जयपुर. प्राइवेट स्कूल के छात्रों को भी सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, राजधानी में पहली बार हुई बाल संसद में ये संकल्प पारित हुआ. इस बाल संसद में छात्रों ने शिक्षा, न्याय, राजनीति, पत्रकारिता, संविधान से जुड़े विशेषज्ञों के साथ खुले मैदान में चर्चा की. इसके साथ ही तीन संकल्प भी पारित हुए, जिसे राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को सौंपा जाएगा. इस बाल संसद को 'गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में भी दर्ज किया गया.
प्राइवेट स्कूलों के सबसे बड़े संगठन स्कूल शिक्षा परिवार की ओर से जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में बाल संसद का आयोजन किया गया. इस दौरान छात्र प्रतिनिधियों की ओर से पूछे गए सवालों का विधि विशेषज्ञों और शिक्षा विभाग विशेषज्ञ के पैनल ने जवाब दिया. मौके पर ही जस्टिस दीपक माहेश्वरी ने फैसला लिखा. इस संसद में जस्टिस दीपक माहेश्वरी ने संकल्प का प्रारूप पेश कर तीन संकल्प पारित किए, जो बाल संसद 23 जयपुर चैप्टर नाम से जाने जाएंगे.
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ये संकल्प हुए पारित :
- भारतीय संविधान में सरकारी और गैर सरकारी छात्रों में भेदभाव करने का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में सभी बच्चों को समान रूप से एक मानकर सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए.
- इस संबंध में बाल संसद का पारित संकल्प पत्र राज्य सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजा जाए. सरकार की ओर से कार्रवाई नहीं होने पर न्यायालय की शरण में किसी जनहित याचिका के रूप में लेकर जाया जाए.
- शिक्षा सेवा है इसे व्यवसाय नहीं माना जाए. साथ ही राज्य सरकार की ओर से भी शिक्षा को व्यवसाय मानकर चलने वालों के संबंध में उचित कार्रवाई की जाए.
खुद सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रही : इस दौरान स्कूल शिक्षा परिवार के प्रदेशाध्यक्ष अनिल शर्मा ने इनडायरेक्ट छात्रों को समर्थन देने वाले दल के पक्ष में मतदान करने की बात कही. साथ ही बताया कि स्कूल शिक्षा परिवार की ओर से छात्रों की पीड़ा को आगे रखते हुए आम जन के सामने ये मैसेज दिया गया कि बच्चों के साथ भेदभाव हो रहा है. अब तक प्राइवेट स्कूल संचालकों पर व्यवसायीकरण करने का आरोप लगाया जाता रहा है, लेकिन खुद सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रही है, जिस पर रोक लगनी चाहिए. इस बाल संसद में हजारों छात्र, अभिभावक और स्कूल संघ प्रतिनिधि के साथ ही राजनीतिक विशेषज्ञ के रूप में राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, शिक्षा विभाग विशेषज्ञ के रूप में सेवानिवृत्ति कलेक्टर जीपी शुक्ला और पूर्व उपनिदेशक सत्येंद्र पवार, राजस्थान अभिभावक संघ के मनीष विजयवर्गीय और विधि विशेषज्ञ के रूप में राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. भगवान दास रावत मौजूद रहे.