जैसलमेर. देश के पश्चिमी छोर पर भारत-पाक सीमा का निगेहबान कहे जाने वाले सरहदी जिले जैसलमेर को विश्व पर्यटन मानचित्र पर अब एक और पहचान मिलने वाली है. अब जल्द ही रेतीले धोरों में एशियाई चीते का दहाड़ सुनाई देगी जो दूर दुनिया के सैलानियों को आकर्षित करेगी.
राजस्थान की पर्यटन नगरी जैसलमेर का सम्मोहन ही है कि यहां पर हर साल आने वाले देशी और विदेशी सैलानियों के आंकडों में बढोत्तरी ही हो रही है, जो कि यहां की अर्थव्यवस्था के लिये एक सुखद संदेश है. अब विदेशी सैलानियों को आकृषित करे के लिए इस रेगिस्तानी इलाके में ऐशियाई चीतों को लाने की तैयारी चल रही है.
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जानकारों का मानना है कि जैसलमेर में एक बडा रेगिस्तानी इलाका वीरान पड़ा है जहां पर ऐशियाई चीतों को बसाया जाये तो यहां के इको सिस्टम को बेतहर बनाया जा सकता है. लुप्त होती इस प्रजाती का संरक्षण भी किया जा सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यहां के पर्यटन को भी चीतों के पुनर्वास के बाद नये पंख मिल सकते हैं.
दुनिया में गिनती के ही बचे ऐशियाई चीतों के संरक्षण के लिए सरकारें भरसक प्रयास कर रही हैं. भारत सरकार के वन और पर्यावरण विभाग ने भी इन चीतों के संरक्षण और संवर्धन के लिये भारत में व्यवस्था करने की नीति बनाई है. जिसमें विशेषज्ञों की टीम बनाई गई. जिसने देशभर में सर्वे किया और इन चीतों के लिये उपयुक्त वातावरण और भू-भाग की खोज का काम करना आरम्भ किया.
इस योजना के तहत साल 2010 में भारतीय वन्यजीव संस्थान और वाइल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने राजस्थान, गुजरात और मघ्यप्रदेश सहित भारत के 10 प्राकृतिक आवास स्थलों का सर्वे किया था. इस पर तैयार रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के कुनो और नौरादेही अभ्यारण के साथ राजस्थान के जैसलमेर जिले के रेगिस्तानी इलाके शाहगढ़ बल्ज को भी चीतों के पुनर्वास के लिये सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र बताया गया था.
इस सर्वे में सामने आया था कि जैसलमेर का शाहगढ़ बल्ज इलाका करीब 8 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो 150 किलोमीटर लम्बा और 40 किलोमीटर चौड़ा है. इतना बड़ा भू-भाग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं भी नहीं है. इसलिये ऐशियाई चीतों के लिए यह सबसे मुफीद जगह हो सकती है.
इस सर्वे के बाद वन्यजीव प्रेमियों और पयर्टन से जुडे लोगों में उम्मीद जगी थी लेकिन इस पूरी कवायद के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के पास विचार के लिए भेजा गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हरी झंडी दे दी है. जिसमें मध्यप्रदेश के नौरादेही में चीतों को बसाने की बात कही गई है. ऐसे में अब सरकार चाहे तो जैसलमेर के शाहगढ़ में भी चीतों के लिये अभ्यारण की उम्मीदों को पंख लगा सकती है.
वन्यजीव संस्थाओं से जुडे लोगों का कहना है कि ऐशियाई चीतों का मूल निवास स्थल रेगिस्तानी और घास के मैदान ही रहे हैं. ऐसे में जैसलमेर का शाहगढ़ इलाका जहां सेवण धास के बड़े मैदान भी हैं, उनके लिए सबसे उपयुक्त है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीतों को यहां बसाया जाता है तो इससे न केवल डेजर्ट इको सिस्टम संतुलित होगा बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नये अवसर भी मिल सकेंगे.
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राज्य सरकार की पहल की आवश्यकता -
केन्द्रीय वन्यजीव संरक्षण संस्थानों और सुप्रिम कोर्ट की हरी झंडी के बाद अब गेंद राजस्थान के पाले में है. राजस्थान सरकार अगर इसमें गंभीरता दिखाए तो प्रदेश में पर्यटन कों बढ़ावा मिलने के साथ-साथ विलुप्त होती प्रजाती के संरक्षण का गौरव भी राजस्थान को मिल सकता है.
गौरतलब है कि प्रदेश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राज्य सरकार की ओर से वन्यजीव बोर्ड बनाया हुआ है लेकिन प्रदेश सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक इस बोर्ड का गठन नहीं किया गया, जबकि इसके लिये नियम है कि सरकार बनने के 6 माह के भीतर ही इस बोर्ड को बना लेना होता है. लेकिन अभी तक यह काम अधूरा है. अगल बोर्ड बनता है तो इस बात की संभावना को भी बल मिलेगा कि ऐशियाई चीतों की दहाड़ रेगिस्तान में सुनाई देगी.