जयपुर. आज 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है. दुनियाभर में पर्यावरण दिवस पर अलग अलग आयोजन भी हो रहे हैं. कई लोगों को पर्यावरण संरक्षण पर बात करते भी की भी सुना होगा, लेकिन जमीनी स्तर पर बहुत कम लोग ही पर्यावरण के लिए काम करते हैं. उन कम लोगों में एक नाम राजस्थान के रहने वाले विष्णु लाम्बा का है, जो पर्यावरण को भगवान मानकर काम कर रहे हैं. पर्यावरण की रक्षा के लिए अपना घर-परिवार छोड़ दिया और लगातार पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
हम बात कर रहे हैं ट्री मैन ऑफ इंडिया विष्णु लांबा की जिन्होंने आजीवन पर्यावरण की सेवा का संकल्प ही नहीं लिया बल्कि उसे बखूबी निभा भी रहे हैं. विष्णु लांबा के अथक प्रयासों से आज समाज में पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई नई क्रांति का सूत्रपात हुआ है. विष्णु अपनी जान पर खेलकर करीब 13 लाख पेड़ों को बचाया है और 11 लाख निशुल्क वितरित किए हैं. विष्णु बताते हैं कि आज उनके साथ 22 राज्यों के लाखों युवा हैं. उनको पूर्ण विश्वास है कि वो दिन दूर नहीं जब हर आम और खास आदमी उनकी मुहिम का हिस्सा बनेगा और प्रकृति के संरक्षण में अपना योगदान देगा. विष्णु आज भी तंग हालत में जीते हैं. उनके पास पौधे खरीदने के पैसे नहीं होते, लेकिन जन सहयोग से वह लगातार पर्यावरण का संरक्षण करने में लगे हैं. बेहद साधारण से दिखने वाले विष्णु लांबा राजस्थान में नहीं बल्कि प्रदेश के कई राज्यों में पौधे लगाने का अभियान चला रहे हैं.
बचपन में पौधे चुराने वाला बना ट्री-मैन
पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों से गहरा लगाव रखने वाले विष्णु लांबा का जन्म टोंक जिले से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव लांबा में 3 जून 1987 को हुआ था. महज 7 साल की उम्र में विष्णु ने अपने बाडे में तरह-तरह के पौधे लगाना शुरू किया. पौधे खरीदने के लिए घर वाले पैसे नहीं देते, तो विष्णु किसी के भी घर और खेत से पौधे चुराने में जरा सी भी देर नहीं करते, इनकी इसी आदत से तंग आकर घर वालों ने उन्हें बुआजी के यहां पढ़ने भेज दिया. लेकिन, विष्णु का प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ता ही गया. उसके बाद विष्णु, ताऊजी के साथ जयपुर आ गए. अब भी इनका प्रकृति प्रेम कम नहीं हुआ और उन्होंने तत्कालीन जयपुर कलेक्टर श्रीमत पांडे के घर में बनी नर्सरी से पौधे चुरा लिए. इस तरह से पौधे चुराने वाला आज देश का ट्री-मैन ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
सन्यासियों के पास संस्कृति को जाना
विष्णु लांबा का बचपन से ही पेड़ पौधों और साधू सन्यासियों के प्रति झुकाव रहा. माता सुशीला देवी से बचपन में सुनी रामायण महाभारत की कथा का इस तरह से असर हुआ कि वो दीक्षा लेने के लिए साधुओं के पास पहुंच गए. पढ़ाई में कमजोर होने के कारण पिता ने गांव में तालाब किनारे स्थित बालाजी के मंदिर में रामसुखदास महाराज के पास भेज दिया. विष्णु यहां पर दिनभर महाराज के पास रहते और कई बार तो रात को भी यहीं रुक जाते. कहते हैं कि पारिवारिक संस्कारों ने विष्णु को सन्यासियों के करीब लाने का काम किया. विष्णु बताते हैं कि वो संत कृष्ण दास के संपर्क में आए और दीक्षा लेने की जिद करने लगे. लेकिन, महाराज ने दीक्षा देने से मना करते हुए कहा कि तुम्हें बिना भगवा धारण किए ही बहुत बड़ा काम करना है. इसके बाद विष्णु ने दीक्षा लेने की बात को त्याग दिया और पेड़ों के लिए अपना जीवन को समर्पित कर दिया.
56 से अधिक क्रांतिकारियों के बलिदान स्थल पर लगाए पौधे
विष्णु लाम्बा ने आजादी के बाद पहली बार देश के 22 राज्यों में भ्रमण कर 56 से अधिक क्रांतिकारियों के परिवारों को तलाश कर शहीदों के बलिदान स्थलों पर पौधारोपण जैसे कार्य करा कर देश में पर्यावरण का संदेश दिया.
पूर्व कुख्यात दस्युओं को दिलाई पर्यावरण संरक्षण की शपथ
फिल्म पान सिंह तोमर से प्रेरित होकर विष्णु लाम्बा ने राजस्थान की चंबल से चित्रकूट तक फैले चंबल के बीहड़ों में करीब 2 साल तक खाक छानी और पूर्व कुख्यात दस्युओं को अपनी मुहिम से जोड़ा. विष्णु ने पूर्व कुख्यात दस्युओं मलखान सिंह, रेनू यादव, सीमा परिहार, मोहर सिंह, जगदीश सिंह, पंचम सिंह, सरू सिंह, पहलवान सिंह, बलवंता सहित कई पूर्व कुख्यात दस्युओं से मुलाकात की और उनके साथ भी रहे.
विष्णु ने 20 मई 2016 को जयपुर में आयोजित पर्यावरण को समर्पित पूर्व कुख्यात दस्युओं के महाकुंभ 'पहले बसाया बीहड़, अब बचाएंगे बीहड़' समारोह के माध्यम से पूर्व कुख्यात दस्युओं को पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाई. बता दें, इस तरह का आयोजन दुनिया में पहली बार जयपुर में आयोजित किया गया था. बता दे, विष्णु लाम्बा बिना सरकारी मदद के अब तक 33 साल की उम्र में 33 लाख 50 हजार पौधे लगा चुके हैं. जिसके लिए राज्य सरकार की तरफ से सम्मानित भी किए जा चुक है.