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शिक्षक दिवस विशेष: इनकी पहल से 12 साल बाद बच्चों के कंधे से कम हुआ बोझ

नई शिक्षा नीति के तहत राजस्थान के निजी और सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को अब बस्तों का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा. नई शिक्षा नीति में अब एक ही किताब में विभिन्न विषयों को शामिल कर लिया गया है. जिसकी वजह से अब बस्ते का बोझ कम हो गया है. इस शिक्षा नीति ने राजस्थान के करीब 40 लाख छात्र-छात्राओं के बस्तों का बोझ छू मंतर कर दिया है. करीब 12 सालों पहले ही यह आइडिया सरकार के सामने रखा गया था. जिस शख्स के आइडिया से ऐसा संभव हो पाया है. वो जालोर के रहने वाले हैं. आइए शिक्षक दिवस पर जानते हैं, कैसे इस योजना को 12 सालों बाद मंजूरी मिली?

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इनकी पहल से 12 साल बाद बच्चों के कंधे से कम हुआ बोझ
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Published : Sep 5, 2020, 3:27 PM IST

भीनमाल (जालोर). कोरोना की महामारी के चलते इस बार शिक्षा सत्र कब से प्रारंभ होगा, यह अभी तक निश्चित नहीं है. लेकिन यह नया शिक्षा सत्र राजस्थान के नौनिहालों के लिए बहुत सारी खुशियां लेकर आने वाला है. इसका कारण यह है कि प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए पुस्तकें इस बार नए रूप में सामने आएंगी. पाठ्यक्रम भी वही है और पाठ भी उतने ही हैं, लेकिन फिर भी बच्चों के बस्ते का बोझ काफी कम हो गया है.

इनकी पहल से 12 साल बाद बच्चों के कंधे से कम हुआ बोझ

3 महीने के हिसाब से होंगी किताबें

राज्य में पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए इस बार पुस्तकें कुछ विशेष प्रकार की बन कर आई हैं. अब उनके लिए अलग-अलग विषयों की नहीं, बल्कि महीनों की किताब है. सरकार बच्चों के लिए त्रैमासिक पाठ्यपुस्तक लेकर आई है. इसमें 3 महीने की एक किताब होगी. जिसमें प्राथमिक स्तर के सारे विषयों के पाठ सम्मिलित होंगे.

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बच्चों के कंधे से कम हुआ भार

बच्चों के कंधे का बोझ घटा

जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीने में अलग-अलग विषयों के जो-जो पाठ पढ़ाए जाने होते हैं, उस पूरी पाठ्यसामग्री की एक किताब बनाई गई है. हर 3-3 महीने की अवधि की ये पुस्तके बदलेंगी. ऐसे में बच्चे एक ही किताब स्कूल लेकर जाएंगे. एक तिमाही पूरी होने पर उस किताब को घर रख कर दूसरी तिमाही की किताब ले जानी होगी. जिससे बच्चों के कंधे का बोझ कम हो जाएगा.

ऐसा करने वाला राजस्थान पहला राज्य

इस योजना के लागू होने के बाद राजस्थान बस्ते के बोझ को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाने वाला पहला राज्य बन गया है. राजस्थान सरकार ने एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत पिछले वर्ष राज्य के सभी 33 जिलों के एक-एक विद्यालय में इस मॉडल की पुस्तकों को प्रयोग में लाया था. उन विद्यालयों के प्रयोगों की सफलता के बाद इसे पूरे राज्य में लागू करने का निर्णय लिया गया है. शिक्षा जगत में सरकार के फैसले को लेकर खुशी व्यक्त की गई है.

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ये होगा नया पाठ्यक्रम

एक सरकारी शिक्षक की है यह साधना

दरअसल, यह सारा बदलाव पिछले 12 वर्षों से चल रहे एक शिक्षक के प्रयासों से हुआ है. ये शिक्षक संदीप जोशी हैं. जो वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के सदस्य भी हैं. इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अब तक 25 से अधिक नवाचार किए हैं और शैक्षिक नवाचारों के लिए उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने इन्हें सम्मानित भी किया है.

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संदीप जोशी

पढ़ें : शिक्षक दिवस विशेष: मोक्ष धाम में कई सालों से शिक्षा का दीपक जला रहीं प्रेमलता तोमर

शिक्षक संदीप जोशी शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राजस्थान के जालोर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत हैं. जिन्होंने साल 2008 में विस्तृत अध्ययन और शोध के बाद मासिक पाठ्य पुस्तकों की संकल्पना शिक्षा विभाग के सामने रखी थी. उन्होंने उस समय इस मॉडल की पुस्तकें भी बनाई. इसके बाद सरकार और शिक्षा विभाग के सामने प्रस्तुत भी की.

