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जैसलमेर में जुटे जीन चिकित्सा के विशेषज्ञ, भविष्य की संभावनाओं पर हुई चर्चा - Jaisalmer gene therapy seminar

जैसलमेर में जीन थैरेपी को लेकर एक सेमीनार का आयोजन किया गया. जिसमें डॉक्टर्स ने जीन थैरेपी सहित विभिन्न विषयों पर अपने अनुभवों को साझा किया, ताकि चिकित्सा के क्षेत्र में आमजन को बेहतर लाभ मिल सके.

जैसलमेर जीन थैरेपी सेमीनार,Jaisalmer gene therapy seminar
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Published : Oct 13, 2019, 7:11 PM IST

जैसलमेर. जिले में डॉक्टर्स का एक सेमीनार आयोजित किया गया.जिसमें मेडिकल से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई. इस दौरान सबसे ज्यादा चर्चा जीन थैरेपी के बारे में की गई. जिससे जल्द ही भारत में आरम्भ किया जाएगा,ताकि दुनिया की श्रेष्ठ तकनीक से भारत को लाभ दिलवाया जा सके.

इस दौरान महिला चिकित्सक अर्पिता लाखोटिया ने जीन थैरेपी के बारे में बताया कि हमारे शरीर में हजारों बीमारियां ऐसी है. जो किसी जीन संरचना में आए विकार और आवश्यक जीन की अनुपस्थिति के कारण होती हैं, लेकिन जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से ऐसी बीमारियों का उपचार होना संभव है.

जीन थैरेपी को लेकर एक सेमीनार का आयोजन

उन्होंने बताया कि जीन चिकित्सा के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन विधियां प्रयोग में लाई जाती है. जिसमें जीन प्रतिस्थापन, जीन सुधार और जीन ऑग्मेंटेशन प्रमुख है. वहीं विकृत और दोषमुक्त जीन के स्थान पर विकृती जीन को प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया जीन प्रतिस्थापन कहलाती है.

यह भी पढ़ें : यात्रीगण कृपया ध्यान दें... नॉन इंटरलॉकिंग कार्य के चलते 6 ट्रेनें रहेगी रद्द और 6 ट्रेनें आंशिक रद्द

जबकि जीन करेक्शन के अंतर्गत जीन में आये आणविक विकारो को थोड़ा परिवर्तित करके उसे ठीक किया जाता है. कोशिका के अंतर्गत विकृत जीन के साथ एक पूरी तरह से कार्य करने वाले जीन को डाल दिया जाता है. जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए विकारो को दूर कर देता है. जिसे जीन ऑग्मेंटेशन कहते है.

जीन चिकित्सा के लाभ

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा मेटा स्टेटिक मेलानोमा का उपचार.
  • माइलॉयड कोशिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगो का उपचार.
  • पार्किसन रोग का उपचार.
  • हंटिंगटन कोइया का उपचार.
  • थैलेसेमिया ए सिस्टिक फाइब्रोसिस और कैंसर के कुछ प्रकारो का उपचार.
  • चुहिया में सिकल रोग का सफलतापूर्वक उपचान किया गया है.
  • एस. सी. आई. डी. सी. सीवियर कंबाइड डिफिसियेंसी या बबल ब्वाय रोग के उपचार का विकास 2002 में किया गया.

जैसलमेर. जिले में डॉक्टर्स का एक सेमीनार आयोजित किया गया.जिसमें मेडिकल से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई. इस दौरान सबसे ज्यादा चर्चा जीन थैरेपी के बारे में की गई. जिससे जल्द ही भारत में आरम्भ किया जाएगा,ताकि दुनिया की श्रेष्ठ तकनीक से भारत को लाभ दिलवाया जा सके.

इस दौरान महिला चिकित्सक अर्पिता लाखोटिया ने जीन थैरेपी के बारे में बताया कि हमारे शरीर में हजारों बीमारियां ऐसी है. जो किसी जीन संरचना में आए विकार और आवश्यक जीन की अनुपस्थिति के कारण होती हैं, लेकिन जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से ऐसी बीमारियों का उपचार होना संभव है.

जीन थैरेपी को लेकर एक सेमीनार का आयोजन

उन्होंने बताया कि जीन चिकित्सा के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन विधियां प्रयोग में लाई जाती है. जिसमें जीन प्रतिस्थापन, जीन सुधार और जीन ऑग्मेंटेशन प्रमुख है. वहीं विकृत और दोषमुक्त जीन के स्थान पर विकृती जीन को प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया जीन प्रतिस्थापन कहलाती है.

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जबकि जीन करेक्शन के अंतर्गत जीन में आये आणविक विकारो को थोड़ा परिवर्तित करके उसे ठीक किया जाता है. कोशिका के अंतर्गत विकृत जीन के साथ एक पूरी तरह से कार्य करने वाले जीन को डाल दिया जाता है. जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए विकारो को दूर कर देता है. जिसे जीन ऑग्मेंटेशन कहते है.

