जयपुर. राजस्थान के कोटा में इस साल करीब 23 छात्रों ने आत्महत्या की है. ऐसे में प्रदेश में बढ़ते सुसाइड के मामलों पर नकेल कसने के लिए मंथन किया जा रहा है. इसके समस्या के निदान के लिए कहीं मेडिकल काउंसलिंग की बात कही गई तो कहीं साइकोलॉजिकल काउंसलिंग की वकालत हुई, लेकिन इनके अलावा भी सुसाइड के प्रयासों को रोकने के कारगार उपाय मौजूद है, जिसे फिलॉसॉफिकल काउंसलिंग कहा जा रहा है. इसे कई विकसित राष्ट्रों ने तो माना है, लेकिन भारत में अभी तक इस काउंसलिंग को लेकर नजरिया विकसित नहीं हो पाया है.
नवंबर के तीसरे गुरुवार को आता है ये दिवस : विश्व में आज यानी 16 नवंबर को वर्ल्ड फिलॉसफी डे मनाया जा रहा है. इसके इतिहास पर ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए राजस्थान यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अनुभव वार्ष्णेय ने बताया कि वर्ल्ड फिलॉसफी डे की शुरुआत साल 2002 में यूनेस्को की ओर से की गई थी. यूनेस्को ने इसे मनाने को लेकर नवंबर महीने के तीसरे गुरुवार को चुना. इस बार 16 नवंबर को ये दिवस मनाया जा रहा है. इस दौरान उन्होंने आए दिन हो रहे सुसाइड के मामलों पर दर्शनशास्त्र की भूमिका को लेकर कहा कि विकसित राष्ट्र वेस्टर्न यूरोप व अमेरिका जैसे देशों में ये काफी विकसित हो चुका है, लेकिन भारत में अभी भी फिलॉसॉफिकल काउंसलिंग शेप में नहीं आ सका है.
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3500 साल पुराना है दर्शनशास्त्र : उन्होंने फिलॉसॉफिकल काउंसलिंग से पहले फिलॉसफी के बारे में बताते हुए कहा कि फिलॉसफी या दर्शनशास्त्र एक ऐसा विषय है जो करीब 3500 साल पुराना है. किसी भी विषय या बिंदु पर किया गया गहन तार्किक चिंतन ही फिलॉसफी है. यही कारण है कि किसी भी विषय में सर्वोच्च उपाधि दी जाती है, उसे डॉक्टरेट इन फिलॉसफी कहते हैं. उन्होंने कहा कि मनुष्य को एक बौद्धिक प्राणी बताया गया है. चिंतन करना मनुष्य होने का अनिवार्य लक्षण है और जब इस चिंतन या विचार प्रक्रिया में अस्पष्टता आ जाती है, तब इसका स्वाभाविक दुष्परिणाम स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. ऐसे में आम व्यक्ति में या छात्र में जो आत्मघाती विचार आते हैं, उन पर नियंत्रण पाने का फिलॉसॉफिकल काउंसलिंग एक मजबूत तरीका हो सकता है, क्योंकि फिलॉसॉफिकल काउंसलिंग के जरिए विचारों में स्पष्ट और सुसंगतिता आती है. यूजीसी के मॉड्यूल में भी नैतिक शिक्षा के कॉन्सेप्ट शामिल किए गए हैं. ऐसे में प्रोफेशनल कोर्सेज में भी मूल्य संबंधी शिक्षा को पाठ्यक्रम से जोड़ना जरूरी है.
वहीं, फिलॉसफी को आध्यात्मवाद बताए जाने पर डॉ. वार्ष्णेय ने बताया कि राजस्थान यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे प्रो. दया कृष्णा ने 1960 में एक प्रसिद्ध शोध पत्र लिखा था- भारतीय दर्शन के विषय में तीन भ्रांतियां, जिसमें पहली भ्रांति ही यही है कि भारतीय दर्शन आध्यात्मवाद है. हकीकत ये है कि आध्यात्मवाद भारतीय चिंतन का महज एक बिंदु है. सिर्फ यही दर्शनशास्त्र है ये कहना गलत है.
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गुरू-शिष्य परंपरा में आया है बदलाव : वहीं, धीरे-धीरे खत्म होती गुरू-शिष्य परंपरा से सुसाइड के मामलों को रोके जाने के सवाल पर डॉ. अनुभव ने कहा कि पुरातन ज्ञान परंपरा का बहुत बड़ा अंश ऐसा है, जिसका महत्व शाश्वत है. गुरू-शिष्य परंपरा में कई सारे ऐसे मॉडल है, जो आज भी प्रासंगिक है. पुरातन होने की वजह से वो त्याज्य नहीं हो सकते. यज्ञोपवीत संस्कार में जिन मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, उनके एक अंश का मतलब यही है कि एक गुरू यही कहता है कि आज से मेरे और तुम्हारे विचार और वाणी एक जैसी हो जाए, क्योंकि बृहस्पति ने मुझे तुम्हारे लिए नियुक्त किया है. गुरू-शिष्य के संबंध की इस विपुल अंतर दृष्टि को आज हम भूल गए हैं. आज जो समस्या देख रहे हैं, उसका ये एक बहुत बड़ा कारण है, जिसका समाधान गुरू-शिष्य संबंध में निहित है.