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पाश्चात्य संस्कृति हो रही है राजस्थानी लोक कला और संस्कृति की कायल, जैसलमेर में कई विदेशी सैलानी सीख रहे हैं लोक वाद्य यंत्र बजाना - स्वर्णनगरी जैसलमेर

स्वर्णनगरी जैसलमेर पूरे विश्व में अपनी अनूठी शिल्पकला, नक्काशी, झरोखों और कला संस्कृति के लिए विश्व विख्यात है. पूरी दुनिया के पर्यटक लाखों की संख्या में हर वर्ष यहां आते हैं और जैसलमेर की इन सभी विशेषताओं को कैमरे में कैद कर अपने देश ले जाते हैं. मगर कोई सात समंदर पार से यहां का राजस्थानी लोक नृत्य और पारंपरिक वाद्य यंत्र सीखने आए तो अपने आप में एक अचरज की बात है...देखिए जैसलमेर से स्पेशल रिपोर्ट...

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राजस्थानी कला के अमरीकी हुए कायल
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Published : Jan 21, 2020, 11:47 PM IST

जैसलमेर. पश्चिमी देशों के लोग राजस्थानी सभ्यता और यहां के संगीत से विशेष लगाव रखते हैं, और लगाव हो भी क्यों नहीं. यहां की माटी की खुशबू पूरे विश्व में सोंधी महक बिखेर रही है. और जब बात राजस्थानी लोक कला और संस्कृति की हो तो, जैसलमेर के रेतीले धोरों में जन्मी कला का कोई सानी नहीं है. सात समंदर पार से सैलानी यहां की कला एवं संस्कृति से रूबरू होने आते हैं और साथ ही स्थानीय वाद्य यंत्रों की धुने विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, और वे इन संगीत में मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.

राजस्थानी कला के अमरीकी हुए कायल

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: चमत्कारिक तालाब! 400 सालों से कभी नहीं सूखा

गुणसार लोक संगीत संस्थान दे रही ट्रेनिंग
जैसलमेर का गुणसार लोक संगीत संस्थान स्थानीय कलाकारों को लोक कला और संगीत में पारंगत बनाकर उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच उपलब्ध करवा रहा है. संस्थान में छोटे बच्चों से लेकर बड़े और बालिकाओं से लेकर महिलाओं तक लोक संगीत व नृत्य की शिक्षा हासिल कर रहे हैं. इन दिनों यहां एक विदेशी परिवार भी वाद्य यंत्रों की ट्रेनिंग ले रहा है.

पढ़ें- विश्वविख्यात मरू महोत्सव 7 से 9 फरवरी तक, महोत्सव में इस बार होंगे नवाचार

अमेरिका से आए परिवार ने सीखा लोक वाद्य यंत्र
अमेरिका से आए रॉल्फ और उनकी बेटी वलेरी संस्थान में डायरेक्टर बख्श खान के निर्देशन में वाद्य यंत्र सीख रहे हैं. संगीत शिक्षक रसूल खान रॉल्फ को रावण हत्था की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो वहीं प्रह्लाद वलेरी को खड़ताल बजाना सीखा रहे हैं. यह दोनों पिता पुत्री जैसलमेर की कला से अभिभूत हुए हैं और यहीं संगीत का सफर जारी रखने का सोचा है. वेलेरी बताती है कि वो राजस्थानी संगीत से काफी प्रभावित हुई और उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए यह संस्थान ढूंढा और यहां आकर जब लकड़ी के दो टुकड़ों (खड़ताल) से ऐसे संगीत सुना तो उन्होंने इसे सीखने का मानस बनाया. वह पिछले 2 दिन से खड़ताल सीख रही है और आगे भी इसे सीखना जारी रखना चाहेगी. विदेशी सैलानी ने कहा कि यहां आकर ये पारम्परिक वाद्य यंत्र सीखना उनकी यात्रा का सबसे अच्छा पल है.

