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जैसलमेर: सरकार चाहे तो सरहद पर आ सकते हैं चीते, विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद अब सरकार की गंभीरता की आवश्यकता

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Published : Feb 4, 2020, 9:25 PM IST

सरहदी जिले जैसलमेर में जल्द ही एशियाई चीते देशी और विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे. जिसको लेकर सरकार ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. एशियाई चीतों के यहां आने से इको सिस्टम को भी बेतहर बनाया जा सकता है. साथ ही लुप्त होते चीतों का संरक्षण भी किया जा सकता है.

jaisalmer latest news, पर्यटन नगरी जैसलमेर
एशियाई चीते करेंगे विदेशी सैलानियों को करेंगे आकर्षित

जैसलमेर. देश के पश्चिमी छोर पर भारत-पाक सीमा का निगेहबान कहे जाने वाले सरहदी जिले जैसलमेर को विश्व पर्यटन मानचित्र पर अब एक और पहचान मिलने वाली है. अब जल्द ही रेतीले धोरों में एशियाई चीते का दहाड़ सुनाई देगी जो दूर दुनिया के सैलानियों को आकर्षित करेगी.

राजस्थान की पर्यटन नगरी जैसलमेर का सम्मोहन ही है कि यहां पर हर साल आने वाले देशी और विदेशी सैलानियों के आंकडों में बढोत्तरी ही हो रही है, जो कि यहां की अर्थव्यवस्था के लिये एक सुखद संदेश है. अब विदेशी सैलानियों को आकृषित करे के लिए इस रेगिस्तानी इलाके में ऐशियाई चीतों को लाने की तैयारी चल रही है.

पढ़ें- जैसलमेरः BSF की 50वीं अंतर सीमांत सपोर्ट वेपन शूटिंग प्रतियोगिता का शुभारंभ

जानकारों का मानना है कि जैसलमेर में एक बडा रेगिस्तानी इलाका वीरान पड़ा है जहां पर ऐशियाई चीतों को बसाया जाये तो यहां के इको सिस्टम को बेतहर बनाया जा सकता है. लुप्त होती इस प्रजाती का संरक्षण भी किया जा सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यहां के पर्यटन को भी चीतों के पुनर्वास के बाद नये पंख मिल सकते हैं.

दुनिया में गिनती के ही बचे ऐशियाई चीतों के संरक्षण के लिए सरकारें भरसक प्रयास कर रही हैं. भारत सरकार के वन और पर्यावरण विभाग ने भी इन चीतों के संरक्षण और संवर्धन के लिये भारत में व्यवस्था करने की नीति बनाई है. जिसमें विशेषज्ञों की टीम बनाई गई. जिसने देशभर में सर्वे किया और इन चीतों के लिये उपयुक्त वातावरण और भू-भाग की खोज का काम करना आरम्भ किया.

एशियाई चीते करेंगे विदेशी सैलानियों को करेंगे आकर्षित

इस योजना के तहत साल 2010 में भारतीय वन्यजीव संस्थान और वाइल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने राजस्थान, गुजरात और मघ्यप्रदेश सहित भारत के 10 प्राकृतिक आवास स्थलों का सर्वे किया था. इस पर तैयार रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के कुनो और नौरादेही अभ्यारण के साथ राजस्थान के जैसलमेर जिले के रेगिस्तानी इलाके शाहगढ़ बल्ज को भी चीतों के पुनर्वास के लिये सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र बताया गया था.

इस सर्वे में सामने आया था कि जैसलमेर का शाहगढ़ बल्ज इलाका करीब 8 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो 150 किलोमीटर लम्बा और 40 किलोमीटर चौड़ा है. इतना बड़ा भू-भाग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं भी नहीं है. इसलिये ऐशियाई चीतों के लिए यह सबसे मुफीद जगह हो सकती है.

