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स्पेशल रिपोर्ट: जान जोखिम में डाल कर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर स्कूल जाते हैं विद्यार्थी, प्रशासन ने मूंदी आंखे

जालोर के चितलवाना उपखण्ड के लालपुरा गांव की चितलवाना जाने वाली रपट लूणी नदी के बहाव के कारण बह गई है. ऐसे में प्रशासन की अनदेखी के बाद ग्रामीणों ने अस्थाई पुल का निर्माण किया है. जिसपर चलना खतरे से भरा है. लेकिन गांव वाले भी क्या जब प्रशासन की ओर से समाधान नहीं हुआ तो वो भी क्या करते..देखिए स्पेशल रिपोर्ट में कैसे जुगाड़ पुल से बच्चे स्कूल जा रहे है..

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Published : Sep 12, 2019, 9:16 PM IST

lalpura village in jalore, जालोर का लालपुरा गांव

जालोर. जब प्रशासन देखकर भी आंखे मूंद ले तो फिर जुगाड़ का सहारा लेना पड़ता है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है. चितलवाना उपखण्ड के लालपुरा गांव से. जहां लूण नदी में पानी आने के कारण लालपुरा गांव पिछले एक महीने से टापू बना हुआ है. लेकिन प्रशासन जाकर भी अनजान बना हुआ है और गांव से बच्चे और बड़े जान जोखिम में डाल रहे है.

प्रशासन की अनदेखी के चलते लालपुरा गांव में जान जोखिम में डाल रहे स्कूली बच्चे..देखिए रिपोर्ट

दरअसल, लालपुरा गांव से गुजर रही लूणी नदी पर रपट बनी हुई थी, लेकिन लम्बे समय से वो क्षतिग्रस्त थी. इस साल नदी में पानी आने के कारण रपट नदी में बह गई. जिसके बाद से अभिभावकों के साथ विद्यार्थियों के लिए यह रास्ता मुसीबत बन गया. ग्रामीणों का आरोप है कि इस मार्ग को लेकर कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत करवाया, लेकिन किसी भी प्रकार से समाधान नहीं हुआ. जिसके बाद परेशान ग्रामीणों ने अपने स्तर और लकड़ियों को पानी में डालकर उसके ऊपर रेत के बैग भर वैकल्पिक रास्ता तैयार किया गया. इस कच्चे जुगाड़ के रास्ते से बच्चे रोजाना नदी पार करके स्कूल जाते है. इसमें कई बार पानी का वेग तेज होने पर रेत से भरे हुए थैले आगे पीछे खिसक जाते है. ऐसे में अगर स्कूली छात्र नदी पार कर रहे हो और पानी के वेग के साथ मिट्टी से भरे बेग खिचक गए तो बड़ा हादसा हो सकता है.

पढ़ें- जालोर: महिला ने नर्मदा नहर में कूदकर की आत्महत्या

बता दें कि इससे पहले कई दिन तक छात्र स्कूल नहीं जा पाए और कुछ दिनों तक 50 किमी की दूरी तय करके स्कूल गए लेकिन, अब ग्रामीणों ने रेत के कट्टे भरकर व लकड़ी से एक जुगाड़ का पुल बनाया है और उसी पुल से जान जोखिम में डालकर ग्रामीण उस पुल से बच्चों को पार करवाते है. इस दौरान अगर जरा सी चूक भी इन विद्यार्थियों के लिए जान पर भारी पड़ सकती है, लेकिन पढ़ाई के लिए बच्चे मजबूर होकर अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल जाना पड़ रहा है. वहीं बच्चों को नदी पार करवाने के लिए ग्रामीण सुबह बच्चों को नदी पार करवाते है और दोपहर को छुट्टी होने पर वापस नदी पार करवाकर घर लाते है.

पढ़ें- मुंह में रुपए दबाकर नाचता हुआ पुलिसकर्मी, VIRAL VIDEO

प्रशासन जानकर भी बना अनजान
लालपुरा गांव में उच्च प्राथमिक तक स्कूल होने के कारण 60-70 विद्यार्थी राजकीय माध्यमिक विद्यालय रामपुरा और संघवी लहरी देवी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चितलवाना में पढते है. जो सभी विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर रहे है. इस बात की प्रशासन को भी जानकारी है. लेकिन प्रशासनिक अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है.

जालोर. जब प्रशासन देखकर भी आंखे मूंद ले तो फिर जुगाड़ का सहारा लेना पड़ता है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है. चितलवाना उपखण्ड के लालपुरा गांव से. जहां लूण नदी में पानी आने के कारण लालपुरा गांव पिछले एक महीने से टापू बना हुआ है. लेकिन प्रशासन जाकर भी अनजान बना हुआ है और गांव से बच्चे और बड़े जान जोखिम में डाल रहे है.

प्रशासन की अनदेखी के चलते लालपुरा गांव में जान जोखिम में डाल रहे स्कूली बच्चे..देखिए रिपोर्ट

दरअसल, लालपुरा गांव से गुजर रही लूणी नदी पर रपट बनी हुई थी, लेकिन लम्बे समय से वो क्षतिग्रस्त थी. इस साल नदी में पानी आने के कारण रपट नदी में बह गई. जिसके बाद से अभिभावकों के साथ विद्यार्थियों के लिए यह रास्ता मुसीबत बन गया. ग्रामीणों का आरोप है कि इस मार्ग को लेकर कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत करवाया, लेकिन किसी भी प्रकार से समाधान नहीं हुआ. जिसके बाद परेशान ग्रामीणों ने अपने स्तर और लकड़ियों को पानी में डालकर उसके ऊपर रेत के बैग भर वैकल्पिक रास्ता तैयार किया गया. इस कच्चे जुगाड़ के रास्ते से बच्चे रोजाना नदी पार करके स्कूल जाते है. इसमें कई बार पानी का वेग तेज होने पर रेत से भरे हुए थैले आगे पीछे खिसक जाते है. ऐसे में अगर स्कूली छात्र नदी पार कर रहे हो और पानी के वेग के साथ मिट्टी से भरे बेग खिचक गए तो बड़ा हादसा हो सकता है.

