जैसमलेर: 1971 के युद्ध में 36 पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह बनाने वाला भारतीय वायुसेना का ऐतिहासिक वॉर हीरो हंटर मारूत लड़ाकू विमान आज गुमनामी के अंधेरे में अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. भारत का गौरव जो हमारा सीना चौड़ा करता है उसकी तरफ कोई नहीं देख रहा है और इसके रख रखाव में भी कोताही बरती जा रही है.
जैसलमेर का हीरो
करीब डेढ़ दशक पूर्व वायुसेना ने तत्कालीन जिला प्रशासन को इस ऐतिहासिक धरोहर को संजो-कर रखने के लिये उपहार स्वरूप सौंपा था. तब तत्कालीन प्रशासकों ने इसे संजो-कर रखने के बजाय राजकीय संग्राहलय के कोने में रख दिया. ऐसी जगह जहां इसे देखने, जानने और समझने के लिए कोई आता नहीं है. कभी कभार भूले भटके लोग यहां पहुंच पाते हैं. हालात ये है कि देखरेख के अभाव में ये विरासत दम तोड़ रही है.
कलपुर्जों को लेकर भी कुछ स्पष्ट नहीं
वर्तमान में इस ऐतिहासिक लड़ाकू विमान की स्थिति काफी खराब हैं. रखरखाव के अभाव में इस वॉर पीस के साथ हो रही छेड़छाड़ दिखती है. आशंका पूरी है कि अनदेखी भेंट कलपुर्जे चढ़ चुके होंगे. क्या पता चोरों ने इस पर हाथ साफ किया हो.
इतिहास रोचक है
1971 के भारत पाकिस्तान युद्व के दौरान बहुचर्चित लोंगेवाला मैदान (Longewala) में लोंगेवाला पोस्ट (Longewala Post) के निकट 4 दिसम्बर को पाकिस्तानी टैंक बिग्रेड ने 59 टैंकों के जरिये भारत पर हमला कर दिया था. इस हमले का मुकाबला लोंगेवाला पोस्ट पर मौजूद बी.एस.एफ के जांबाज लांस नायक भैरोसिंह व सेना के मैजर चांदपुरी सहित अन्य सैन्यबलों ने बखूबी किया. फिर भारतीय वायुसेना की मदद मांगी गई.
आग्रह पर 5 दिसम्बर की अलसुबह जैसलमेर एयरफोर्स स्टेशन (Jaislmer Air Force Station) से हंटर मारूत विमानों ने उड़ान भरी और एक एक कर पाकिस्तान के 36 टैंकों को धूल में मिला दिया.
जीत में निभाया अहम किरदार
भारत को विजय दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. उसमें से एक मारूत विमान को जैसलमेर वायुसेना स्टेशन ने करीब डेढ़ दशक पूर्व जैसलमेर जिला प्रशासन को संजो-कर रखने का आग्रह किया.इस आशय के साथ की देशी-विदेशी सैलानी इसकी गौरव गाथा से रोमांचित हो पाएंगे. फोटो खिंचवाकर गर्व और फक्र की अनुभूति करेंगे.
पहले चौराहे से होकर पहुंचा यहां
2-3 साल तक यह विमान शहर के प्रसिद्व हनुमान चौराहे पर संजोकर रखा गया. लेकिन बाद में उस चौराहे के विस्तार के समय इस विमान को यहां से हटाकर राजकीय संग्राहलय (State Museum) के कोने में लाकर रख दिया गया.
एक ऐसी जगह इसे मुहैया कराई गई है जहां कद्रदानों की नजर कम ही पड़ती है और जिनकी पड़ी उनमें से शायद कुछ ने इस अमूल्य धरोहर के कुछ अहम पुर्जों के साथ छेड़खानी की या फिर उन्हें ले उड़े.