इस सर्वे के बाद वन्यजीव प्रेमियों और पयर्टन से जुडे लोगों में उम्मीद जगी थी लेकिन इस पूरी कवायद के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के पास विचार के लिए भेजा गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हरी झंडी दे दी है. जिसमें मध्यप्रदेश के नौरादेही में चीतों को बसाने की बात कही गई है. ऐसे में अब सरकार चाहे तो जैसलमेर के शाहगढ़ में भी चीतों के लिये अभ्यारण की उम्मीदों को पंख लगा सकती है.

वन्यजीव संस्थाओं से जुडे लोगों का कहना है कि ऐशियाई चीतों का मूल निवास स्थल रेगिस्तानी और घास के मैदान ही रहे हैं. ऐसे में जैसलमेर का शाहगढ़ इलाका जहां सेवण धास के बड़े मैदान भी हैं, उनके लिए सबसे उपयुक्त है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीतों को यहां बसाया जाता है तो इससे न केवल डेजर्ट इको सिस्टम संतुलित होगा बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नये अवसर भी मिल सकेंगे.

पढ़ें- गुजरात से असम भेजी गई एशियाई शेरों की जोड़ी, देखें वीडियो

राज्य सरकार की पहल की आवश्यकता -

केन्द्रीय वन्यजीव संरक्षण संस्थानों और सुप्रिम कोर्ट की हरी झंडी के बाद अब गेंद राजस्थान के पाले में है. राजस्थान सरकार अगर इसमें गंभीरता दिखाए तो प्रदेश में पर्यटन कों बढ़ावा मिलने के साथ-साथ विलुप्त होती प्रजाती के संरक्षण का गौरव भी राजस्थान को मिल सकता है.

गौरतलब है कि प्रदेश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राज्य सरकार की ओर से वन्यजीव बोर्ड बनाया हुआ है लेकिन प्रदेश सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक इस बोर्ड का गठन नहीं किया गया, जबकि इसके लिये नियम है कि सरकार बनने के 6 माह के भीतर ही इस बोर्ड को बना लेना होता है. लेकिन अभी तक यह काम अधूरा है. अगल बोर्ड बनता है तो इस बात की संभावना को भी बल मिलेगा कि ऐशियाई चीतों की दहाड़ रेगिस्तान में सुनाई देगी.

जैसलमेर. देश के पश्चिमी छोर पर भारत-पाक सीमा का निगेहबान कहे जाने वाले सरहदी जिले जैसलमेर को विश्व पर्यटन मानचित्र पर अब एक और पहचान मिलने वाली है. अब जल्द ही रेतीले धोरों में एशियाई चीते का दहाड़ सुनाई देगी जो दूर दुनिया के सैलानियों को आकर्षित करेगी.

राजस्थान की पर्यटन नगरी जैसलमेर का सम्मोहन ही है कि यहां पर हर साल आने वाले देशी और विदेशी सैलानियों के आंकडों में बढोत्तरी ही हो रही है, जो कि यहां की अर्थव्यवस्था के लिये एक सुखद संदेश है. अब विदेशी सैलानियों को आकृषित करे के लिए इस रेगिस्तानी इलाके में ऐशियाई चीतों को लाने की तैयारी चल रही है.

पढ़ें- जैसलमेरः BSF की 50वीं अंतर सीमांत सपोर्ट वेपन शूटिंग प्रतियोगिता का शुभारंभ

जानकारों का मानना है कि जैसलमेर में एक बडा रेगिस्तानी इलाका वीरान पड़ा है जहां पर ऐशियाई चीतों को बसाया जाये तो यहां के इको सिस्टम को बेतहर बनाया जा सकता है. लुप्त होती इस प्रजाती का संरक्षण भी किया जा सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यहां के पर्यटन को भी चीतों के पुनर्वास के बाद नये पंख मिल सकते हैं.

