ETV Bharat / state

तीन प्रभारी बदलकर भी नहीं थम रही कांग्रेस में रार, आलाकमान के सामने गहलोत-पायलट की तकरार जारी

राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की लगातार हो रही अनदेखी से राजस्थान कांग्रेस की राजनीति गरमा गई है. पायलट की नाराजगी का पटाक्षेप क्या होगा, ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा लेकिन प्रदेश कांग्रेस में ऑल इज नॉट वेल दिख रहा है.

सीएम अशोक गहलोत, रंधावा और सचिन पायलट
सीएम अशोक गहलोत, रंधावा और सचिन पायलट
author img

By

Published : Apr 10, 2023, 3:36 PM IST

Updated : Apr 10, 2023, 3:58 PM IST

जयपुर. पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के अनशन के ऐलान के बाद एक बार फिर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में सियासत गरमाने लगी है. आलाकमान की लाख हिदायतों के बाद भी एक बार फिर से बयानबाजी तेज होने लगी है. खुद पार्टी के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बातों का खंडन किया है. ऐसे में एक सवाल 5 साल के कार्यकाल के दौरान बदले गए प्रदेश प्रभारी को लेकर भी है.

जब पहली मर्तबा सचिन पायलट और अशोक गहलोत के मतभेद खुलकर बगावत के रूप में तब्दील हुए और सरकार को कई दिनों तक बाड़ेबंदी में रहना पड़ा. तब माना गया कि मौजूदा प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे पूरी तरह से संगठन को कंट्रोल करने में विफल रहे, जिसका खामियाजा पार्टी की साख को काफी नुकसान हुआ था. इसके बाद अजय माकन को राजस्थान में डैमेज कंट्रोल के लिए लाया गया. दिल्ली दरबार से बयानबाजी का दौर भी हुआ और नतीजा सब ने देखा कि माकन की विदाई किस तरह से हुई.

प्रदेश प्रभारी रंधावा भी राजस्थान में आने के साथ ही डैमेज कंट्रोल पर काबू पाने के लिए पंजाब के फार्मूले की बात करने लगे. लेकिन जाहिर है कि अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के प्रभारी रहे हरीश चौधरी के बीच के तकरार कैसे वक्त-वक्त पर जग जाहिर होती रही थी और उसका नतीजा क्या हुआ था. अब प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की शिकायतों को लेकर अनभिज्ञता जाहिर कर रहे हैं, तो ऐसे में सवाल उठने लगे हैं. चुनावी साल में संगठन की एकजुटता का आलम यह है कि राजधानी जयपुर में सिविल लाइंस फाटक पर राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने के विरोध में आयोजित जलसे में खुद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को कहना पड़ा कि उन्हें शर्म आती है. सत्ताधारी पार्टी को विरोध-प्रदर्शन में क्रम संख्या का मुद्दा सियासी हलकों में तब बड़ी चर्चा का मुद्दा बना था.

पढ़ें : पायलट की रणनीति में बदलाव, नहीं शामिल होगा कोई भी पायलट समर्थक विधायक, 11 अप्रैल को अनशन में अकेले दिखाएंगे दम

आलाकमान के रुख पर फिर हुई तकरार : सचिन पायलट की मौजूदा नाराजगी के पीछे चुनावी साल में प्रदेश की राजनीति के हासिये में पायलट को रखा जाना एक बड़ी वजह बताया जा रहा है. पहले एआईसीसी के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो गेम में गहलोत को कैरेक्टर बनाकर राजस्थान की योजनाओं के प्रचार-प्रसार के जरिए चुनावी साल में दाखिल होने के इरादे ने पायलट की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए थे. इसके बाद राइट टू हेल्थ बिल पर जब दिल्ली में पवन खेड़ा की मौजूदगी में प्रदेश के चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, तब भी कहा गया कि अशोक गहलोत सरकार की योजनाएं बेहतर काम कर रही है.

इन्हीं के दम पर आने वाले चुनाव में कांग्रेस जनता के बीच जाएगी. इससे स्पष्ट हो गया कि पायलट की नाराजगी को आलाकमान की नजर में फिलहाल कितनी तवज्जो मिल रही है. इस बीच राहुल गांधी को लोकसभा से बाहर किया जाना और कांग्रेस के विरोध-प्रदर्शन की कड़ी के बीच देशभर में पार्टी के बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, लेकिन सचिन पायलट इस कार्यक्रम में कहीं भी जगह नहीं बना पाए. यह मौजूदा तस्वीर जाहिर कर रही है कि गहलोत की हैसियत फिलहाल कांग्रेस आलाकमान की नजर में सचिन पायलट से भी ऊपर हो सकती है.