पढ़ें- कला एवं संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव पश्चिमी राजस्थान की कला से हुए रूबरू

राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क ट्रेनिंग
वहीं गुणसार लोक संगीत संस्थान के डायरेक्टर बख्श खान ने बताया कि 2005 से संस्थान जैसलमेर में बच्चों को स्कूली शिक्षा के बाद राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क शिक्षा दे रहा है, साथ ही विभिन्न पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों को बजाना भी सीखाता है, ताकि यह कला विलुप्त ना हो. खान ने बताया कि अब स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ कई विदेशी सैलानी भी संस्थान में इस कला - संस्कृति को सीखने के लिए आ रहे हैं और बड़ी लगन से सीख भी रहे हैं. उन्होंने कहा कि वलेरी ने 2 दिन में काफी अच्छी खड़ताल बजाना सीख ली है, वैसे कोई और होता तो 2 दिन में वह खड़ताल पकड़ना भी नहीं सीखता. इससे वलेरी की यहां की संस्कृति और संगीत-कला में जो लग्न और रुचि है वह साफ दिखाई दे रही है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 'स्वर्णनगरी' बन रही प्री-वेडिंग शूट के लिए पसंदीदा लोकशन, हर साल हो रही 1 हजार से ज्यादा शूटिंग

जैसलमेर. पश्चिमी देशों के लोग राजस्थानी सभ्यता और यहां के संगीत से विशेष लगाव रखते हैं, और लगाव हो भी क्यों नहीं. यहां की माटी की खुशबू पूरे विश्व में सोंधी महक बिखेर रही है. और जब बात राजस्थानी लोक कला और संस्कृति की हो तो, जैसलमेर के रेतीले धोरों में जन्मी कला का कोई सानी नहीं है. सात समंदर पार से सैलानी यहां की कला एवं संस्कृति से रूबरू होने आते हैं और साथ ही स्थानीय वाद्य यंत्रों की धुने विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, और वे इन संगीत में मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.

राजस्थानी कला के अमरीकी हुए कायल

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गुणसार लोक संगीत संस्थान दे रही ट्रेनिंग
जैसलमेर का गुणसार लोक संगीत संस्थान स्थानीय कलाकारों को लोक कला और संगीत में पारंगत बनाकर उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच उपलब्ध करवा रहा है. संस्थान में छोटे बच्चों से लेकर बड़े और बालिकाओं से लेकर महिलाओं तक लोक संगीत व नृत्य की शिक्षा हासिल कर रहे हैं. इन दिनों यहां एक विदेशी परिवार भी वाद्य यंत्रों की ट्रेनिंग ले रहा है.

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अमेरिका से आए परिवार ने सीखा लोक वाद्य यंत्र
अमेरिका से आए रॉल्फ और उनकी बेटी वलेरी संस्थान में डायरेक्टर बख्श खान के निर्देशन में वाद्य यंत्र सीख रहे हैं. संगीत शिक्षक रसूल खान रॉल्फ को रावण हत्था की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो वहीं प्रह्लाद वलेरी को खड़ताल बजाना सीखा रहे हैं. यह दोनों पिता पुत्री जैसलमेर की कला से अभिभूत हुए हैं और यहीं संगीत का सफर जारी रखने का सोचा है. वेलेरी बताती है कि वो राजस्थानी संगीत से काफी प्रभावित हुई और उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए यह संस्थान ढूंढा और यहां आकर जब लकड़ी के दो टुकड़ों (खड़ताल) से ऐसे संगीत सुना तो उन्होंने इसे सीखने का मानस बनाया. वह पिछले 2 दिन से खड़ताल सीख रही है और आगे भी इसे सीखना जारी रखना चाहेगी. विदेशी सैलानी ने कहा कि यहां आकर ये पारम्परिक वाद्य यंत्र सीखना उनकी यात्रा का सबसे अच्छा पल है.

पढ़ें- कला एवं संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव पश्चिमी राजस्थान की कला से हुए रूबरू

राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क ट्रेनिंग
वहीं गुणसार लोक संगीत संस्थान के डायरेक्टर बख्श खान ने बताया कि 2005 से संस्थान जैसलमेर में बच्चों को स्कूली शिक्षा के बाद राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क शिक्षा दे रहा है, साथ ही विभिन्न पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों को बजाना भी सीखाता है, ताकि यह कला विलुप्त ना हो. खान ने बताया कि अब स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ कई विदेशी सैलानी भी संस्थान में इस कला - संस्कृति को सीखने के लिए आ रहे हैं और बड़ी लगन से सीख भी रहे हैं. उन्होंने कहा कि वलेरी ने 2 दिन में काफी अच्छी खड़ताल बजाना सीख ली है, वैसे कोई और होता तो 2 दिन में वह खड़ताल पकड़ना भी नहीं सीखता. इससे वलेरी की यहां की संस्कृति और संगीत-कला में जो लग्न और रुचि है वह साफ दिखाई दे रही है.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: 'स्वर्णनगरी' बन रही प्री-वेडिंग शूट के लिए पसंदीदा लोकशन, हर साल हो रही 1 हजार से ज्यादा शूटिंग