दुनिया में गिनती के ही बचे ऐशियाई चीतों के संरक्षण के लिए सरकारें भरसक प्रयास कर रही हैं. भारत सरकार के वन और पर्यावरण विभाग ने भी इन चीतों के संरक्षण और संवर्धन के लिये भारत में व्यवस्था करने की नीति बनाई है. जिसमें विशेषज्ञों की टीम बनाई गई. जिसने देशभर में सर्वे किया और इन चीतों के लिये उपयुक्त वातावरण और भू-भाग की खोज का काम करना आरम्भ किया.

एशियाई चीते करेंगे विदेशी सैलानियों को करेंगे आकर्षित

इस योजना के तहत साल 2010 में भारतीय वन्यजीव संस्थान और वाइल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने राजस्थान, गुजरात और मघ्यप्रदेश सहित भारत के 10 प्राकृतिक आवास स्थलों का सर्वे किया था. इस पर तैयार रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के कुनो और नौरादेही अभ्यारण के साथ राजस्थान के जैसलमेर जिले के रेगिस्तानी इलाके शाहगढ़ बल्ज को भी चीतों के पुनर्वास के लिये सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र बताया गया था.

इस सर्वे में सामने आया था कि जैसलमेर का शाहगढ़ बल्ज इलाका करीब 8 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो 150 किलोमीटर लम्बा और 40 किलोमीटर चौड़ा है. इतना बड़ा भू-भाग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं भी नहीं है. इसलिये ऐशियाई चीतों के लिए यह सबसे मुफीद जगह हो सकती है.

इस सर्वे के बाद वन्यजीव प्रेमियों और पयर्टन से जुडे लोगों में उम्मीद जगी थी लेकिन इस पूरी कवायद के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के पास विचार के लिए भेजा गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हरी झंडी दे दी है. जिसमें मध्यप्रदेश के नौरादेही में चीतों को बसाने की बात कही गई है. ऐसे में अब सरकार चाहे तो जैसलमेर के शाहगढ़ में भी चीतों के लिये अभ्यारण की उम्मीदों को पंख लगा सकती है.

वन्यजीव संस्थाओं से जुडे लोगों का कहना है कि ऐशियाई चीतों का मूल निवास स्थल रेगिस्तानी और घास के मैदान ही रहे हैं. ऐसे में जैसलमेर का शाहगढ़ इलाका जहां सेवण धास के बड़े मैदान भी हैं, उनके लिए सबसे उपयुक्त है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीतों को यहां बसाया जाता है तो इससे न केवल डेजर्ट इको सिस्टम संतुलित होगा बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नये अवसर भी मिल सकेंगे.

पढ़ें- गुजरात से असम भेजी गई एशियाई शेरों की जोड़ी, देखें वीडियो

राज्य सरकार की पहल की आवश्यकता -

केन्द्रीय वन्यजीव संरक्षण संस्थानों और सुप्रिम कोर्ट की हरी झंडी के बाद अब गेंद राजस्थान के पाले में है. राजस्थान सरकार अगर इसमें गंभीरता दिखाए तो प्रदेश में पर्यटन कों बढ़ावा मिलने के साथ-साथ विलुप्त होती प्रजाती के संरक्षण का गौरव भी राजस्थान को मिल सकता है.

गौरतलब है कि प्रदेश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राज्य सरकार की ओर से वन्यजीव बोर्ड बनाया हुआ है लेकिन प्रदेश सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक इस बोर्ड का गठन नहीं किया गया, जबकि इसके लिये नियम है कि सरकार बनने के 6 माह के भीतर ही इस बोर्ड को बना लेना होता है. लेकिन अभी तक यह काम अधूरा है. अगल बोर्ड बनता है तो इस बात की संभावना को भी बल मिलेगा कि ऐशियाई चीतों की दहाड़ रेगिस्तान में सुनाई देगी.

