पोकरण. रेगिस्तान के जहाज रूप में विशिष्ट पहचान रखने वाला ऊंट अब विलुप्त होने की कगार पर है. राजस्थान पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक हर साल ऊंटों की संख्या घट रही है.
साल 2007 की पशुगणना की तुलना में साल 2012 में ऊंटों की संख्या में 22.79 फीसदी कमी हुई. आशंका है कि यदि इस दिशा में कुछ कदम नहीं उठाया गया तो कहीं ऊंट किताबों और इंटरनेट पर ही न सिमट जाएं.
रेगिस्तान का जहाज
एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीने वाला ऊंट एक सप्ताह बिना पानी पिये भीषण गर्मी को सह सकता है. इस खासियत के कारण पश्चिमी राजस्थान के गांवों में ऊंट लंबे अरसे से काफी उपयोगी रहा है. रेत के धोरों में में 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाले ऊंट को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है.
- सवारी की दृष्टि से सबसे उत्तम गोमठ नस्ल मानी जाती है.
- बोझा ढोने के लिए जैसलमेर की नाचना ऊंट को श्रेष्ठ माना जाता है.
- ऊंटों के संरक्षण के लिए बीकानेर में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई है.
साल 2014 में राज्य पशु घोषित
राजस्थान सरकार ने 30 जून 2014 को ऊंट को राज्य पशु घोषित किया. इसके बाद ऊंट के बिक्री और परिवहन पर प्रतिबंध लगाने से पशुपालकों में ऊंट के प्रति रुचि कम हुई है. ग्रामीण इसका कुनबा बढ़ाने में कम रुचि लेने लगे. ऊंट को पालना भी कम खर्चीला नहीं है. कुछ साल पहले गांवों में लोगों की आजीविका के साधन के रूप में ऊंट की पहचान थी.
ऊंटनी का दूध फायदेमंद
ऊंटनी का दूध 200 रुपए और दूसरे राज्यों में 300 रुपए प्रति लीटर की कीमत से बेचा जा रहा है. ऊंटनी का दूध मंदबुद्धि, कैंसर, लीवर, शुगर के साथ कई जटिल बीमारियों में औषधि के रूप में उपयोग लिया जाता है. पोकरण क्षेत्र में 240 ऊंटपालक है.
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कैमल सफारी पसंद करते हैं विदेशी पर्यटक
ऊंट के कम उपयोग के बावजूद विदेशी पर्यटक ऊंट की सवारी ज्यादा पसंद करते हैं. कैमल सफारी के माध्यम से कई पशुपालक आजीविका चला रहे हैं. विदेशी पर्यटक सजे-धजे ऊंट का फोटोशूट करने का भी शौक रखते हैं. रेगिस्तानी धोरों पर ऊंट का नृत्य भी अनूठा है. लेकिन ऊंटों की घट रही संख्या पर्यटन विकास के लिए भी चिंताजनक है.
लगातार घट रही है ऊंटों की संख्या
पहले शादी समारोह में भी राज्य पशु ऊंट आकर्षक का केंद्र रहता था. लेकिन समय के साथ-साथ ऊंटों की घटती संख्या चिंता का विषय है.
ऊंट अभयारण्य क्षेत्र विकसित करने की दरकार
पोकरण विधानसभा के धोलिया, खेतोलाई, ओढाणिया, मोडरडी, चांदनी, महेशों की ढाणी, चौक के आसपास के क्षेत्र में ऊंट अभयारण्य क्षेत्र विकसित करने की दरकार है. यहां तारबंदी और उसमें पेयजल और चारे की व्यवस्था भी हो. रेलवे ट्रेक और सडकों के किनारे दोनों तरफ तारबंदी की व्यवस्था हो ताकि ऊंट रेलवे ट्रेक और सड़क पर पहुंच नहीं सकें और हादसे में काल का ग्रास न बनें.
ऊंटों के विचरण के लिए ओरण है, जिस पर अब निजी कम्पनियों ने अपना कब्जा कर लिया है. ओरण के अंदर बिजली के बड़े-बड़े पॉवर हाउस बनाने शुरू हो गए हैं. आने वाले समय में वहां पशुओं के घूमने पर पाबंदी भी लग जाएगी.
ऊंट पालकों की मांग
ऊंट पालकों ने ऊंट दिवस पर मांग है कि ऊंटों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार की ओर से अलग से कोई चारागाह और विचरण के लिए भूमि आवंटित हो ताकि विलुप्त हो रहे ऊंटों को बचाया जा सके.
पशुपालकों ने अब ऊंटपालन से मन मोड़ लिया है. जिले में ऊंटों की संख्या करीब 28 हजार ही बची है. यह बेहद चिंताजनक है. वर्तमान हालातों के चलते आगामी कुछ सालों में रेगिस्तान का जहाज ऊंट रेगिस्तान से ही गायब हो सकता है.