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आजादी के इतने साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम है जालोर का लालपुरा गांव... - जालोर में मूलभूत सुविधा नहीं की खबर

जालोर का लालपूरा गांव आज भी अपनी मूलभूत सुविधाओं से दूर है. गांव के लोगों का कहना है कि जब चुनाव आता है तो सांसद, विधायक सभी गांव में वोट के लिए आते हैं. बड़े-बड़े वादे करके चले जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद कोई भी इस गांव की सुध लेने नहीं आता है.

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Published : Sep 2, 2019, 5:08 AM IST

जालोर. राजस्थान की मरुगंगा कही जाने वाली लूणी नदी, यूं तो रेगिस्तान के क्षेत्र में वरदान मानी जाती है. लेकिन चितलवाना उपखण्ड का एक ऐसा गांव जिसके लिए यह अभिशाप है.

आजादी के इतने साल बाद भी मूलभूत सुवधाओं से महरूम है जालोर के लालपुरा गांव

दरअसल, चितलवाना उपखण्ड का लालपुरा गांव लूणी नदी के किनारे बसा हुआ है. इस गांव से ही लूणी नदी गुजरती है. लालपुरा से चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय की दूरी महज 10 किमी है. लेकिन जब लूनी नदी आती है, तो यह दूरी 50 किमी हो जाती है.

बता दें कि लालपुरा से चितलवाना जाने वाले रास्ते के ऊपर से ही लूणी नदी गुजरती है. इस रास्ते पर सालों पहले एक रपट बनी हुई थी, लेकिन यह कई सालों से टूटी हुई है. इसलिए पानी इस रपट के ऊपर से ही गुजरता है. जब पानी रपट के ऊपर से गुजरना शुरु होता है. तो इस गांव का उपखण्ड मुख्यालय से संपर्क टूट जाता है और इस बार भी यही हाल हुआ है. जिससे गांव के लोगों को 50 किमी की दूरी तय करके उपखण्ड मुख्यालय जाना पड़ता है.

स्कूली छात्र हुए प्रथम परख से वंचित

जब इस बार लूणी नदी का पानी आया, तो पहली मुसीबत स्कूली विद्यार्थियों के लिए लेकर आया है. इस गांव के 70-80 बच्चे चितलवाना में पढ़ते हैं. फिलहाल स्कूलों में प्रथम परख चल रहा है और लूनी नदी में पानी का भराव होने के कारण विद्यार्थियों स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में 70-80 छात्रों को प्रथम टेस्ट से वंचित रहना पड़ा. वहीं कुछ छात्र स्कूल जाना चाहते है, तो 50 किमी का चक्कर लगाकर स्कूल जाना पड़ता है.

यह भी पढ़ें- NRC एक संवेदनशील मामला है...इस पर जो आलाकमान का फैसला होगा वही मेरा होगाः गहलोत

मूलभूत सुविधाओं तक नहीं है गांव में

इस गांव में किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधा नहीं है. हर प्रकार की सुविधा के लिए उपखण्ड मुख्यालय पर ही निर्भर रहना पड़ता है. इसलिए ग्रामीणों को हर दिन चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय जाना पड़ता है. लेकिन जब आवागमन ही बंद है, तो कैसे जा पाएंगे यह सोचने वाली बात है. गांव में सुविधा के नाम पर एक आठवीं तक स्कूल है. इसके अलावा गांव में न तो कोई दुकान है और न ही अस्पताल और न ही इस गांव में आज तक कोई आवागमन का साधन विकसित हुआ है.

यह भी पढ़ें- अजमेरः बेटे के कान का दर्द ठीक नहीं होने पर पिता ने किया अस्पताल में हंगामा

हर छोटे-मोटे काम के लिए जाना पड़ता है चितलवाना

चितलवाना उपखंड मुख्यालय के साथ तहसील और पंचायत समिति भी है. वहीं उच्च माध्यमिक स्कूल, सरकारी अस्पताल, पशु चिकित्सालय, पुलिस थाना, बैंक सहित कई सुविधाओं के लिए चितलवाना जाना पड़ता है. यहां तक कि इस गांव की ग्राम पंचायत भी चितलवाना ही है. इसलिए छोटे-छोटे काम के लिए चितलवाना 50 किमी घूमकर जाना पड़ता है.

हर साल यही हालात होते हैं गांव के

इस रपट को टूटे हुए कई साल हो चुके है और हर दूसरे साल लूणी नदी आती है. तब यही हालात बनते है. लेकिन इन समस्या की तरफ न तो कोई अधिकारी ध्यान देते है और न ही जनप्रतिनिधि. अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर आजादी के 73 साल बाद भी इस गांव को एक पुल नसीब नहीं हुआ है. जिसके सहारे यह नदी के पानी को पार कर अपनी जरूरत का सामान भी खरीद कर ला सके.

