जैसलमेर. जिले के फतेहगढ़ उपखंड क्षेत्र में स्थित देगराय ओरण भूमि जो लगभग 60 हजार बीघा में फैली है. उसमें से कई जगहों में भूमि को निजी कंपनियों को आंवटित किया गया है, जिससे ओरण भूमि लगातार कम हो रही है. साथ ही इस वर्ष मार्च से लेकर सितंबर महीने तक कई जगह प्राचीन पेड़ों की कटाई की गई थी, जिसका स्थानीय ग्रामीणों द्वारा विरोध किया गया था.
वहीं, श्री देगराय मंदिर ट्रस्ट की ओर से इसे (राष्ट्रीय हरित न्यायालय) एनजीटी की भोपाल बेंच में इनटेक बाड़मेर चैप्टर की तकनीकी मदद और जैसलमेर में गोड़ावन संरक्षण कार्यों में लगी ईआरडीएस फाउंडेशन के साथ मिलकर याचिका दायर की थी. जिसके बाद 14 अक्टूबर 2020 को एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायालय) के आए आदेश में देगराय ओरण में पेड़ काटने व बिजली लाइन बिछाने पर रोक लगाई थी. साथ ही एक टीम बनाकर ओरण भूमि मामले में जांच करके रिपोर्ट पेश करनी थी, लेकिन जांच होने से पहले ही ओरण भूमि में कार्य होने शुरू हो गए और एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायालय भोपाल) के आदेशों की अवेहलना हो रही है, जिससे पर्यावरण प्रेमियों में भारी रोष है.
ग्रामीण हाथी सिंह मुलाना का कहना है कि देगराय ओरण में लगभग 250 प्रकार के पक्षी, 15 से 20 प्रकार के जानवर और 18 अलग-अलग प्रकार की वनस्पति पाई जाती है और ये सघन वनस्पति क्षेत्र में पाए जाते हैं. ओरण भूमि को बचाने के लिए एनजीटी की भोपाल बेंच में याचिका दायर की गई थी, लेकिन एनजीटी के आदेशों के बाद भी यहां कार्य चल रहा है, जिसका सभी ग्रामीण और पर्यावरण प्रेमी विरोध करते हैं. उनकी मांग है कि इसे तुरंत रोका जाए और ओरण भूमि से किसी प्रकार की छेड़छाड़ ना हो.
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पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह भाटी का कहना है कि देगराय ओरण में जगह-जगह कार्य चालू है और जहां ओरण में पहले बिजली के टावर बनाए गए थे, वहां उन पर लाइनें बिछाई जा रही हैं. साथ ही रिकॉर्ड में दर्ज ओरण भूमि में भी कार्य चल रहे हैं और पेड़-पौधों को काटा जा रहा है और नुकसान पहुंचाया जा रहा है. भाटी ने कहा कि राष्ट्रीय हरित न्यायालय भोपाल बेंच के आदेशों की अवेहलना हो रही है, लेकिन कोई भी अधिकारी यहां आकर इसकी सुध नहीं ले रहा है, जो की बहुत दुखद है.
गौरतलब है कि जैसलमेर में देगराय ओरण भूमि को जैसलमेर रियासत के तत्कालीन महारावल द्वारा ओरण घोषित किया गया था और ताम्रपत्र जारी किया गया था, जो अभी भी मौजूद है. लेकिन इसके बावजूद भी राज्य सरकार और राजस्व विभाग द्वारा इस ओरण को कंपनियों को आंवटित किया जा रहा है. वहीं यह क्षेत्र पशु-पक्षी और वनस्पति बाहुल्य क्षेत्र है, जहां गोंडावन का विचरण क्षेत्र भी है. ऐसे में ग्रामीणों का कहना है कि ओरण भूमि बहुमूल्य है और इसका संरक्षण जरूरी है, ताकि इस सम्पदा को बचाया जा सके.