ETV Bharat / state

चाकसू में शीतलाष्टमी मेला शुरू: 500 साल पुराना है शीतला माता मंदिर, जयपुर राजघराने की ओर से लगता है पहला भोग

author img

By

Published : Mar 24, 2022, 11:34 PM IST

Updated : Mar 24, 2022, 11:52 PM IST

शीतलाष्टमी पर चाकसू की शील डूंगरी पर लगने वाला वार्षिक मेला शुरू हो गया (Sheetla mata mela in Chaksu) है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना और शीतला माता के दर्शनों के लिए आते हैं. जयपुर राजदरबार की ओर से निर्मित 500 साल पुराने इस मंदिर में आज भी पहला भोग राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद से ही लगाया जाता है.

Sheetla mata mela in Chaksu
चाकसू में शीतलाष्टमी मेला शुरू

चाकसू (जयपुर). शीतलाष्टमी के मौके पर चाकसू शील डूंगरी पर लगने वाला 2 दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला बुधवार से शुरू हो गया है. इसके साथ ही यहां श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया. मेले को लेकर मन्दिर ट्रस्ट समिति एवं प्रशासन की ओर से चाकचौबंद व्यवस्था की गई है. यहां लगने वाला वार्षिक लक्खी मेला सांस्कृतिक संगम और सामाजिक समरसता का संदेश देता है.

यहां श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करने में किसी तरह की परेशानी न हो और हर गतिविधियों पर नजर रखने के लिए मन्दिर व मेला परिधी क्षेत्र में 20 क्लोजर सीसीटीवी कैमरे लगाकर मॉनिटरिंग की जा रही है. मेला परिधी क्षेत्र में शांति व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन की ओर से मेला की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी संख्या में पुलिस सुरक्षा बल व सेक्टर प्रभारी तैनात किए (Security arrangements in Sheetla mata mela in Chaksu) हैं. इस बार कोरोना से राहत मिलने के बाद यहां मेले में श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ आने की संभावना भी है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता की चौखट पर मत्था टेकने आते हैं और मनोतियां मांगते हैं.

पढ़ें: बासी भोजन का भोग लगाकर महिलाओं ने शीतला माता से मांगी सुख-समृद्धि

आज घरों में रांधा पुआ पर्व मनाया जा रहा है. जिसमें माता को भोग अर्पण करने के लिए कई तरह के पकवान बनाए जा रहें है. जिसमें राबड़ी मालपुआ-पापड़ी भोग के लिए विशेष मानी जाती है. सुबह बास्योड़ा पर माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाने के साथ ही प्रत्येक घर का सदस्य उसी ठंडे बासी भोजन को ग्रहण करते हैं. चैत्र कृष्णा सप्तमी को शीतला माता का पूजन करके उन्हें रिझाया जाता है. पूरे राजस्थान में शीतला माता मेले चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को लगते हैं. लेकिन मुख्य एवं प्रसिद्ध मेला शील डूंगरी चाकसू स्थित पहाड़ी पर बने माता के मंदिर पर लगता है.

पढ़ें: चाकसू : शील डूंगरी में शीतला अष्टमी मेले में माता के दर पर हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई हाजरी

लोगों की आस्था का केंद्र है मंदिरः जयपुर राजदरबार की ओर से निर्मित यह मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. आज भी यहां पहला भोग राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद से ही लगाया जाता है. मान्यता है कि गर्मी की बीमारियों से माता छुटकारा दिलाती हैं. शीतला माता एक पौराणिक देवी मानी जाती हैं. मान्यता है कि व्यक्ति किसी भी वर्ग का हो शीतला माता उसके घर अवश्य आती हैं. गधा इनका वाहन है, इनके एक हाथ में झाड़ू, दूसरे हाथ में जल से भरा हुआ कलश एवं सिर पर सूप है. इनकी मुखाकृति गम्भीर है.

