शाहपुरा (जयपुर). जयपुर के शाहपुरा में स्थित मोक्षधाम में चारो ओर हरियाली है. यहां जगह-जगह बैठने के लिए सीमेंटेड कुर्सियां लगी है.फव्वारे लगे हुए है. घास पर बैठकर यहां लोग योगा करते दिखाई देते है. जो किसी पार्क से कम नजारा नहीं लगता. हरियाली से घिरा पार्क साथ ही फूलों की खुशबू से महकता माहौल अगर किसी श्मशान घाट में देखने को मिले तो शायद आप उसे कोई पार्क समझ लें. शाहपुरा के फाफिया स्थित मोक्षधाम बिल्कुल ऐसा ही है.
पर्यावरण संरक्षण की कहानी बयां करता मोक्षधाम
यह मोक्षधाम पर्यावरण संरक्षण की कहानी बयां करने के साथ ही पेड़-पौधे और जीवन के यथार्थ से भी अवगत कराता है. कुछ समय पहले यहां चारों तरफ कंटीली झाड़ियां के बीच पैर टेकने को जगह नहीं थी. किसी की मौत हो जाने पर अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले लोग अंदर जाने में कतराते थे. मोक्षधाम विकास समिति के सदस्यों ने श्मशान घाट को विकसित करने के लिए भामाशाहो को प्रेरित किया और उनके सहयोग से इसे संवारने का काम शुरू कर दिया. उनकी मेहनत आज सबके सामने है. आज यह जगह इतनी चमन हो गई कि सुबह प्रतिदिन लोगों का हुजूम लगता है.
लाखों रुपए के सहयोग विकसित हुआ मोक्षधाम
जहां पहले लोग अंदर जाने से भी कतराते थे. वहां आज योगा और जॉगिंग के लिए लोग आते है. लाखों रुपए के सहयोग से इस मोक्षधाम का विकास कराया गया है. यहां चारों तरफ बाउंड्री वॉल है. यंहा परिसर में ही भामाशाह के सहयोग से लकड़ी की टाल संचालित है. जहां से लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए निशुल्क लकड़ियां उपलब्ध कराई जाती है. महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नानघर है. इनमें भी ठंडे और गर्म पानी की व्यवस्था के अलावा वाटर कूलर भी लगा हुआ है. यूं तो शाहपुरा में पार्क के अभाव में लोग सड़क पर ही जॉगिंग करते नजर आते है. लेकिन मोक्षधाम में बने पार्क ने उनकी इस समस्या को काफी हद तक दूर कर दी.
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लावारिश शवों का भी यहां होता है दाह संस्कार
इतना ही नहीं लावारिश शवों के दाह संस्कार के बाद इनकी अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जित भी समिति सदस्य अपने स्तर पर करवाते है. यहां लोगों के बैठने सीमेंटेड कुर्सियां भी लगाई गई है. आज इस मोक्षधाम का जो कायाकल्प हुआ है. उसमे अब अन्य बढ़चढ़ कर अपना योगदान देने के लिए आगे आ रहे है और यह संभव हुआ है समिति सदस्यों और स्थानीय भामाशाहो की सकारात्मक सोच एवं सेवा की वजह से.