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बच्चों के लिए नई शिक्षा नीति

12 वर्षों से सुझाव पर हो रहा था मंथन

राज्य में प्रारंभिक शिक्षा परिषद द्वारा सभी विषयों का मासिक पाठ्यक्रम निर्धारित किया हुआ होता है और उसी के आधार पर शिक्षकों को अध्यापन करवाना होता है. जोशी ने इस पाठ्यक्रम विभाजन को आधार बनाते हुए 1 महीने में अलग-अलग विषयों के जो अध्याय पढ़ाए जाने होते हैं, उन सभी को मिलाकर एक पुस्तक का रूप दिया और इस प्रकार उन्होंने प्राथमिक कक्षाओं के लिए त्रैमासिक और छठी, सातवीं और आठवीं कक्षा के लिए मासिक पाठ्य पुस्तकों की संरचना तैयार की. पिछले 12 वर्षों से यह सुझाव शिक्षा जगत में बहुत चर्चा में रहा. शिक्षा विभाग की पत्रिका शिविरा के दिसम्बर 2008 के अंक में पूरी योजना प्रकाशित हुई.

रंग लाई संदीप जोशी के मेहनत

जालोर के तत्कालीन जिला कलेक्टर श्यामसुंदर बिस्सा से शिक्षक जोशी ने पाठ्यपुस्तकों के इस मॉडल पर चर्चा की. उन्होंने सुझाव को बेहतरीन बताते हुए उच्च स्तर पर भेजा. संयोग से जिला कलेक्टर बिस्सा का जालोर से निदेशक प्रारंभिक शिक्षा के पद पर स्थानांतरण हो गया. उसके बाद इस कार्य में गति पकड़ी और उच्च स्तर पर शिक्षक जोशी के इस मासिक पाठ्यपुस्तक मॉडल को लागू करने की पूरी योजना बन गई और घोषणा भी हो गई.

पढ़ें : शिक्षक दिवस विशेष: मासूमों के सपनों का आशियाना 'बाल संबल'...जहां गरीबों के ख्वाबों को मिल रहे पंख

तत्कालीन शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने दर्जनों बार विभिन्न मंचों पर पाठ्यपुस्तकों के इस मॉडल को लागू करने की घोषणा की है. इस बार राज्य में कांग्रेस सरकार बनने पर 12 साल पुराने इस मॉडल को लागू किया गया है.

डमी के लिए प्रकाशित की पुस्तकें

इस बीच शिक्षक संदीप जोशी पाठ्य पुस्तकों के इस मॉडल को लागू करने को लेकर लगातार क्रियाशील रहे. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वे आलेख लिखते रहे. उनके प्रयासों से कुछ निजी प्रकाशकों ने इस मॉडल की पुस्तकें प्रकाशित की. अल्पसंख्या में निजी विद्यालय स्तर पर यह प्रयास प्रयोग पिछले कुछ समय से चल रहा है.

इंडिया हेबिटेट सेंटर की बैठक में जोशी हुई शामिल

साल 2017 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और NCERT के द्वारा बस्ते के बोझ को लेकर नई दिल्ली के इंडिया हेबिटेट सेंटर में एक उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन हुआ. इस कार्यशाला में देशभर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा विभाग के आला अधिकारी उपस्थित रहे.

इस राष्ट्रीय कार्यशाला में शिक्षक संदीप जोशी को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया. यहां शिक्षक जोशी ने बस्ते के बोझ को कम करने के अपने 2 सुझाव सभी के सामने प्रस्तुत किए. पहला मासिक या त्रैमासिक पाठ्यपुस्तक और दूसरा सुझाव था बैग फ्री सैटरडे का.

पढ़ें : शिक्षक दिवस विशेष: राजस्थान का ये गांव जहां एक्टिविटी बेस्ड कराई जाती है पढ़ाई

संदीप जोशी के दोनों सुझावों को सराहना मिली और उसे स्वीकार भी कर लिया गया. पिछले बजट में राजस्थान सरकार ने भी राज्य में शनिवार को बैंक से सैटरडे भी घोषित किया है और पाठ्यपुस्तक पुस्तकों के इस मॉडल पर भी सभी सहमत हुए. आज देश के अनेक राज्यों ने अपने राजस्थान की तरह ही बैग फ्री सैटरडे घोषित किया है.

तमिलनाडु-महाराष्ट्र में राजस्थान मॉडल लागू

तमिलनाडु-महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में स्थानीय स्तर पर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन द्वारा इस मॉडल की पाठ्य पुस्तकों का सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है. लेकिन बड़े स्तर पर इसे लागू कर बच्चों और अभिभावकों को भारी भरकम बस्ते से निजात दिलाने में राजस्थान ने देश में पहला स्थान प्राप्त किया है.

