जालोर. जब प्रशासन देखकर भी आंखे मूंद ले तो फिर जुगाड़ का सहारा लेना पड़ता है. ऐसा ही एक मामला सामने आया है. चितलवाना उपखण्ड के लालपुरा गांव से. जहां लूण नदी में पानी आने के कारण लालपुरा गांव पिछले एक महीने से टापू बना हुआ है. लेकिन प्रशासन जाकर भी अनजान बना हुआ है और गांव से बच्चे और बड़े जान जोखिम में डाल रहे है.
दरअसल, लालपुरा गांव से गुजर रही लूणी नदी पर रपट बनी हुई थी, लेकिन लम्बे समय से वो क्षतिग्रस्त थी. इस साल नदी में पानी आने के कारण रपट नदी में बह गई. जिसके बाद से अभिभावकों के साथ विद्यार्थियों के लिए यह रास्ता मुसीबत बन गया. ग्रामीणों का आरोप है कि इस मार्ग को लेकर कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत करवाया, लेकिन किसी भी प्रकार से समाधान नहीं हुआ. जिसके बाद परेशान ग्रामीणों ने अपने स्तर और लकड़ियों को पानी में डालकर उसके ऊपर रेत के बैग भर वैकल्पिक रास्ता तैयार किया गया. इस कच्चे जुगाड़ के रास्ते से बच्चे रोजाना नदी पार करके स्कूल जाते है. इसमें कई बार पानी का वेग तेज होने पर रेत से भरे हुए थैले आगे पीछे खिसक जाते है. ऐसे में अगर स्कूली छात्र नदी पार कर रहे हो और पानी के वेग के साथ मिट्टी से भरे बेग खिचक गए तो बड़ा हादसा हो सकता है.
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बता दें कि इससे पहले कई दिन तक छात्र स्कूल नहीं जा पाए और कुछ दिनों तक 50 किमी की दूरी तय करके स्कूल गए लेकिन, अब ग्रामीणों ने रेत के कट्टे भरकर व लकड़ी से एक जुगाड़ का पुल बनाया है और उसी पुल से जान जोखिम में डालकर ग्रामीण उस पुल से बच्चों को पार करवाते है. इस दौरान अगर जरा सी चूक भी इन विद्यार्थियों के लिए जान पर भारी पड़ सकती है, लेकिन पढ़ाई के लिए बच्चे मजबूर होकर अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल जाना पड़ रहा है. वहीं बच्चों को नदी पार करवाने के लिए ग्रामीण सुबह बच्चों को नदी पार करवाते है और दोपहर को छुट्टी होने पर वापस नदी पार करवाकर घर लाते है.
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प्रशासन जानकर भी बना अनजान
लालपुरा गांव में उच्च प्राथमिक तक स्कूल होने के कारण 60-70 विद्यार्थी राजकीय माध्यमिक विद्यालय रामपुरा और संघवी लहरी देवी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चितलवाना में पढते है. जो सभी विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर जुगाड़ के पुल से नदी पार कर रहे है. इस बात की प्रशासन को भी जानकारी है. लेकिन प्रशासनिक अधिकारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है.