जयपुर. ट्रांसजेंडर्स कानूनी अधिकार भले ही मिल गए हों, लेकिन आज भी समाज की मुख्य धारा में उन्हें जोड़कर नहीं देखा जाता. फिर चाहे वह वर्कप्लेस हो या फिर मतदान का अधिकार. मतदाता सूची के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में आज भी 2 लाख के करीब ट्रांसजेंडर्स हैं. इसमें से मात्र 500 के करीब ट्रांसजेंडर्स के ही नाम जुड़ पाए हैं. ट्रांसजेंडर के साथ में हो रहे भेदभाव को लेकर जयपुर में जिला निर्वाचन विभाग और वसुधा जन विकास संस्थान के विशेष कार्यक्रम 'वोट ताल ठोक के' आयोजित किया गया. कार्यक्रम में ट्रांसजेंडर्स ने समाज के बीच उनके साथ होने वाले भेदभाव पर खुल कर चर्चा की. साथ ही समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए अपने अधिकारों की मांग रखी.
वोटिंग राइट्स के लिए अवेयर किया: जिला परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी शिल्पा सिंह ने बताया कि कार्यक्रम का मकसद शहर के ट्रांसजेंडर्स को वोटिंग राइट्स के लिए जागरूक करना है. ताकि वो ज्यादा से ज्यादा वोट कार्ड बनवा कर अपने मताधिकारों को उपयोग कर लोकतंत्र में अपनी भूमिका निभाएं. शिल्पा सिंह ने ट्रांसजेंडर्स से वोटर आईडी कार्ड में नाम जुड़वाने की अपील की. उन्होंने कहा कि अब ट्रांसजेंडर को भी कानूनी अधिकार मिल गए है. उन्हें भी अपने अधिकारों को लेकर जागरूक होना होगा. साथ उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन से ट्रांसजेंडर्स को जानकारी मिलेगी तब ही उनके मुद्दे सशक्त रूप से सामने आ सकेंगे, जब वे मतदान करेंगे.
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हमें भी तो मिला मौका: देश में बर्थ सर्टिफिकेट प्राप्त करने वाली प्रथम ट्रांसजेंडर नूर शेखावत ने मतदाताओं से मतदाता सूची में नाम जुड़वाने की पुरजोर अपील की. उन्होंने बताया कि वे राजस्थान यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने वाली प्रथम ट्रांसजेंडर हैं, क्योंकि वो अपने अधिकारों को लेकर जागरूक थी. लेकिन आज भी ट्रांसजेंडर समाज ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है. आज भी शिक्षा का अभाव है, समाज मे उन्हें तिरस्कार की नजर से देखा जाता जाता है. इसी वजह से ट्रांसजेंडर भिक्षावृत्ति और मांगलिक कार्यों में मांग कर ही अपना पेट भर पड़ता है. नूर ने कहा कि जैसे मैंने अधिकार प्राप्त किए हैं, उसी प्रकार सभी ट्रांसजेंडर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनने की जरूरत है. प्रशासन की तरफ से इस तरह के जागरूता के कार्यक्रम होते रहने चाहिए जिससे हमारा समाज जागरूक हो सकेगा. नूर ने कहा कि हम वोट भी देने लगे हैं लेकिन समाज के उत्थान की दिशा में काम नहीं होता.
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वीएचए एप करेगा प्रॉब्लम दूर: वसुधा जन विकास संस्थान की निदेशक मोना शर्मा ने बताया कि ट्रांसजेंडर्स को मुख्यधारा में लाने के लिए वर्ष 2014 में ही मतदान का अधिकार मिल चुका है. इसके साथ सरकार की योजनाओं में भी ट्रांसजेंडर्स समुदाय को विशेष आरक्षण दिया गया, लेकिन आज भी इन लोगों के पास जागरूकता का अभाव है. प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक 2 लाख के करीब ट्रांसजेंडर्स है, लेकिन वोटिंग का अधिकार मात्र 500 के करीब ही है. ट्रांसजेंडर मतदान प्रतिशत बेहद कम है.
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इनके गंभीर मुद्दों को भी इसलिए तवज्जो नहीं मिल पाती. अगर ये समाज मतदान में जिस दिन अपनी भूमिका निभाने लगेगा या इस समुदाय को पूरी तरह से मतदाता सूची में जोड़ा जा सकेगा. तब सरकार भी इनके वोट की अहमियत को समझ इनके उत्थान के लिए काम करेंगी. मोना ने बताया कि इस तरह के कार्यक्रमों के जरिए वोटिंग के प्रति जागरूकता लाना और मतदान में उनका विश्वास बढ़ाना इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था.