इस उपाय से बच्चों के बस्ते का बोझ तो कम होगा ही, इसके साथ और भी अनेक लाभ होंगे. हर पीरियड में किताब बस्ते के अंदर डालने और बाहर डालने के झंझट से मुक्ति मिलेगी. बस्ते का बोझ भी कम होगा और केवल 3 महीने तक काम आने के कारण से किताब की उम्र भी बढ़ जाएगी. वहीं इन पुस्तकों को अगले साल फिर से निशुल्क पाठ्य पुस्तक वितरण के लिए काम में लिया जा सकेगा.

भीनमाल (जालोर). कोरोना की महामारी के चलते इस बार शिक्षा सत्र कब से प्रारंभ होगा, यह अभी तक निश्चित नहीं है. लेकिन यह नया शिक्षा सत्र राजस्थान के नौनिहालों के लिए बहुत सारी खुशियां लेकर आने वाला है. इसका कारण यह है कि प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए पुस्तकें इस बार नए रूप में सामने आएंगी. पाठ्यक्रम भी वही है और पाठ भी उतने ही हैं, लेकिन फिर भी बच्चों के बस्ते का बोझ काफी कम हो गया है.

इनकी पहल से 12 साल बाद बच्चों के कंधे से कम हुआ बोझ

3 महीने के हिसाब से होंगी किताबें

राज्य में पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए इस बार पुस्तकें कुछ विशेष प्रकार की बन कर आई हैं. अब उनके लिए अलग-अलग विषयों की नहीं, बल्कि महीनों की किताब है. सरकार बच्चों के लिए त्रैमासिक पाठ्यपुस्तक लेकर आई है. इसमें 3 महीने की एक किताब होगी. जिसमें प्राथमिक स्तर के सारे विषयों के पाठ सम्मिलित होंगे.

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बच्चों के कंधे से कम हुआ भार

बच्चों के कंधे का बोझ घटा

जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीने में अलग-अलग विषयों के जो-जो पाठ पढ़ाए जाने होते हैं, उस पूरी पाठ्यसामग्री की एक किताब बनाई गई है. हर 3-3 महीने की अवधि की ये पुस्तके बदलेंगी. ऐसे में बच्चे एक ही किताब स्कूल लेकर जाएंगे. एक तिमाही पूरी होने पर उस किताब को घर रख कर दूसरी तिमाही की किताब ले जानी होगी. जिससे बच्चों के कंधे का बोझ कम हो जाएगा.

ऐसा करने वाला राजस्थान पहला राज्य

इस योजना के लागू होने के बाद राजस्थान बस्ते के बोझ को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाने वाला पहला राज्य बन गया है. राजस्थान सरकार ने एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत पिछले वर्ष राज्य के सभी 33 जिलों के एक-एक विद्यालय में इस मॉडल की पुस्तकों को प्रयोग में लाया था. उन विद्यालयों के प्रयोगों की सफलता के बाद इसे पूरे राज्य में लागू करने का निर्णय लिया गया है. शिक्षा जगत में सरकार के फैसले को लेकर खुशी व्यक्त की गई है.

जालोर लेटेस्ट न्यूज , jalore latest news,  bhinmal latest news,  teachers day 2020,  शिक्षक दिवस 2020
ये होगा नया पाठ्यक्रम

एक सरकारी शिक्षक की है यह साधना

दरअसल, यह सारा बदलाव पिछले 12 वर्षों से चल रहे एक शिक्षक के प्रयासों से हुआ है. ये शिक्षक संदीप जोशी हैं. जो वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के सदस्य भी हैं. इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अब तक 25 से अधिक नवाचार किए हैं और शैक्षिक नवाचारों के लिए उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने इन्हें सम्मानित भी किया है.

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संदीप जोशी

पढ़ें : शिक्षक दिवस विशेष: मोक्ष धाम में कई सालों से शिक्षा का दीपक जला रहीं प्रेमलता तोमर

शिक्षक संदीप जोशी शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राजस्थान के जालोर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत हैं. जिन्होंने साल 2008 में विस्तृत अध्ययन और शोध के बाद मासिक पाठ्य पुस्तकों की संकल्पना शिक्षा विभाग के सामने रखी थी. उन्होंने उस समय इस मॉडल की पुस्तकें भी बनाई. इसके बाद सरकार और शिक्षा विभाग के सामने प्रस्तुत भी की.