जालोर. राजस्थान की मरुगंगा कही जाने वाली लूणी नदी, यूं तो रेगिस्तान के क्षेत्र में वरदान मानी जाती है. लेकिन चितलवाना उपखण्ड का एक ऐसा गांव जिसके लिए यह अभिशाप है.

आजादी के इतने साल बाद भी मूलभूत सुवधाओं से महरूम है जालोर के लालपुरा गांव

दरअसल, चितलवाना उपखण्ड का लालपुरा गांव लूणी नदी के किनारे बसा हुआ है. इस गांव से ही लूणी नदी गुजरती है. लालपुरा से चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय की दूरी महज 10 किमी है. लेकिन जब लूनी नदी आती है, तो यह दूरी 50 किमी हो जाती है.

बता दें कि लालपुरा से चितलवाना जाने वाले रास्ते के ऊपर से ही लूणी नदी गुजरती है. इस रास्ते पर सालों पहले एक रपट बनी हुई थी, लेकिन यह कई सालों से टूटी हुई है. इसलिए पानी इस रपट के ऊपर से ही गुजरता है. जब पानी रपट के ऊपर से गुजरना शुरु होता है. तो इस गांव का उपखण्ड मुख्यालय से संपर्क टूट जाता है और इस बार भी यही हाल हुआ है. जिससे गांव के लोगों को 50 किमी की दूरी तय करके उपखण्ड मुख्यालय जाना पड़ता है.

स्कूली छात्र हुए प्रथम परख से वंचित

जब इस बार लूणी नदी का पानी आया, तो पहली मुसीबत स्कूली विद्यार्थियों के लिए लेकर आया है. इस गांव के 70-80 बच्चे चितलवाना में पढ़ते हैं. फिलहाल स्कूलों में प्रथम परख चल रहा है और लूनी नदी में पानी का भराव होने के कारण विद्यार्थियों स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे में 70-80 छात्रों को प्रथम टेस्ट से वंचित रहना पड़ा. वहीं कुछ छात्र स्कूल जाना चाहते है, तो 50 किमी का चक्कर लगाकर स्कूल जाना पड़ता है.

यह भी पढ़ें- NRC एक संवेदनशील मामला है...इस पर जो आलाकमान का फैसला होगा वही मेरा होगाः गहलोत

मूलभूत सुविधाओं तक नहीं है गांव में

इस गांव में किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधा नहीं है. हर प्रकार की सुविधा के लिए उपखण्ड मुख्यालय पर ही निर्भर रहना पड़ता है. इसलिए ग्रामीणों को हर दिन चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय जाना पड़ता है. लेकिन जब आवागमन ही बंद है, तो कैसे जा पाएंगे यह सोचने वाली बात है. गांव में सुविधा के नाम पर एक आठवीं तक स्कूल है. इसके अलावा गांव में न तो कोई दुकान है और न ही अस्पताल और न ही इस गांव में आज तक कोई आवागमन का साधन विकसित हुआ है.

यह भी पढ़ें- अजमेरः बेटे के कान का दर्द ठीक नहीं होने पर पिता ने किया अस्पताल में हंगामा

हर छोटे-मोटे काम के लिए जाना पड़ता है चितलवाना

चितलवाना उपखंड मुख्यालय के साथ तहसील और पंचायत समिति भी है. वहीं उच्च माध्यमिक स्कूल, सरकारी अस्पताल, पशु चिकित्सालय, पुलिस थाना, बैंक सहित कई सुविधाओं के लिए चितलवाना जाना पड़ता है. यहां तक कि इस गांव की ग्राम पंचायत भी चितलवाना ही है. इसलिए छोटे-छोटे काम के लिए चितलवाना 50 किमी घूमकर जाना पड़ता है.

हर साल यही हालात होते हैं गांव के

इस रपट को टूटे हुए कई साल हो चुके है और हर दूसरे साल लूणी नदी आती है. तब यही हालात बनते है. लेकिन इन समस्या की तरफ न तो कोई अधिकारी ध्यान देते है और न ही जनप्रतिनिधि. अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर आजादी के 73 साल बाद भी इस गांव को एक पुल नसीब नहीं हुआ है. जिसके सहारे यह नदी के पानी को पार कर अपनी जरूरत का सामान भी खरीद कर ला सके.

