जैसलमेर. प्री मानसून की दस्तक के साथ ही शहर में बने पुराने एवं जर्जर मकान आसपास के लोगों के लिए भय का कारण बने हुए हैं. लोगों को हरदम यहीं भय बना रहता है कि कहीं कोई अप्रिय घटना न हो जाए. प्रत्येक वर्ष मानसून से पहले जर्जर मकानों को लेकर प्रशासन चिंता तो जताता है लेकिन धरातल पर देखा जाए तो कार्रवाई के नाम पर मात्र खानापूर्ति ही करता दिखाई देता है. शहर में दर्जन भर से अधिक मकान ऐसे हैं, जिन पर समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है.
स्वर्णनगरी में जहां एक तरफ प्री मानसून की दस्तक के कारण लोगों के चेहरे पर खुशी देखी जा सकती है, वहीं दूसरी तरफ शहर के जर्जर मकानों के गिरने के खतरे से भी वे परेशान नजर आ रहे हैं. सोनार दुर्ग और उसके आसपास के 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह की मरम्मत एवं निर्माण कार्य के लिए पुरातत्व विभाग की स्वीकृति लेना अनिवार्य होता है. जिसकी प्रक्रिया बड़ी पेचिदा है. जिसके कारण यहां के जर्जर मकानों की समय पर मरम्मत नहीं हो पाती है और ना ही प्रशासन इसके लिए सजग दिखाई दे रहा है.
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हालांकि मानसून के प्रवेश के साथ ही नगर परिषद की तरफ से जर्जर मकानों के मालिकों को नोटिस जारी कर दिया जाता है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया जाता. जैसलमेर शहर में कई मकान वर्षो से जर्जर हालत में है लेकिन प्रशासन, नगरपरिषद और संबंधित मकान मालिकों की उदासीनता कभी भी भारी पड़ सकती है. दुर्ग सहित शहर के विभिन्न मोहल्लों में जर्जर मकान है जो तेज हवाओं के थपेड़ों को भी झेलने की हालत में नहीं हैं.