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बच्चों के लिए नई शिक्षा नीति

12 वर्षों से सुझाव पर हो रहा था मंथन

राज्य में प्रारंभिक शिक्षा परिषद द्वारा सभी विषयों का मासिक पाठ्यक्रम निर्धारित किया हुआ होता है और उसी के आधार पर शिक्षकों को अध्यापन करवाना होता है. जोशी ने इस पाठ्यक्रम विभाजन को आधार बनाते हुए 1 महीने में अलग-अलग विषयों के जो अध्याय पढ़ाए जाने होते हैं, उन सभी को मिलाकर एक पुस्तक का रूप दिया और इस प्रकार उन्होंने प्राथमिक कक्षाओं के लिए त्रैमासिक और छठी, सातवीं और आठवीं कक्षा के लिए मासिक पाठ्य पुस्तकों की संरचना तैयार की. पिछले 12 वर्षों से यह सुझाव शिक्षा जगत में बहुत चर्चा में रहा. शिक्षा विभाग की पत्रिका शिविरा के दिसम्बर 2008 के अंक में पूरी योजना प्रकाशित हुई.

रंग लाई संदीप जोशी के मेहनत

जालोर के तत्कालीन जिला कलेक्टर श्यामसुंदर बिस्सा से शिक्षक जोशी ने पाठ्यपुस्तकों के इस मॉडल पर चर्चा की. उन्होंने सुझाव को बेहतरीन बताते हुए उच्च स्तर पर भेजा. संयोग से जिला कलेक्टर बिस्सा का जालोर से निदेशक प्रारंभिक शिक्षा के पद पर स्थानांतरण हो गया. उसके बाद इस कार्य में गति पकड़ी और उच्च स्तर पर शिक्षक जोशी के इस मासिक पाठ्यपुस्तक मॉडल को लागू करने की पूरी योजना बन गई और घोषणा भी हो गई.

पढ़ें : शिक्षक दिवस विशेष: मासूमों के सपनों का आशियाना 'बाल संबल'...जहां गरीबों के ख्वाबों को मिल रहे पंख

तत्कालीन शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने दर्जनों बार विभिन्न मंचों पर पाठ्यपुस्तकों के इस मॉडल को लागू करने की घोषणा की है. इस बार राज्य में कांग्रेस सरकार बनने पर 12 साल पुराने इस मॉडल को लागू किया गया है.

डमी के लिए प्रकाशित की पुस्तकें

इस बीच शिक्षक संदीप जोशी पाठ्य पुस्तकों के इस मॉडल को लागू करने को लेकर लगातार क्रियाशील रहे. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वे आलेख लिखते रहे. उनके प्रयासों से कुछ निजी प्रकाशकों ने इस मॉडल की पुस्तकें प्रकाशित की. अल्पसंख्या में निजी विद्यालय स्तर पर यह प्रयास प्रयोग पिछले कुछ समय से चल रहा है.

इंडिया हेबिटेट सेंटर की बैठक में जोशी हुई शामिल

साल 2017 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और NCERT के द्वारा बस्ते के बोझ को लेकर नई दिल्ली के इंडिया हेबिटेट सेंटर में एक उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन हुआ. इस कार्यशाला में देशभर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा विभाग के आला अधिकारी उपस्थित रहे.

इस राष्ट्रीय कार्यशाला में शिक्षक संदीप जोशी को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया. यहां शिक्षक जोशी ने बस्ते के बोझ को कम करने के अपने 2 सुझाव सभी के सामने प्रस्तुत किए. पहला मासिक या त्रैमासिक पाठ्यपुस्तक और दूसरा सुझाव था बैग फ्री सैटरडे का.

पढ़ें : शिक्षक दिवस विशेष: राजस्थान का ये गांव जहां एक्टिविटी बेस्ड कराई जाती है पढ़ाई

संदीप जोशी के दोनों सुझावों को सराहना मिली और उसे स्वीकार भी कर लिया गया. पिछले बजट में राजस्थान सरकार ने भी राज्य में शनिवार को बैंक से सैटरडे भी घोषित किया है और पाठ्यपुस्तक पुस्तकों के इस मॉडल पर भी सभी सहमत हुए. आज देश के अनेक राज्यों ने अपने राजस्थान की तरह ही बैग फ्री सैटरडे घोषित किया है.

तमिलनाडु-महाराष्ट्र में राजस्थान मॉडल लागू

तमिलनाडु-महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में स्थानीय स्तर पर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन द्वारा इस मॉडल की पाठ्य पुस्तकों का सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है. लेकिन बड़े स्तर पर इसे लागू कर बच्चों और अभिभावकों को भारी भरकम बस्ते से निजात दिलाने में राजस्थान ने देश में पहला स्थान प्राप्त किया है.

इस उपाय से बच्चों के बस्ते का बोझ तो कम होगा ही, इसके साथ और भी अनेक लाभ होंगे. हर पीरियड में किताब बस्ते के अंदर डालने और बाहर डालने के झंझट से मुक्ति मिलेगी. बस्ते का बोझ भी कम होगा और केवल 3 महीने तक काम आने के कारण से किताब की उम्र भी बढ़ जाएगी. वहीं इन पुस्तकों को अगले साल फिर से निशुल्क पाठ्य पुस्तक वितरण के लिए काम में लिया जा सकेगा.

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