Intro:गांव के बुजुर्ग लोगो का कहना है कि जब वोट आते है तो सांसद,विधायक सभी गांव में वोट के लिए आते है और बड़े-बड़े वादे करके जाते है, लेकिन जीतने के बाद कोई भी इस गांव की सुध नहीं लेता है।


Body:लूणी नदी का पानी बना एक गांव के लिए मुसीबत, आजादी के 73 साल बाद भी गांव को नसीब नही हुआ एक पुल, आवागमन करने के लिए ग्रामीण होते है परेशान
जालोर
राजस्थान की मरुगंगा कही जाने वाली लूणी नदी यू तो रेगिस्तान के क्षेत्र में वरदान मानी जाती है लेकिन चितलवाना उपखण्ड का एक ऐसा गांव जिसके लिए यह अभिशाप है।दरअसल चितलवाना उपखण्ड का लालपुरा गांव लूणी नदी के किनारे बसा हुआ है।इस गांव से ही लूणी नदी गुजरती है।लालपुरा से चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय की दूरी महज 10 किमी है, लेकिन जब लूनी नदी आती है तो यह दूरी 50 किमी हो जाती है। लालपुरा से चितलवाना जाने वाले रास्ते के ऊपर से ही लूणी नदी गुजरती है। इस रास्ते पर सालों पहले एक रपट बनी हुई थी लेकिन यह कई सालों से टूटी हुई है इसलिए पानी इस रपट के ऊपर से ही गुजरता है।जब पानी रपट के ऊपर से गुजरना शुरु होता है तो इस गांव का उपखण्ड मुख्यालय से संपर्क टूट जाता है और इस बार भी यही हाल हुआ है। गांव के लोगो को 50 किमी की दूरी तय करके उपखण्ड मुख्यालय जाना पड़ता है।
स्कूली छात्र हुए प्रथम परख से वंचित
जब इस बार लूणी नदी का पानी आया तो पहली मुसीबत स्कूली विद्यार्थियों के लिए लेकर आया है। इस गांव के 70-80 बच्चे चितलवाना पढ़ते है। फिलहाल स्कूलों में प्रथम परख चल रहे है और लूनी नदी में पानी का भराव होने के कारण विद्यार्थी स्कूल नही जा पा रहे है। ऐसे में 70-80 छात्रों को प्रथम टेस्ट से वंचित रहना पड़ा। वहीं कुछ छात्र स्कूल जाना चाहते है तो 50 किमी का चक्कर लगाकर स्कूल जाना पड़ता है।
मूलभूत सुविधाओं का है टोटा
इस गांव में किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधा नही है। हर प्रकार की सुविधा के उपखण्ड मुख्यालय पर ही है इसलिए ग्रामीणों को हर दिन चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय जाना पड़ता है, लेकिन जब आवागमन ही बंद है तो कैसे जा पाएंगे यह सोचने वाली बात है। गांव में सुविधा के नाम पर एक आठवीं स्कूल है इसके अलावा गांव में न तो कोई दुकान है और न ही अस्पताल और न ही इस गांव में आज तक कोई आवागमन का साधन है।
सभी सुविधाओं के लिए जाना पड़ता है चितलवाना
चितलवाना उपखंड मुख्यालय के साथ तहसील व पंचायत समिति भी है। वहीं उच्च माध्यमिक स्कूल, सरकारी अस्पताल,पशु चिकित्सालय, पुलिस थाना,बैंक सहित कई सुविधाओं के लिए चितलवाना जाना पड़ता है यहाँ तक कि इस गांव की ग्राम पंचायत भी चितलवाना ही है। इसलिए छोटे-छोटे काम के लिए चितलवाना 50 किमी घूमकर जाना पड़ता है।
5 किमी पैदल चलते है जब आवागमन का साधन नशीब होता है
लालपुरा से चितलवाना जाने वाले रास्ते पर लूणी नदी का पानी आता है तो इस गांव के बाशिंदे कुंडकी गांव तक 5 किमी पैदल आते है और वहाँ से बस में बैठकर गांधव,सिवाड़ा होकर चितलवाना उपखण्ड मुख्यालय पहुंचते है जिसकी दूरी 50 किमी होती है।
हर साल यह हालात बनते है गांव के
इस रपट को टूटे हुए कई साल हो चुके है और हर दूसरे साल लूणी नदी आती है तब यह ही हालात बनते है, लेकिन इन समस्या की तरफ न तो कोई अधिकारी ध्यान देते है और न ही जनप्रतिनिधि। अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर आजादी के 73 साल बाद भी इस गांव को एक पुल नसीब नही हुआ। जिसके सहारे यह नदी के पानी को पार कर अपनी जरूरत का सामान भी खरीद कर ला सके।

बाईट- रूगनाथराम, ग्रामीण
बाईट- डूंगरा राम, ग्रामीण
बाईट- प्रियंका, छात्रा
बाईट- मोनिका, छात्रा

Conclusion:
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