जयपुर. 29 सितंबर को पूरी दुनिया में विश्व हृदय दिवस मनाया जाता है. इस दिन का मकसद दुनिया भर में लोगों के बीच ह्रदय रोगों से जुड़ी समस्याओं की जानकारी देना और हार्ट डिजीज को लेकर लोगों को जागरूक करना होता है. साल 2022 में विश्व हृदय दिवस की थीम Use Heart for Every Heart रखी गई है. इस साल विश्व हृदय दिवस की थीम एक दूसरे का समर्थन करके हृदय रोग से लड़ने के लिए दुनिया भर के लोगों को एकजुट करने पर केंद्रित है.
बता दें, वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन की ओर से विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद से इस दिन की शुरुआत की गई थी. विश्व हृदय दिवस मनाने का विचार एंटोनी बेयस डी लूना ने देखा था, जो वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के अध्यक्ष थे. आज छोटी उम्र से लेकर उम्रदराज लोगों को हार्ट डिजीज से पीड़ित देखा जा सकता है. दिल की बीमारी के मरीजों की संख्या दुनियाभर में लगातार बढ़ती जा रही है. कोरोना महामारी के बाद दुनिया में हार्ट पेशेंट्स की संख्या भी बढ़ती जा रही है, लिहाजा इस बीमारी से बचने के लिए लोगों में एहतियात और जागरूकता की बेहद जरूरत है. इस खास मौके पर ईटीवी भारत ने ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक गर्ग से बातचीत की और समझा कि कैसे इस बीमारी से बचा जा सकता है, या फिर वक्त पर इलाज लेकर बीमारी को गंभीर बनने से रोका जा सकता है.
कोरोना के बाद बढ़ा खतरा- हृदय रोग दुनिया भर में मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है. हर साल लगभग 1.7 करोड़ लोग हृदय रोग के कारण मर जाते हैं, जो सभी वैश्विक मृत्यु दर का लगभग 31 प्रतिशत है. दिल का दौरा, स्ट्रोक और कोरोनरी हृदय रोग हृदय संबंधी विकारों के कारण होने वाली मौतों के सबसे आम कारणों में से एक है. कोरोना ग्रसित हो चुके मरीजों में हार्ट अटैक के मामलों में 8 फ़ीसदी और हृदय से संबंधित विकार के मामले में 247 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है. यह खुलासा खुद नेचर नाम से प्रकाशित होने वाले एक मेडिकल जर्नल में किया गया है.
ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक गर्ग ने बताया कि कोरोना के बाद ज्यादातर लोगों की लाइफ स्टाइल में एक्टिव पार्ट कम हो चुका है और आलस ज्यादा आ चुका है. लिहाजा शरीर की यही सुस्ती बीमारी में इजाफा कर रही है. डॉक्टर गर्ग ने बताया कि कोरोना के बाद तनाव भी बढ़ा है. खास तौर पर पारिवारिक, मानसिक और आर्थिक रूप से आई परेशानियों को लेकर लोगों के स्ट्रेस लेवल में भी इजाफा देखा गया है. जिसके कारण हार्ट पेशेंट्स की संख्या अचानक बढ़ गई है. इसी तरह से मेडिकल टर्म के हिसाब से भी शरीर के अंदर आई तब्दीलियां और इम्यून पावर का एक्स्ट्रा एक्टिव होना भी ह्रदय रोग के मामलों में बढ़ोतरी की एक वजह बन कर सामने आया है.
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युवाओं के लिए ज्यादा चुनौती- आज कल युवाओं में भी हार्ट के कारण अक्सर मौत के मामले देखे जा रहे हैं. डॉ अशोक गर्ग के मुताबिक ऐसा हाई रिस्क वाले लोगों के साथ होने की संभावना अधिक होती है. मौजूदा दौर में करीब 40 फीसदी तक युवाओं में हार्ट अटैक के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है. इसीलिए सामान्य जनसंख्या में 40 साल की आयु के बाद या हाई रिस्क वाली आबादी में 30 साल की आयु के बाद साल में एक बार या 2 साल में एक बार हृदय जांच की सलाह दी जाती है.
यहां हाईरिस्क वाले लोगों से मतलब उन से है, जो खुद डायबिटीज, डिप्रेशन या हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हों. जिनमें मोटापा या फिर कोलेस्ट्रॉल अनियंत्रित हो या परिवार में इन बीमारियों के कारण ह्रदय रोग से जुड़ा इतिहास रहा हो. ऐसे लोगों को चिकित्सक हाई रिस्क जोन में मानते हैं और इन लोगों को अपनी सेहत के प्रति हमेशा एहतियात बरत कर चलना चाहिए. डॉक्टर के मुताबिक युवाओं में कोरोना के बाद शरीर में आए असर, तनाव, फैमिली हिस्ट्री, स्मोकिंग और फास्ट फूड की आदतों के कारण भी हृदय रोग के मामलों में इजाफा देखने को मिला है.
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कसरत पर दे विशेष ध्यान- जोरदार व्यायाम से पहले अपने शरीर को पर्याप्त रूप से हाइड्रेट न करने के बारे में युवाओं को सावधान करते हुए, डॉ गर्ग कहते हैं कि जब आप हाइड्रेट नहीं रहते हैं और भारी व्यायाम करते हैं और पसीना बहाते हैं, तो खून गाढ़ा हो जाता है और थक्का बन सकता है. साथ ही अपनी क्षमता से अधिक व्यायाम करने से तनाव होता है, जिसकी वजह से धमनी का टूटना शुरू हो सकता है. खासकर अगर इसमें कोलेस्ट्रॉल जमा हो,किसी भी प्रकार के जोरदार व्यायाम कार्यक्रम में शामिल होने से पहले हृदय की जांच करना जरूरी है.
वे सलाह देते हैं कि छाती में बेचैनी/सांस फूलना, हृदय की समस्याओं की संभावना को दर्शाता है. याद रखें कि जब तक लक्षण प्रकट होते हैं, तब तक रोग एक एडवांस स्टेज में हो सकता है. 30 से 45 मिनट के लिए डेली एक्सरसाइज शरीर को फिट और कई बीमारियों और डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, मोटापा आदि जैसी स्वास्थ्य स्थितियों से मुक्त रख सकता है. यह बदले में हृदय रोग को रोकने में मदद करता है.