जैसलमेर. पश्चिमी देशों के लोग राजस्थानी सभ्यता और यहां के संगीत से विशेष लगाव रखते हैं, और लगाव हो भी क्यों नहीं. यहां की माटी की खुशबू पूरे विश्व में सोंधी महक बिखेर रही है. और जब बात राजस्थानी लोक कला और संस्कृति की हो तो, जैसलमेर के रेतीले धोरों में जन्मी कला का कोई सानी नहीं है. सात समंदर पार से सैलानी यहां की कला एवं संस्कृति से रूबरू होने आते हैं और साथ ही स्थानीय वाद्य यंत्रों की धुने विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, और वे इन संगीत में मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.
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गुणसार लोक संगीत संस्थान दे रही ट्रेनिंग
जैसलमेर का गुणसार लोक संगीत संस्थान स्थानीय कलाकारों को लोक कला और संगीत में पारंगत बनाकर उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच उपलब्ध करवा रहा है. संस्थान में छोटे बच्चों से लेकर बड़े और बालिकाओं से लेकर महिलाओं तक लोक संगीत व नृत्य की शिक्षा हासिल कर रहे हैं. इन दिनों यहां एक विदेशी परिवार भी वाद्य यंत्रों की ट्रेनिंग ले रहा है.
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अमेरिका से आए परिवार ने सीखा लोक वाद्य यंत्र
अमेरिका से आए रॉल्फ और उनकी बेटी वलेरी संस्थान में डायरेक्टर बख्श खान के निर्देशन में वाद्य यंत्र सीख रहे हैं. संगीत शिक्षक रसूल खान रॉल्फ को रावण हत्था की ट्रेनिंग दे रहे हैं तो वहीं प्रह्लाद वलेरी को खड़ताल बजाना सीखा रहे हैं. यह दोनों पिता पुत्री जैसलमेर की कला से अभिभूत हुए हैं और यहीं संगीत का सफर जारी रखने का सोचा है. वेलेरी बताती है कि वो राजस्थानी संगीत से काफी प्रभावित हुई और उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए यह संस्थान ढूंढा और यहां आकर जब लकड़ी के दो टुकड़ों (खड़ताल) से ऐसे संगीत सुना तो उन्होंने इसे सीखने का मानस बनाया. वह पिछले 2 दिन से खड़ताल सीख रही है और आगे भी इसे सीखना जारी रखना चाहेगी. विदेशी सैलानी ने कहा कि यहां आकर ये पारम्परिक वाद्य यंत्र सीखना उनकी यात्रा का सबसे अच्छा पल है.
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राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क ट्रेनिंग
वहीं गुणसार लोक संगीत संस्थान के डायरेक्टर बख्श खान ने बताया कि 2005 से संस्थान जैसलमेर में बच्चों को स्कूली शिक्षा के बाद राजस्थानी लोक संगीत और कला की निशुल्क शिक्षा दे रहा है, साथ ही विभिन्न पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों को बजाना भी सीखाता है, ताकि यह कला विलुप्त ना हो. खान ने बताया कि अब स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ कई विदेशी सैलानी भी संस्थान में इस कला - संस्कृति को सीखने के लिए आ रहे हैं और बड़ी लगन से सीख भी रहे हैं. उन्होंने कहा कि वलेरी ने 2 दिन में काफी अच्छी खड़ताल बजाना सीख ली है, वैसे कोई और होता तो 2 दिन में वह खड़ताल पकड़ना भी नहीं सीखता. इससे वलेरी की यहां की संस्कृति और संगीत-कला में जो लग्न और रुचि है वह साफ दिखाई दे रही है.