जीन चिकित्सा के लाभ

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा मेटा स्टेटिक मेलानोमा का उपचार.
  • माइलॉयड कोशिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगो का उपचार.
  • पार्किसन रोग का उपचार.
  • हंटिंगटन कोइया का उपचार.
  • थैलेसेमिया ए सिस्टिक फाइब्रोसिस और कैंसर के कुछ प्रकारो का उपचार.
  • चुहिया में सिकल रोग का सफलतापूर्वक उपचान किया गया है.
  • एस. सी. आई. डी. सी. सीवियर कंबाइड डिफिसियेंसी या बबल ब्वाय रोग के उपचार का विकास 2002 में किया गया.
Intro:Body:Note :- खबर में वीओ करना है।

स्वर्णनगरी में भविष्य की संभावनाओं पर हुई चर्चा

जीन थेरेपी को लेकर हुआ व्याख्यान

डॉ अर्पिता लखोटिया ने साझा किया अपना अनुभव

भारत मे अब तक जीन थेरेपी का नहीं होता प्रयोग


किसी जमाने में भगवान की इच्छा मान कर किसी भी इंसान की मौत का शोक मनाया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है, जी हां चिकित्सा के क्षेत्र में दुनियाभर में नई नई तकनीकों का इजाद होना मानव जीवन के लिये उम्र बढाने वाला साबित हो रहा है और दुनियाभर के कई वैज्ञानिक चिकित्सा की नई नई तकनीकों का इजाद कर मनुष्य की उम्र को बढा रहे हैं। वैज्ञानिकों के इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि किसी जमाने में असाध्य मानी जाने वाली टीबी, कैंसर, हार्ट, लीवर की बीमारियों का आज दुनियाभर में सफल इलाज हो रहा है और इन बीमारियों से अकाल ही काल का ग्रास होने वाले लोगों की संख्या में भी काफी कमी आई है। एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि आज के वैज्ञानिक चिकित्सा के क्षेत्र में कई मामलों में भगवान से मुकाबला ही कर रहे है।

चिकित्सा की इन्हीं पद्धतियों में से एक पद्धति है जीन थैरेपी जिसे आजकल नवीनतम तकनीक के रूप में प्रयोग में लाया जा रहा है। हालांकि भारत में अभीतक इस थैरपी पर काम होना आरम्भ नहीं हुआ है लेकिन दुनिया के कई देशो के डॉक्टर इस नवीन तकनीक से असाध्य रोगों से लोगों की जान बचा रहे हैं। इसी जीन थैरेपी को लेकर सरहदी जिले जैसलमेर में चल रहे डॉक्टर्स के एक सैमीनार में चर्चा हुई जहां पर देश ही नहीं वरन् दुनियाभर के बेहतरीन चिकित्सक हिस्सा ले रहे हैं। इस सैमीनार में हिस्सा लेने पहुंची एक महिला चिकित्सक अर्पिता लाखोटिया जो की यूएसए में अपनी प्रेक्टिस कर रही है ने जीन थैरेपी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हमारे शरीर में हजारो बीमारियाँ ऐसी है जो या तो किसी जीन की संरचना में आये विकार के परिणामस्वरूप होती है या फिर किसी आवश्यक जीन की अनुपस्थिति के कारण। जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से ऐसी बीमारियों का उपचार अब संभव हो गया है। जीन चिकित्सा के माध्यम से अनुपस्थित अथवा विकृत जीन की पहचान करके उसे काटकर उसकी जगह दोषमुक्त जीन को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि जीन चिकित्सा के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन विधिया प्रयोग में लाई जाती है जिसमें जीन प्रतिस्थापन जीन सुधार जीन ऑग्मेंटेशन प्रमुख है। उन्होने बताया कि विकृत अथवा दोषमुक्त जीन के स्थान पर विकृतीं जीन को प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया जीन प्रतिस्थापन कहलाती है,जबकि जीन करेक्शन के अंतर्गत जीन में आये आणविक विकारो को थोङा परिवर्तित करके उसे ठीक किया जाता है। कोशिका के अंतर्गत विकृत जीन के साथ एक पूरी तरह से कार्य करने वाले जीन को डाल दिया जाता है जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए विकारो को दूर कर देता है एइस विधि को जीन ऑग्मेंटेशन कहा जाता है।

जीन चिकित्सा के लाभ
-राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा मेटा .स्टेटिक मेलानोमा का उपचार।
-माइलॉयड कोशिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगो का उपचार।
-पार्किसन रोग का उपचार।
-हंटिंगटन कोइया का उपचार।
-थैलेसेमिया ए सिस्टिक फाइब्रोसिस और कैंसर के कुछ प्रकारो का उपचार।
-चुहिया में सिकल रोग का सफलतापूर्वक उपचान किया गया है।
-एस. सी. आई. डी. सी. सीवियर कंबाइड डिफिसियेंसी या बबल ब्वाय रोग के उपचार का विकास 2002 में किया गया।

जैसलमेर में हो रही चिकित्सकों की इस महत्वपूर्ण सैमीनार में विभिन्न विषयों को लेकर दुनियाभर के चिकित्सकों ने अपने अनुभवों को साझा किया ताकि चिकित्सा के क्षेत्र में आमजन को बेहतर लाभ मिल सके वहीं जैसलमेर जैसी जगह पर इस तरह की सैमीनार यहां के चिकित्सकों के लिये भी किसी वरदान से कम नहीं है। इस तरह के चिकित्सकीय आयोजनों से जहां एक ही प्लेटफार्म पर दुनियाभर की चिकित्सकीय विधियों को जानने का मौका मिलता है वहीं दुनियाभर में चल रही श्रेष्ठतम तकनीकों से भी चिकित्सकों को रूबरू होने का मौका मिलता है। जैसलमेर में चल रही इस सैमीनार में विभिन्न तकनीकों के बीच जीन थैरेपी को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हुई और इसे जल्द ही भारत में आरम्भ करने को लेकर भी चिकित्सकों के बीच विचार विमर्ष किया गया ताकि दुनिया की श्रेष्ठ तकनीक से भारत की बडी आबादी को चिकित्सा की नई तकनीकों का लाभ दिलवाया जा सके।

बाईट-1 - डॉ मनोज लखोटिया
बाईट-2 - डॉ अर्पिता लखोटिया USA Conclusion:
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