Intro:देश के पश्चिमी छोर पर भारत - पाक सीमा का निगेहबान कहे जाने वाले सरहदी जिले जैसलमेर को विश्व पर्यटन मानचित्र पर भी एक विशेष पहचान प्राप्त है। जैसलमेर जो अपने रेतीले धोरों के साथ-साथ पीले पत्थरों से बने सोनार किले और नक्काशीदार हवेलियों के अलावा अपनी कला और संस्कृति के बलबूते देश और दुनिया के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह पर्यटन नगरी जैसलमेर का सम्मोहन ही है कि यहां पर हर साल आने वाले देशी व विदेशी सैलानियों के आंकडे में बढोत्तरी ही हो रही है जो कि यहां की अर्थव्यवस्था के लिये एक सुखद संदेश है। पर्यटन नगरी के इसी आकर्षण को और अधिक बढाने और दुनियाभर के सैलानियों को यहां एक नया आकषर्ण प्रदान करने के क्रम में सरकार द्वारा पिछले दिनों एक योजना बनाई गई थी जिसमें यहां के रेगिस्तानी इलाकों में ऐशियाई चीतों को लाने की बात कही गई थी, जानकारों का मानना था कि जैसलमेर में एक बडा रेगिस्तानी इलाका वीरान पडा है जहां पर ऐशियाई चीतों को बसाया जाये तो यहां के इको सिस्टम को बेतहर बनाया जा सकता है, लुप्त होती इस प्रजाती का संरक्षण किया जा सकता है और सबसे महत्वपूर्ण यहां के पर्यटन को भी चीतों के पुनर्वास के बाद नये पंख मिल सकते हैं।Body:ऐशियाई चीते जो कि दुनियाभर में कुछ गिनती के ही बचे हैं, दुनियाभर के वो देश जहां पर ये चीते मौजूद है वहां की सरकारें इनके संरक्षण के लिये भरकस प्रयास भी कर रही है। इसी कडी में भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने भी इन चीतों के संरक्षण और संवर्धन के लिये भारत में व्यवस्था करने की नीति बनाई जिसमें विशेषज्ञों की टीम बनाई गई जिसने देशभर में सर्वे किया और इन चीतों के लिये उपयुक्त वातावरण एवं भूभाग की खोज का काम करना आरम्भ किया। इस योजना के तहत वर्ष 2010 में भारतीय वन्यजीव संस्थान और वाइल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने राजस्थान, गुजरात और मघ्यप्रदेष सहित भारत के 10 प्राकृतिक आवास स्थलों का सर्वे किया था। इसके बाद टीम द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के कुनो और नौरादेही अभ्यारण के साथ राजस्थान के जैसलमेर जिले के रेगिस्तानी इलाके शाहगढ बल्ज को भी चीतों के पुनर्वास के लिये सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र बताया गया था। जिसके बाद से यहां के वन्यजीव प्रेमियों और पयर्टन से जुडे लोगों में उम्मीद जगी थी कि आगामी दिनों में जैसलमेर भी चीतों के एक अभ्यारण के रूप में दुनिया में अपनी एक नई पहचान बनायेगा ,लेकिन इस पूरी कवायद के बाद मामला सुप्रिम कोर्ट के पास विचार के लिये भेजा गया जिसमें अब सुप्रिम कोर्ट की तरफ से भी हरी झंडी मिल चुकी है, जिसमें मध्यप्रदेश के नौरादेही में चीतों को बसाने की बात कही गई है ऐसे में अब सरकार चाहे तो जैसलमेर के शाहगढ में भी चीतों के लिये अभ्यारण की उम्मीदों को पंख लगा सकती है।