महाराजा माधोसिंह ने कराया था मंदिर का निर्माणः पौराणिक शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण जयपुर के भूतपर्व महाराजा माधोसिंह ने करवाया था. तब से आज तक यहां पहला भोग राजदबार से माता को चढ़ता है. शीतला माता को बच्चों की संरक्षिका माना जाता है और इसी रूप में इन्हें पूजते हैं. मेले में आसपास ही नहीं अपितु राज्य के हर हिस्से से लोग माता के दशर्न करने पहुंचते हैं. श्रद्धालु नाच-गाकर एवं रात्रि जागरण करके माता को रिझाते हैं. खास बात यह है कि कई समाजों के बन्धु इस मेले में अपनी जातीय पंचायत लगाकर आपसी झगड़े सुलझाते हैं.

पढ़ें: शीतलाष्टमी पर शीतला माता के दरबार में उमड़ा भक्तों का सैलाब, माता को ठंडे पकवानों का लगाया भोग...देखें तस्वीरें

शील डूंगरी में स्थित शीतला माता के इस मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित भी हैं. यह मंदिर 500 साल पुराना (500 year old Sheetla Mata Mandir in Chaksu) है. बारहदरी पर लगे शिलालेख में अंकित है कि जयपुर नरेश माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह एवं गोपाल सिंह के चेचक हुई थी. शीतला माता की कृपा से ठीक हो गई. इसके बाद राजा माधोसिंह ने शील की डूंगरी पर मंदिर एवं बारहदरी का निर्माण कराया. यहां बनी बारहदरी भवन पर लगे शिलालेख में माता के गुणगान का उल्लेख मिलता है. पहाड़ी पर माता का मंदिर है जिसमें मां शीतलामाता की मूर्ति विराजमान है.

होली से 8 दिन बाद भरता है मेलाः चाकसू शील डूंगरी मन्दिर में होली से ठीक 8 दिन बाद शीतलाष्टमी का दो दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला भरता है. मन्दिर ट्रस्ट एवं नगर पालिका चाकसू प्रशासन इस मेले की व्यवस्थाएं संभालते हैं. मेले में पहली रात्रि से ही विभिन्न प्रकार के खेलकूद, मनोरंजन के विविध कार्यक्रम आयोजित होते हैं. साथ ही एक पशु मेला भी लगता है. जयपुर आसपास के अलावा बाहरी राज्यों से भी श्रद्धालु मेले में माता के दर्शनों के लिए आते हैं. इस मेले में सभी धर्म वर्ग के लोग माता के दरबार पहुंचते हैं. यहां मेले के अवसर पर विभिन्न समाजों की गोठियां भी चलती हैं, जिसमें उनके लड़के-लड़कियों के शादी विवाह के रिश्ते भी तय होते हैं.

चाकसू (जयपुर). शीतलाष्टमी के मौके पर चाकसू शील डूंगरी पर लगने वाला 2 दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला बुधवार से शुरू हो गया है. इसके साथ ही यहां श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया. मेले को लेकर मन्दिर ट्रस्ट समिति एवं प्रशासन की ओर से चाकचौबंद व्यवस्था की गई है. यहां लगने वाला वार्षिक लक्खी मेला सांस्कृतिक संगम और सामाजिक समरसता का संदेश देता है.

यहां श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करने में किसी तरह की परेशानी न हो और हर गतिविधियों पर नजर रखने के लिए मन्दिर व मेला परिधी क्षेत्र में 20 क्लोजर सीसीटीवी कैमरे लगाकर मॉनिटरिंग की जा रही है. मेला परिधी क्षेत्र में शांति व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन की ओर से मेला की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी संख्या में पुलिस सुरक्षा बल व सेक्टर प्रभारी तैनात किए (Security arrangements in Sheetla mata mela in Chaksu) हैं. इस बार कोरोना से राहत मिलने के बाद यहां मेले में श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ आने की संभावना भी है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता की चौखट पर मत्था टेकने आते हैं और मनोतियां मांगते हैं.