Intro:स्वर्णनगरी जैसलमेर पूरे विश्व में अपनी अनूठी शिल्पकला, नक्काशी, झरोखों और कला संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है. पूरी दुनिया के पर्यटक लाखों की संख्या में हर वर्ष यहां आते हैं और जैसलमेर की इन सभी विशेषताओं को कैमरे में कैद कर अपने देश ले जाते हैं. मगर कोई सात समंदर पार से यहां का राजस्थानी लोक नृत्य और पारंपरिक वाद्ययंत्र यंत्र सीखने आए तो अपने आप में एक अचरज की बात है.

पश्चिमी देशों के लोग राजस्थानी सभ्यता और यहां के संगीत से विशेष लगाव रखते हैं, और लगाव हो भी क्यों नहीं. यहां की माटी की खुशबू पूरे विश्व में सोंधी महक बिखेर रही है रही है और जब बात राजस्थानी लोककला और संस्कृति की हो तो, जैसलमेर के रेतीले धोरों में जन्मी कला का कोई सानी नहीं. सात समंदर पार से सैलानी यहां की कला एवं संस्कृति से रूबरू होने आते हैं और साथ ही स्थानीय वाद्य यंत्रों की धुनों बरबस ही विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, और वे इन संगीत में मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.


Body:जैसलमेर का गुणसार लोक संगीत संस्थान स्थानीय कलाकारों को लोक कला और संगीत में पारंगत बनाकर उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच उपलब्ध करवा रहा है. संस्थान में छोटे बच्चों से लेकर बड़े और बालिकाओं से लेकर महिलाओं तक लोक संगीत व नृत्य की शिक्षा हासिल कर रहे हैं. इन दिनों यहां एक विदेशी परिवार भी वाद्य यंत्रों पर ताने-बाने बन रहा है. अमेरिका से आए रॉल्फ और उनकी बेटी वलेरी संस्थान में डायरेक्टर बक्श खान के निर्देशन में वाद्य यंत्र सीख रहे हैं. संगीत शिक्षक रसूल खान रॉल्फ को रावणहत्था की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो वहीं प्रह्लाद वलेरी को खड़ताल बजाना सिखा रहे हैं. यह दोनों पिता पुत्री जैसलमेर की कला से अभिभूत हुए हैं और यहीं संगीत का सफर जारी रखने का सोचा. वेलेरी ने बताया कि वो राजस्थानी संगीत से काफी प्रभावित हुई और उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए यह संस्थान ढूंढा और यहाँ आकर जब लकड़ी के दो टुकड़ों खड़ताल से ऐसे संगीत सुना तो उन्होंने इसे सीखने का मानस बनाया. वह पिछले 2 दिन से खड़ताल सीख रही है और आगे भी इसे सीखना जारी रखना चाहेगी. विदेशी सैलानी ने कहा कि यहां आकर ये पारम्परिक वाद्य यंत्र सीखना उनकी यात्रा का सबसे अच्छा पल है.


Conclusion:संस्थान के डायरेक्टर बक्श खान ने बताया कि 2005 से संस्थान जैसलमेर में बच्चों को स्कूली शिक्षा के बाद राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क शिक्षा दे रहा है, साथ ही विभिन्न पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों को बजाना भी सिखाता है ताकि यह कला विलुप्त ना हो. खान ने बताया कि अब स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ कई विदेशी सैलानी भी संस्थान में इस कला - संस्कृति को सीखने के लिए आ रहे हैं और बड़ी लगन से सीख भी रहे हैं. उन्होंने कहा कि वलेरी ने 2 दिन में काफी अच्छी खड़ताल बजाना सीख ली है, वैसे कोई और होता तो 2 दिन में वह खड़ताल पकड़ना भी नहीं सीखता. इससे वलेरी की यहां की संस्कृति और संगीत-कला में जो लग्न और रुचि है वह साफ दिखाई दे रही है.

बाईट-1- बक्श खान, डायरेक्टर, गुणसार लोक संगीत संस्थान
बाईट-2- वालेरी, विदेशी सैलानी
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