गौतरतबल है कि दुनियाभर में ऐशियाई चीतों की प्रजाति की विलुप्ती के कगार पर है, केवल अफ्रीका और ईरान में ही इस प्रजाती के कुछ चीते बचे हैं, जिन्हें अगर यहां लाया जाता है तो संभवतः आगामी दिनों में यहां चीतों की संख्या में बढोत्तरी भी देखी जा सकी है। वन्यजीव संस्थाओं से जुडे लोगों का कहना है कि दशकों पूर्व ऐशियाई चीतों का मूल निवास स्थल रेगिस्तानी घास के मैदान ही रहे है ऐसे में जैसलमेर का शाहगढ इलाका जो रेगिस्तानी तो है ही साथ यहां पर सेवण धास के बडे मैदान भी है, जो इन चीतों के रहने के लिये उपयुक्त वातावरण प्रदान करेंगे। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इन चीतों को यहां बसाया जाता है तो इससे न केवल डेजर्ट इको सिस्टम संतुलित होगा बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नये अवसर भी मिल सकेंगे।
जानकारी के अनुसार इन ऐशियाई चीतों के पुनर्वास को लेकर हुए सर्वे में सामने आया था कि जैसलमेर का शाहगढ बल्ज इलाका करीब 8 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो 150 किलोमीटर लम्बा और 40 किलोमीटर चौडा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि पूरे हिन्दुस्तान में इतना बडा भूभाग जैसलमेर को छोड कर अन्य कहीं भी नहीं है इसलिये सरकार को इसे टेकअप करना चाहिये जिससे विलुप्त होती प्रजाती के संरक्षण के साथ साथ डेजर्ट इको सिस्टम को भी संतुलित किया सके और साथ ही इस इलाके में मरुस्थलीय खाद्य श्रंखला में शीर्ष मांसाहारी जानवर के संरक्षण को भी बल मिल सके।Conclusion:राज्य सरकार की पहल की आवश्यकता -
केन्द्रीय वन्यजीव संरक्षण संस्थानों और सुप्रिम कोर्ट की हरी झंडी के बाद अब गेंद राजस्थान के पाले में है। राजस्थान सरकार अगर इसमें गंभीरता दिखाये तो प्रदेश में पर्यटन कों बढावा मिलने के साथ साथ विलुप्त होती प्रजाती के संरक्षण का गौरव भी राजस्थान को मिल सकता है। गौरतलब है कि प्रदेश में वन्यजीवों के संरक्षण के लिये राज्य सरकार द्वारा वन्यजीव बोर्ड बनाया हुआ है लेकिन प्रदेश सरकार के सत्ता में आने के बाद से अबतक इस बोर्ड का गठन नहीं किया गया, जबकि इसके लिये नियम है कि सरकार बनने के 6 माह के भीतर ही इस बोर्ड को बना लेना होता है। ऐसे में सरकार द्वारा बोर्ड के गठन में गंभीरता नहीं दिखाना स्पष्ट करता है कि सरकार वन्यजीवों को लेकर कितनी चिंतित है। राज्य सरकार अगर अब भी इस बोर्ड का गठन कर गंभीरता दिखाती है तो सरहदी जिले के शाहगढ बल्ज इलाके में चीतों के पुनर्वास की परियोजना को बल मिल सकता है। ऐसे में अब इलाके के वन्यजीव प्रेमी सरकार की ओर आस लगाये बैठे हैं कि सरकार इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में गंभीरता दिखाते हुए बोर्ड का गठन करे और विलुप्त हो रहे ऐशियाई चीतों के संरक्षण की पहल करे तो प्रदेष को इस प्रजाति के संवर्धन का गौरव प्राप्त हो सकता है, इस मरुस्थलीय इलाके में डेजर्ट इकों सिस्टम को सुधारा जा सकता है, प्रदेश में पर्यटकों के लिये एक नया आकर्षण स्थापित किया जा सकता है और सबसे महत्वपूर्ण इस प्रोजेक्ट के माध्यम से कई लोगों को रोजगार से भी जोडा जा सकता है।


बाईट -1- मोहन, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट

बाईट -1- मालसिंह जामड़ा , पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक एवं पर्यावरण प्रेमी

बाईट -3 - रघुवीर सिंह , पर्यटन वयवसायी
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