पढ़ें: बासी भोजन का भोग लगाकर महिलाओं ने शीतला माता से मांगी सुख-समृद्धि

आज घरों में रांधा पुआ पर्व मनाया जा रहा है. जिसमें माता को भोग अर्पण करने के लिए कई तरह के पकवान बनाए जा रहें है. जिसमें राबड़ी मालपुआ-पापड़ी भोग के लिए विशेष मानी जाती है. सुबह बास्योड़ा पर माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाने के साथ ही प्रत्येक घर का सदस्य उसी ठंडे बासी भोजन को ग्रहण करते हैं. चैत्र कृष्णा सप्तमी को शीतला माता का पूजन करके उन्हें रिझाया जाता है. पूरे राजस्थान में शीतला माता मेले चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को लगते हैं. लेकिन मुख्य एवं प्रसिद्ध मेला शील डूंगरी चाकसू स्थित पहाड़ी पर बने माता के मंदिर पर लगता है.

पढ़ें: चाकसू : शील डूंगरी में शीतला अष्टमी मेले में माता के दर पर हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई हाजरी

लोगों की आस्था का केंद्र है मंदिरः जयपुर राजदरबार की ओर से निर्मित यह मंदिर क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. आज भी यहां पहला भोग राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद से ही लगाया जाता है. मान्यता है कि गर्मी की बीमारियों से माता छुटकारा दिलाती हैं. शीतला माता एक पौराणिक देवी मानी जाती हैं. मान्यता है कि व्यक्ति किसी भी वर्ग का हो शीतला माता उसके घर अवश्य आती हैं. गधा इनका वाहन है, इनके एक हाथ में झाड़ू, दूसरे हाथ में जल से भरा हुआ कलश एवं सिर पर सूप है. इनकी मुखाकृति गम्भीर है.

महाराजा माधोसिंह ने कराया था मंदिर का निर्माणः पौराणिक शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण जयपुर के भूतपर्व महाराजा माधोसिंह ने करवाया था. तब से आज तक यहां पहला भोग राजदबार से माता को चढ़ता है. शीतला माता को बच्चों की संरक्षिका माना जाता है और इसी रूप में इन्हें पूजते हैं. मेले में आसपास ही नहीं अपितु राज्य के हर हिस्से से लोग माता के दशर्न करने पहुंचते हैं. श्रद्धालु नाच-गाकर एवं रात्रि जागरण करके माता को रिझाते हैं. खास बात यह है कि कई समाजों के बन्धु इस मेले में अपनी जातीय पंचायत लगाकर आपसी झगड़े सुलझाते हैं.

पढ़ें: शीतलाष्टमी पर शीतला माता के दरबार में उमड़ा भक्तों का सैलाब, माता को ठंडे पकवानों का लगाया भोग...देखें तस्वीरें

शील डूंगरी में स्थित शीतला माता के इस मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित भी हैं. यह मंदिर 500 साल पुराना (500 year old Sheetla Mata Mandir in Chaksu) है. बारहदरी पर लगे शिलालेख में अंकित है कि जयपुर नरेश माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह एवं गोपाल सिंह के चेचक हुई थी. शीतला माता की कृपा से ठीक हो गई. इसके बाद राजा माधोसिंह ने शील की डूंगरी पर मंदिर एवं बारहदरी का निर्माण कराया. यहां बनी बारहदरी भवन पर लगे शिलालेख में माता के गुणगान का उल्लेख मिलता है. पहाड़ी पर माता का मंदिर है जिसमें मां शीतलामाता की मूर्ति विराजमान है.

होली से 8 दिन बाद भरता है मेलाः चाकसू शील डूंगरी मन्दिर में होली से ठीक 8 दिन बाद शीतलाष्टमी का दो दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला भरता है. मन्दिर ट्रस्ट एवं नगर पालिका चाकसू प्रशासन इस मेले की व्यवस्थाएं संभालते हैं. मेले में पहली रात्रि से ही विभिन्न प्रकार के खेलकूद, मनोरंजन के विविध कार्यक्रम आयोजित होते हैं. साथ ही एक पशु मेला भी लगता है. जयपुर आसपास के अलावा बाहरी राज्यों से भी श्रद्धालु मेले में माता के दर्शनों के लिए आते हैं. इस मेले में सभी धर्म वर्ग के लोग माता के दरबार पहुंचते हैं. यहां मेले के अवसर पर विभिन्न समाजों की गोठियां भी चलती हैं, जिसमें उनके लड़के-लड़कियों के शादी विवाह के रिश्ते भी तय होते हैं.

Last Updated : Mar 24, 2022, 11:52 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.