देवड़ा ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने गांव में स्थित खंडहरनुमा मंदिर के इतिहास के बारे में काफी कुछ बताया है, लेकिन उसकी कोई तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है. वहीं खंडहर में स्थित शिलालेख पर उकेरित जानकारी अस्पष्ट है, लेकिन इसका मंडप जो चार कलात्मक स्तंभों पर टिका है, जो आज भी अपनी कलात्मकता के लिए देलवाड़ा शिल्पकृति से होड़ लेता है. वहीं इस मंडप के ऊपरी गुम्बद में विभिन्न देवी-देवताओं, यक्ष, गंधर्व, किन्नर और पशु- पक्षियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं. जो मंडप को और भी ज्यादा सुंदर बनाती हैं.

रानीवाड़ा (जालोर). किसी भी क्षेत्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है. क्षेत्र का इतिहास जितना गौरवशाली होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊंचा माना जाएगा. लेकिन आज के समय में लोग अपने इतिहास के बारे में कुछ नहीं जानते है. जिसके चलते उनका इतिहास गहरे अंधेरे में खोता जा रहा है.

रत्नावटी के प्राचीन मंदिर खोते जा रहे इतिहास

ऐसा ही कुछ जालोर के उपखण्ड क्षेत्र में रत्नावटी नगरी के नाम से प्रसिद्ध रतनपुर गांव का खास इतिहास है, जिसकी पुरातन संपदा चारों ओर बिखरी हुई है. जो अंधेरों में खोती जा रही है. वहीं गांव के ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव में रत्नावटी मंदिर, जैन मंदिर और शिव मंदिर हुआ करता था. जहां रोजाना पूजा-आरती 2 सौ साल पूर्व बाहरी आक्राताओं ने लुटने की मांशा से इन मंदिरों पर आक्रमण कर दिया. जिनको बचाने के लिए गांव के लोगों ने अपनी जान की भी परवा नहीं की, लेकिन आज यह मंदिर अपने इतिहास के साथ-साथ अपना वर्तमान की भूलता जा रहा है.

इन कलाकृतियों का कोई कद्रदान नहीं
इन प्राचीन खंडरों के गुम्बद के नीचे जमीन पर एक मूर्ति है. जो देखने पर कोई जैन मूर्ति प्रतीत होती है. ऐसा कहा जाता है कि रत्नावटी नगरी प्राचीन काल में जैन नगरी हुआ करती थी. उसका एक दरवाजा वर्तमान में सूरजवाड़ा पर सूरजपोल के नाम से हुआ करता था. रत्नावटी नगरी का ऐतिहासिक महत्व भी किसी मायने मे कम नहीं. यहां के मंदिरों और अन्य स्थलों पर लगाए गए एक-एक पत्थर की कलाकृति बेजोड़ है. कलाकृतियों से उकरे पत्थर के वे टुकड़े अब मीलों के दायरे में फैले क्षेत्र में इधर-उधर पड़े अपनी दयनीय स्थिति को बयां कर रहे हैं. कलाकृतियों की बदौलत जो पत्थर अपनी खूबसूरती पर इठलाया करते थे, उनका कद्रदान अब कोई नहीं है. जिसके चलते वे अपनी पहचान खोती जा रही है.

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चार स्तंभों पर टिका कलात्मक मंडप
पूर्व प्रधानाध्यापक छैलसिंह देवड़ा ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने गांव में स्थित खंडहरनुमा मंदिर के इतिहास के बारे में काफी कुछ बताया है, लेकिन उसकी कोई तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है. वहीं खंडहर में स्थित शिलालेख पर उकेरित जानकारी अस्पष्ट है, लेकिन इसका मंडप जो चार कलात्मक स्तंभों पर टिका है, जो आज भी अपनी कलात्मकता के लिए देलवाड़ा शिल्पकृति से होड़ लेता है. वहीं इस मंडप के ऊपरी गुम्बद में विभिन्न देवी-देवताओं, यक्ष, गंधर्व, किन्नर और पशु- पक्षियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं. जो मंडप को और भी ज्यादा सुंदर बनाती हैं.

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