जैसलमेर. जिले में ऐसे कई परंपरागत जल स्रोत हैं, जिनकी स्थिति इन दिनों बदतर है. परंपरागत जल स्त्रोतों के संरक्षण को लेकर पिछले कुछ समय से जिला प्रशासन की ओर से मनरेगा सहित अन्य सरकारी योजनाओं के तहत परंपरागत जल स्रोतों जैसे नाड़ी, तालाबों, कुओं और बावड़ियों आदि की मरम्मत का कार्य किया जा रहा है.
प्राचीन काल में इन्हीं जल स्रोतों के कारण जैसलमेर जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों-लाखों निवासियों के साथ ही मवेशियों की प्यास बुझाई जाती थी. यदि परंपरागत जल स्रोतों का संरक्षण किया जाता है और समय रहते इनकी तरफ ध्यान दिया जाता है तो यह जल स्रोत जिले में पड़ने वाली भीषण गर्मी के दिनों के साथ ही लंबी अवधि की नहरबंदी के दौरान भी उपयोगी साबित हो सकते है. यहां के बाशिंदों की प्यास बुझाई जा सकती है.
यह भी पढ़ें. कोरोना प्रोटोकॉल तोड़ने वालों के खिलाफ अब होगी सख्त कार्रवाई, सरकार से लेकर प्रशासन तक मुस्तैद
परंपरागत जल स्रोतों के संरक्षण को लेकर जिला कलेक्टर आशीष मोदी ने कहा कि पिछले कुछ समय से जिला प्रशासन की ओर से मनरेगा सहित अन्य सरकारी योजनाओं के तहत परंपरागत जल स्रोतों जैसे नाड़ी, तालाबों, कुओं और बावड़ियों आदि की मरम्मत का कार्य किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिले के सभी परंपरागत जल स्रोतों का एक साथ मरम्मत कार्य करवाना संभव नहीं है, ऐसे में चरणबद्ध तरीके से इनके संरक्षण का कार्य किया जा रहा है और आगे भी यह कार्य जारी रहेंगे.
साथ ही जिला कलेक्टर ने कहा कि पिछली बार हुई बारिश में पानी की आवक को देखते हुए जल स्रोतों का चिन्हीकरण कर उनकी मरम्मत करवाई गई है. जिला कलेक्टर मोदी ने कहा कि विभागीय अधिकारी इस कार्य को और अधिक गंभीरता से लेते हुए जिले के अन्य परंपरागत जल स्रोतों के संरक्षण का कार्य करेंगे. जिससे यहां के बाशिंदों को पेयजल किल्लत की समस्या से निजात मिल सके.