पोकरण (जैसलमेर). तालाब प्रवासी पक्षी कुरजां के आवास के लिए अनुकूल तो हो गए हैं और कुरजां भी आने शुरू हो गए हैं. लेकिन अभी सरकार की तरफ से सुविधाओं की दरकार है. ताकि प्रवासी पक्षियों को उचित आबो-हवा के साथ सुरक्षित वातावरण मिल सके. मध्य एशिया के मंगोलिया, चीन, कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी कुरजां सर्दी के मौसम में भारत में प्रवास करते हैं. विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में ठण्ड के मौसम में कुरजां का प्रवास होता है.
पढ़ें: डेजर्ट नाइट- 21 : जोधपुर एयरबेस से फ्रांस के राफेल में उड़ान भरेंगे CDS विपिन रावत
लाठी के साथ धोलिया, भादरिया, डेलासर, खेतोलाई के जलाशयों में बड़ी संख्या में कुरजां प्रवास करती हैं. छह माह तक यहां रुकने के बाद गर्मी की शुरुआत में यहां से ये प्रस्थान करती हैं. इन दिनों आसपास का क्षेत्र सुबह के समय कुरजां के कलरव से गूंज उठता है.
पश्चिमी राजस्थान में प्रतिवर्ष सितम्बर माह में कुरजां की आवक शुरू होती है. कुरजां छह माह तक यहां प्रवास करने के बाद मार्च, अप्रैल में यहां से चली जाती हैं. सबसे अधिक संख्या में कुरजां फलोदी के खींचन तालाब पर प्रवास करती हैं. जहां कुरजां के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया करवाई गई हैं. यदि लाठी क्षेत्र में सुविधाओं का विकास किया जाए तो यहां भी कुरजां का प्रवास बढ़ सकता है.
इन सुविधाओं की है दरकार
- जलाशयों के आस-पास साफ-सफाई रखी जाए
- क्षेत्र में बर्ड रेस्क्यू सेंटर स्थापित किया जाए और इसके लिए अलग से बजट स्वीकृत करने की जरूरत
- तालाबों को कुरजां संरक्षित क्षेत्र घोषित कर अनावश्यक गतिविधियों पर रोकथाम की जरूरत
- पर्यटकों के बैठने व पक्षियों को देखने की विशेष व्यवस्था हो
- क्षेत्र से निकलने वाली विद्युत तारों को फलोदी के खींचन की तरह भूमिगत किया जाए
- तालाबों के आसपास कुरजां के लिए अलग से भूमि आरक्षित की जाए
- जलस्त्रोतों पर विकास कार्य करवाकर तारबंदी की जाए
खींचन की तरह लाठी क्षेत्र में भी कुरजां और दूसरे पक्षियों की आवक होती है. शोधार्थियों को भी नए विषय पर अध्ययन का मौका मिल सकेगा.