जयपुर. हैदराबाद में वेटरनरी डॉक्टर से सामुहिक दुष्कर्म कर उसकी जलाकर हत्या करने वाले चार आरोपियों के एनकाउंटर को लेकर पुलिस की देशभर में वाहवाही हो रही है. वहीं. अगर राजस्थान की बात की जाए तो पिछले करीब तीन सालों में पांच ऐसे मामले हुए हैं, जब दुष्कर्म और हत्या के अभियुक्तों को निचली अदालतों ने फांसी की सजा सुनाई. लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने इन सभी की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.
इनमें पांच मामलों में चार मामले नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म करने से जुडे़ हैं. वहीं, एक मामला सात माह की बच्ची से दुष्कर्म करने से जुड़ा हुआ है. कानून के जानकारों का कहना है कि अभियुक्तों को सुनवाई का मौका देने के बाद ही अपराध को लेकर फैसला दिया जाना चाहिए, लेकिन फैसला होने के बाद उसे सालों तक लटकाए रहना भी ठीक नहीं है.
मामलों के अनुसार 27 जुलाई 2018 को झालावाड़ जिले में सात साल की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के मामले में निचली अदालत ने 26 सितंबर 2019 को अभियुक्त कोमल लोढ़ा को फांसी की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट में अभियुक्त की ओर से एफआईआर में नाम नहीं होने का हवाला दिया गया.
जिस पर हाईकोर्ट ने गत 7 नवंबर को अभियुक्त की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. इसी तरह झुंझुनू के मलसीसर में गत वर्ष 2 अगस्त को तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत ने उसी माह 31 अगस्त को अभियुक्त विनोद कुमार को फांसी की सजा सुनाई.
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लेकिन अभियुक्त की अपील पर हाईकोर्ट ने गत वर्ष 5 दिसंबर को फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. वहीं, अलवर में सात माह की बच्ची से बलात्कार के अभियुक्त पिंटू को निचली अदालत ने गत वर्ष 9 मई को फांसी पर लटकाने के आदेश दिए.
लेकिन अभियुक्त की ओर से अपनी कम उम्र और हाल ही में शादी होने का हवाला दिया गया. इसके बाद हाईकोर्ट ने उसकी सजा को भी आजीवन कारावास में बदल दिया गया. झुंझुनू जिले में सात साल की साली के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में निचली अदालत ने अगस्त 2016 में अभियुक्त वेद प्रकाश को फांसी की सजा सुनाई.
लेकिन अभियुक्त की अपील पर हाईकोर्ट ने सजा को न सिर्फ आजीवन कारावास में बदला, वहीं सरकार को अभियुक्त का अच्छा आचरण होने पर सजा कम करने का भी अधिकार दिया. इसी तरह कोटा में 6 दिसंबर 2012 को महिला के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में निचली अदालत ने 7 नवंबर 2017 को अभियुक्त कपिल, इमरान और टीपू को फांसी की सजा सुनाई. लेकिन अभियुक्तों की अपील पर हाईकोर्ट ने तीनों की फांसी को आजीवन कारावास में बदल दिया.
12 साल से कम आयु के मामले में है फांसी का प्रावधान
राज्य सरकार ने गत वर्ष 31 अप्रैल को कानून में संशोधन कर 12 साल से छोटी बालिकाओं से दुष्कर्म के मामलों में अभियुक्तों को फांसी की सजा देने का प्रावधान कर चुकी है. कानून में संशोधन के बाद निचली अदालतों ने अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाई. लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास में बदल दिया.
निचली अदालत देती है सजा, हाईकोर्ट करता है कन्फर्म
कानून की प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि निचली अदालतों को अपराधियों को फांसी देने का अधिकार है. लेकिन उनके फैसले के आधार पर जेल प्रशासन अभियुक्त को फांसी की सजा नहीं दे सकता.
निचली अदालत की ओर से फांसी की सजा का आदेश देने के बाद अगर अभियुक्त उसकी हाईकोर्ट में अपील नहीं करता है तो भी प्रकरण को हाईकोर्ट में सुना जाता है. इसके लिए राज्य सरकार हाईकोर्ट में अपील पेश करती है. जिसे डेथ रेफरेंस कहा जाता है. इस पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट अभियुक्त को फांसी की सजा देने या नहीं देने पर विचार करता है.