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उपेक्षा का दंश झेल रहा ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर...जर्जर हो रही कंगूरें

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Published : Aug 17, 2020, 4:38 PM IST

गड़ीसर सरोवर ने जहां जैसलमेर के पर्यटन को नए पंख दिए हैं और सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. पिछले कुछ सालों में देखरेख के अभाव और प्रशासनिक लापरवाही के चलते ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब पर बने निर्माण कार्य ध्वस्त होने के कगार पर हैं.

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उपेक्षा का दंश झेल रहा ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर

जैसलमेर. विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपनी एक खास पहचान रखने वाला जैसलमेर जिला देशी और विदेशी सैलानियों के लिए एक रोचक यात्रा स्थान है. भारत-पाक सीमा पर बसा रेगिस्तान के बीच खड़ा अत्यंत ही रहस्यमयी और काल्पनिक सा दिखने वाला जैसलमेर किसी स्वप्न नगरी से कम नहीं है. देश के पश्चिमी कोने में बसा जैसलमेर जिला अपनी विविधताओं के चलते सैलानियों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और दूर-दूर तक पसरा रेगिस्तान और पीले पत्थरों से बने किले, हवेलियों के साथ-साथ इस रेगिस्तान में पानी की कल्पना केवल मृगतृष्णा में की जा सकती है.

उपेक्षा का दंश झेल रहा ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर

जिले की ऐतिहासिक गड़ीसर झील सैलानियों को रेगिस्तान का अहसास करवाती है. रेगिस्तान के बीच जहां सैलानी रेतीले समुंदर में ऊंट की सवारी का सपना संजो कर आते हैं. उन्हें अगर यहां की गड़ीसर झील में नौकायन का मौका मिलता है तो यह उनके लिए किसी सपने से कम नहीं होता है. 14वीं सदी के रियासत कालीन जैसलमेर के तत्कालीन महारावल गड़सी सिंह द्वारा जैसलमेर नगर की जनता को अकाल के दौरान होने वाली पेयजल की दिक्कत को दूर करने के लिए नगर परकोटे के पास इस झील का निर्माण करवाया गया था.

गड़ीसर सरोवर ने जहां जैसलमेर के पर्यटन को नए पंख दिए हैं और सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. वहीं, पिछले कुछ सालों में देखरेख के अभाव और प्रशासनिक लापरवाही के चलते ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब पर बने यह निर्माण कार्य ध्वस्त होने के कगार पर है. गड़ीसर झील के पानी के बीच बने जाली बंगले से लेकर बीच बंगली और हिंगलाज माता मंदिर आदि सभी की दीवारें जर्जर हो गई है.

यह भी पढ़ें- Special : जयपुर का ड्रेनेज सिस्टम कभी था मिसाल, आज पूरी तरह बदहाल

इमारतों के ऊपर रियासतकालीन जैसलमेर की समृद्धि का परिचय देते कंगूरे भी गिरकर ध्वस्त हो चुके हैं. पर्यटन व्यवसायियों की मानें तो कोरोना काल के दौरान प्रशासन और पर्यटन विभाग अगर इन ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव पर बेहतर ध्यान दें तो आने वाले समय में जब सैलानियों की आवक बढ़ेगी तो यह इमारतें सैलानियों के सामने जैसलमेर के वैभव का बखान कर सकेगी. अगर ऐसा नहीं हुआ तो इतिहास की गवाह ये इमारतें इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएगी, जिसका खामियाजा जैसलमेर के पर्यटन को भुगतना पड़ सकता है.

जैसलमेर. विश्व के पर्यटन मानचित्र पर अपनी एक खास पहचान रखने वाला जैसलमेर जिला देशी और विदेशी सैलानियों के लिए एक रोचक यात्रा स्थान है. भारत-पाक सीमा पर बसा रेगिस्तान के बीच खड़ा अत्यंत ही रहस्यमयी और काल्पनिक सा दिखने वाला जैसलमेर किसी स्वप्न नगरी से कम नहीं है. देश के पश्चिमी कोने में बसा जैसलमेर जिला अपनी विविधताओं के चलते सैलानियों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और दूर-दूर तक पसरा रेगिस्तान और पीले पत्थरों से बने किले, हवेलियों के साथ-साथ इस रेगिस्तान में पानी की कल्पना केवल मृगतृष्णा में की जा सकती है.

उपेक्षा का दंश झेल रहा ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर

जिले की ऐतिहासिक गड़ीसर झील सैलानियों को रेगिस्तान का अहसास करवाती है. रेगिस्तान के बीच जहां सैलानी रेतीले समुंदर में ऊंट की सवारी का सपना संजो कर आते हैं. उन्हें अगर यहां की गड़ीसर झील में नौकायन का मौका मिलता है तो यह उनके लिए किसी सपने से कम नहीं होता है. 14वीं सदी के रियासत कालीन जैसलमेर के तत्कालीन महारावल गड़सी सिंह द्वारा जैसलमेर नगर की जनता को अकाल के दौरान होने वाली पेयजल की दिक्कत को दूर करने के लिए नगर परकोटे के पास इस झील का निर्माण करवाया गया था.

गड़ीसर सरोवर ने जहां जैसलमेर के पर्यटन को नए पंख दिए हैं और सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया है. वहीं, पिछले कुछ सालों में देखरेख के अभाव और प्रशासनिक लापरवाही के चलते ऐतिहासिक गड़ीसर तालाब पर बने यह निर्माण कार्य ध्वस्त होने के कगार पर है. गड़ीसर झील के पानी के बीच बने जाली बंगले से लेकर बीच बंगली और हिंगलाज माता मंदिर आदि सभी की दीवारें जर्जर हो गई है.

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इमारतों के ऊपर रियासतकालीन जैसलमेर की समृद्धि का परिचय देते कंगूरे भी गिरकर ध्वस्त हो चुके हैं. पर्यटन व्यवसायियों की मानें तो कोरोना काल के दौरान प्रशासन और पर्यटन विभाग अगर इन ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव पर बेहतर ध्यान दें तो आने वाले समय में जब सैलानियों की आवक बढ़ेगी तो यह इमारतें सैलानियों के सामने जैसलमेर के वैभव का बखान कर सकेगी. अगर ऐसा नहीं हुआ तो इतिहास की गवाह ये इमारतें इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएगी, जिसका खामियाजा जैसलमेर के पर्यटन को भुगतना पड़ सकता है.

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