पढ़ें- जालोर: महिला ने नर्मदा नहर में कूदकर की आत्महत्या

बता दें कि इससे पहले कई दिन तक छात्र स्कूल नहीं जा पाए और कुछ दिनों तक 50 किमी की दूरी तय करके स्कूल गए लेकिन, अब ग्रामीणों ने रेत के कट्टे भरकर व लकड़ी से एक जुगाड़ का पुल बनाया है और उसी पुल से जान जोखिम में डालकर ग्रामीण उस पुल से बच्चों को पार करवाते है. इस दौरान अगर जरा सी चूक भी इन विद्यार्थियों के लिए जान पर भारी पड़ सकती है, लेकिन पढ़ाई के लिए बच्चे मजबूर होकर अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल जाना पड़ रहा है. वहीं बच्चों को नदी पार करवाने के लिए ग्रामीण सुबह बच्चों को नदी पार करवाते है और दोपहर को छुट्टी होने पर वापस नदी पार करवाकर घर लाते है.

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प्रशासन जानकर भी बना अनजान
लालपुरा गांव में उच्च प्राथमिक तक स्कूल होने के कारण 60-70 विद्यार्थी राजकीय माध्यमिक विद्यालय रामपुरा और संघवी लहरी देवी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चितलवाना में पढते है. जो सभी विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर रहे है. इस बात की प्रशासन को भी जानकारी है. लेकिन प्रशासनिक अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है.

Intro:ग्रामीणों का आरोप है की रास्ता बंद होने की जानकारी प्रशासन को देने के बाद भी उनकी तरफ से रास्ता बहाल करने की कोशिश नहीं की गई है। ऐसे में जुगाड़ के पुल से सेंकडों छात्र रोज़ स्कूल जा रहे है, लेकिन अगर कभी हादसा होता है तो सीधे तौर पर जालोर का प्रशासन जिम्मेदार होगा।



Body:जान जोखिम में डाल कर जुगाड़ के पुल से नदी पार करते है विद्यार्थी, ग्रामीणों ने रेत के थैले व लकड़ी से नदी पर बनाया जुगाड़ का पुल
जालोर
जब राम के साथ राज भी रूठ जाता है तो फिर जुगाड़ का सहारा लेना पड़ता है। ऐसा ही एक मामला है चितलवाना उपखण्ड के लालपुरा गांव का। दरअसल लूनी नदी में पानी आने के कारण लालपुरा गांव पिछले एक महीने से टापू बना हुआ है। जिसके कारण कई दिन तक छात्र स्कूल नहीं जा पाए और कुछ दिनों तक 50 किमी की दूरी तय करके स्कूल गए लेकिन, अब ग्रामीणों ने रेत के कट्टे भरकर व लकड़ी से एक जुगाड़ का पुल बनाया है और उसी पुल से जान जोखिम में डालकर ग्रामीण उस पुल से बच्चों को पार करवाते है। इस दौरान अगर जरा सी चूक भी इन विद्यार्थियों के लिए जान पर भारी पड़ सकती है, लेकिन तालीम के लिए सेंकडों छात्र मजबूर होकर अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल जाना पड़ रहा है। वहीं बच्चों को नदी पार करवाने के लिए ग्रामीण सुबह बच्चों को नदी पार करवाते है और दोपहर को छुट्टी होने पर वापस नदी पार करवाकर घर लाते है।
पानी के साथ बह गई रपट
लालपुरा गांव से गुजर रही लुणी नदी पर रपट बनी हुई थी, लेकिन लम्बे समय से वो क्षतिग्रस्त थी।।इस साल नदी में पानी आने के कारण रपट नदी में बह गई। जिसके बाद से अभिभावकों के साथ विद्यार्थियों के लिए यह रास्ता मुसीबत बन गया। ग्रामीणों का आरोप है कि इस मार्ग को लेकर कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत करवाया, लेकिन किसी भी प्रकार से समाधान नहीं हुआ। जिसके बाद परेशान ग्रामीणों ने अपने स्तर और लकड़ियों को पानी में डालकर उसके ऊपर रेत के बैग भर वैकल्पिक रास्ता तैयार किया गया। इस कच्चे जुगाड़ के रास्ते से बच्चे रोज़ नदी पार करके स्कूल जाते है। इसमें कई बार पानी का वेग तेज होने पर रेत से भरे हुए थैले आगे पीछे खिचक जाते है। ऐसे में अगर स्कूली छात्र नदी पार कर रहे हो और पानी के वेग के साथ मिट्टी से भरे बेग खिचक गए तो बड़ा हादसा हो सकता है।
प्रशासन जान कर बना अनजान
लालपुरा गांव में उच्च प्राथमिक तक स्कूल होने के कारण 60-70 विद्यार्थी राजकीय माध्यमिक विद्यालय रामपुरा व संघवी लहरी देवी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चितलवाना में पढते है जो सभी विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर रहे है। इस बात की प्रशासन को भी जानकारी है लेकिन प्रशासनिक अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहे है।

बाईट- मोहन लाल, छात्र
बाईट- नरेश, ग्रामीण
बाईट- श्रवण, ग्रामीण
बाईट- प्रियंका , छात्रा
बाईट- निरमा, छात्रा

Conclusion:
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