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संकष्टी चतुर्थी आज, भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में खुशियों का होता संचार

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Published : Feb 9, 2023, 8:28 AM IST

हर महीने में पूर्णिमा और अमावस्या के बाद चतुर्थी आती है जिसे विनायक चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से जाना जाता है.

sankashti chaturthi today
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बीकानेर. फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष को होने वाली संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है और इस दिन भगवान गणेश के छठवें स्वरूप की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने और व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियों का अंत हो जाता है. विघ्नगर्ता गणेश की भक्त पर विशेष कृपा होती है, उसे सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

सुकर्म योग में चतुर्थी- पंचांग के मुताबिक चतुर्थी के दिन सुबह सुकर्मा योग लग रहा है और यह शाम 4 बजकर 45 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. ज्योतिष में सुकर्मा योग में पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है. चंद्रमा रात 09:18 बजे उदय होगा.

ऐसे करें पूजा- द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत पर भगवान गणपति की पूजा करते समय भगवान गणेश की मूर्ति को उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें. ध्यान रहे भगवान गणेश की प्रतिमा खंडित या फिर फटी गली हुई न हो. वहीं मंदिर में भगवान गणेश की दो मूर्तियों का एक साथ पूजन न करें और न ही मंदिर में एक साथ दो मूर्तियां रखें. भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना के दौरान लाल रंग के ही कपड़े पहने.

पढ़ें- Aaj ka Rashifal: एक क्लिक में पढ़िए सभी 12 राशियों का राशिफल

इन बातों का रखें ध्यान- द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर तामसिक भोजन का सेवन न करें. किसी भी तरह के नशे से दूर रहे साथ ही सात्विकता बनाए रखें. मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति, अमावस्या, चतुर्दशी, पूर्णिमा और एकादशी तिथि के दिन ब्रह्मचर्य का पालना करना चाहिए. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर विशेष तौर पर ख्याल रखें कि किसी से गलत वाणी का प्रयोग न करें. न ही किसी पर गुस्सा करें. अपशब्द का प्रयोग करने से भी पूर्णता बचें.

यह है कथा- कथाओं के मुताबिक़ एक बार माता पार्वती ने क्रोधवश किसी बालक को श्राप दिया और उसके बाद उस बालक ने उस श्राप मुक्ति का उपाय पूछा तो देवी पार्वती ने बालक को श्राप से मुक्ति का उपाय बताते हुए कहा कि फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के द्विजप्रिय रूप की विधि विधान से उपासना करने से फल मिलेगा. बालक ने ऐसा ही किया और गौरी पुत्र गणेश बालक की सच्ची श्रद्धा देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उसे श्राप मुक्त होने का वरदान दिया.

बीकानेर. फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष को होने वाली संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है और इस दिन भगवान गणेश के छठवें स्वरूप की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने और व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियों का अंत हो जाता है. विघ्नगर्ता गणेश की भक्त पर विशेष कृपा होती है, उसे सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

सुकर्म योग में चतुर्थी- पंचांग के मुताबिक चतुर्थी के दिन सुबह सुकर्मा योग लग रहा है और यह शाम 4 बजकर 45 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. ज्योतिष में सुकर्मा योग में पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है. चंद्रमा रात 09:18 बजे उदय होगा.

ऐसे करें पूजा- द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत पर भगवान गणपति की पूजा करते समय भगवान गणेश की मूर्ति को उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें. ध्यान रहे भगवान गणेश की प्रतिमा खंडित या फिर फटी गली हुई न हो. वहीं मंदिर में भगवान गणेश की दो मूर्तियों का एक साथ पूजन न करें और न ही मंदिर में एक साथ दो मूर्तियां रखें. भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना के दौरान लाल रंग के ही कपड़े पहने.

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इन बातों का रखें ध्यान- द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर तामसिक भोजन का सेवन न करें. किसी भी तरह के नशे से दूर रहे साथ ही सात्विकता बनाए रखें. मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति, अमावस्या, चतुर्दशी, पूर्णिमा और एकादशी तिथि के दिन ब्रह्मचर्य का पालना करना चाहिए. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर विशेष तौर पर ख्याल रखें कि किसी से गलत वाणी का प्रयोग न करें. न ही किसी पर गुस्सा करें. अपशब्द का प्रयोग करने से भी पूर्णता बचें.

यह है कथा- कथाओं के मुताबिक़ एक बार माता पार्वती ने क्रोधवश किसी बालक को श्राप दिया और उसके बाद उस बालक ने उस श्राप मुक्ति का उपाय पूछा तो देवी पार्वती ने बालक को श्राप से मुक्ति का उपाय बताते हुए कहा कि फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के द्विजप्रिय रूप की विधि विधान से उपासना करने से फल मिलेगा. बालक ने ऐसा ही किया और गौरी पुत्र गणेश बालक की सच्ची श्रद्धा देखकर बेहद प्रसन्न हुए और उसे श्राप मुक्त होने का वरदान दिया.

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