जैसलमेर. दुनियाभर में अपनी मिट्टी की कला के लिये प्रसिद्ध पोकरण के कुम्हार इन दिनों कोरोना संक्रमण के चलते कारोबार ठप होने का कारण आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं. लॉकडाउन की लंबी समयावधि ने इन कुम्हारों के काम धंधे को चौपट कर दिया है और अब ये 'मिट्टी के इंजीनियर' दिवाली के त्योहार की तरफ टकटकी लगाए हुए हैं. पर्व पर इनके बनाए दीयों और सजावटी सामानों को लोग खरीदेंगे तो तभी इनके घर भी दिवाली पर खुशियों के दीये जलेंगे.
दुनियाभर को परमाणु परीक्षण से चौंका देने वाली परमाणु नगरी पोकरण की लाल मिट्टी से बने बर्तन और सजावटी सामान की देशभर में मांग रहती है. पोकरण के ये कारीगर रसोई के बर्तनों से लेकर ड्रांइंग रूम में सजाने लायक सभी उत्पादों को बनात हैं. थाल, परात, हांडी, कुल्हड़ से लेकर ऊंट पर बैठे मूमल-महेंद्रा, सजावटी लालटेन, खिलौने और बच्चों के खूबसूरत गुल्लक तक ये मिट्टी से बनाते हैं. लेकिन इस बार मार्च से लॉकडाउन लगने के बाद ये तमाम समान इनके गोदामों में ही बंद पड़े रह गए. लॉकडाउन के कारण परिवहन भी बंद था, ऐसे में इनका सामान बिकने के लिए कहीं नहीं जा पाया लेकिन जब यातायात शुरू हुआ तो लोग बीमारी से लड़ रहे थे.
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ऐसे में कोरोना के डर से लोग बिना किसी विशेष कारण के इन सामानों की खरीदारी भी नहीं कर रहे थे. लेकिन अब त्योहारी सीजन आने से कुम्हारों में आस जगी है और लंबे समय से थमे इनके चाक ने फिर से रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी है. मिट्टी के दीयों, घरौंदे से लेकर अन्य सभी तरह के सजवाटी सामान बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है. इन्हें उम्मीद है कि दिवाली का ये सीजन इनके घरों में रोशनी लाएगा.
कुम्हारों के घरों में यह अभी तक देखने को मिलता है कि परिवार के बड़े-बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक सभी इस परम्परागत कार्य में लगे रहते हैं. मिट्टी ढोने, उसे गीला करने, आकार देने, सुखाने और पकाने तक का सारा काम घर के सभी सदस्य मिल कर करते हैं, ऐसे में अगर इनका कारोबार ठप हो जाए तो खाने तक के लाले पड़ जाते हैं और लॉकडाउन के चलते पोकरण के इन कुम्भारों के हालात कुछ ऐसे ही हो गए थे. दिवाली का सीजन आने से इन कुम्हारों के काम ने फिर जोर पकड़ लिया है.
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कुम्हारों का कहना है कि सरकार सबके लिए राहत योजना लाई है ऐसे में उनके लिए भी कुछ सोचना चाहिए. इनका कहना है कि मिट्टी को आकार देने की परम्परागत कला को वे लोग आगे ले जा रहे हैं. ऐसे में संस्कृति और विरासत की प्रगति में इनका भी योगदान है, इसलिये सरकारों को ऐसे कारीगरों के लिये विशेष पैकेज की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि कला और संस्कृति के इन संरक्षकों को दो वक्त का निवाला नसीब हो सके.
ईटीवी भारत आप सभी से अपील करता है कि इस दिवाली अपने घरों में सजावटी सामान की खरीदारी करते वक्त मिट्टी के दीयों के साथ कुछ सामग्री ऐसी जरूर खरीदें जो इन कुम्हारों के परिवारों द्वारा बनाई गई हो ताकि दीपावली पर हमारे घरों के साथ इनके घर भी रोशन हो सकें.