इससे पहले राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के कारवां में राजस्थान को शामिल किया था. गहलोत, पायलट और डोटासरा राहुल गांधी के साथ कदमताल करते हुए दिखे थे. हालांकि, आलाकमान ने तब यह मैसेज देने की कोशिश की थी कि राजस्थान में ऑल इज वेल की तर्ज पर अब कांग्रेस आगे बढ़ेगी, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो सका. मालाखेड़ा की सभा में राहुल गांधी के भाषण में गहलोत सिरमौर नजर आए. इस दौरान सचिन पायलट को लेकर राहुल गांधी का रुख खास नहीं था. ये तमाम मसले सचिन पायलट की सब्र को तोड़कर अनशन में तब्दील कर रहे हैं. मंगलवार को जब पायलट का अनशन शुरू होगा तब यह सवाल जरूर उठेगा की उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद दिल्ली में जयराम रमेश की ओर से जारी किए गए बयान में सचिन पायलट के तत्काल जारी किये बयान पर भी गहलोत को ऊपर कैसे रखा गया.

जयपुर. पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के अनशन के ऐलान के बाद एक बार फिर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में सियासत गरमाने लगी है. आलाकमान की लाख हिदायतों के बाद भी एक बार फिर से बयानबाजी तेज होने लगी है. खुद पार्टी के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बातों का खंडन किया है. ऐसे में एक सवाल 5 साल के कार्यकाल के दौरान बदले गए प्रदेश प्रभारी को लेकर भी है.

जब पहली मर्तबा सचिन पायलट और अशोक गहलोत के मतभेद खुलकर बगावत के रूप में तब्दील हुए और सरकार को कई दिनों तक बाड़ेबंदी में रहना पड़ा. तब माना गया कि मौजूदा प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे पूरी तरह से संगठन को कंट्रोल करने में विफल रहे, जिसका खामियाजा पार्टी की साख को काफी नुकसान हुआ था. इसके बाद अजय माकन को राजस्थान में डैमेज कंट्रोल के लिए लाया गया. दिल्ली दरबार से बयानबाजी का दौर भी हुआ और नतीजा सब ने देखा कि माकन की विदाई किस तरह से हुई.

प्रदेश प्रभारी रंधावा भी राजस्थान में आने के साथ ही डैमेज कंट्रोल पर काबू पाने के लिए पंजाब के फार्मूले की बात करने लगे. लेकिन जाहिर है कि अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के प्रभारी रहे हरीश चौधरी के बीच के तकरार कैसे वक्त-वक्त पर जग जाहिर होती रही थी और उसका नतीजा क्या हुआ था. अब प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की शिकायतों को लेकर अनभिज्ञता जाहिर कर रहे हैं, तो ऐसे में सवाल उठने लगे हैं. चुनावी साल में संगठन की एकजुटता का आलम यह है कि राजधानी जयपुर में सिविल लाइंस फाटक पर राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने के विरोध में आयोजित जलसे में खुद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को कहना पड़ा कि उन्हें शर्म आती है. सत्ताधारी पार्टी को विरोध-प्रदर्शन में क्रम संख्या का मुद्दा सियासी हलकों में तब बड़ी चर्चा का मुद्दा बना था.

पढ़ें : पायलट की रणनीति में बदलाव, नहीं शामिल होगा कोई भी पायलट समर्थक विधायक, 11 अप्रैल को अनशन में अकेले दिखाएंगे दम

आलाकमान के रुख पर फिर हुई तकरार : सचिन पायलट की मौजूदा नाराजगी के पीछे चुनावी साल में प्रदेश की राजनीति के हासिये में पायलट को रखा जाना एक बड़ी वजह बताया जा रहा है. पहले एआईसीसी के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो गेम में गहलोत को कैरेक्टर बनाकर राजस्थान की योजनाओं के प्रचार-प्रसार के जरिए चुनावी साल में दाखिल होने के इरादे ने पायलट की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए थे. इसके बाद राइट टू हेल्थ बिल पर जब दिल्ली में पवन खेड़ा की मौजूदगी में प्रदेश के चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, तब भी कहा गया कि अशोक गहलोत सरकार की योजनाएं बेहतर काम कर रही है.

इन्हीं के दम पर आने वाले चुनाव में कांग्रेस जनता के बीच जाएगी. इससे स्पष्ट हो गया कि पायलट की नाराजगी को आलाकमान की नजर में फिलहाल कितनी तवज्जो मिल रही है. इस बीच राहुल गांधी को लोकसभा से बाहर किया जाना और कांग्रेस के विरोध-प्रदर्शन की कड़ी के बीच देशभर में पार्टी के बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, लेकिन सचिन पायलट इस कार्यक्रम में कहीं भी जगह नहीं बना पाए. यह मौजूदा तस्वीर जाहिर कर रही है कि गहलोत की हैसियत फिलहाल कांग्रेस आलाकमान की नजर में सचिन पायलट से भी ऊपर हो सकती है.

इससे पहले राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के कारवां में राजस्थान को शामिल किया था. गहलोत, पायलट और डोटासरा राहुल गांधी के साथ कदमताल करते हुए दिखे थे. हालांकि, आलाकमान ने तब यह मैसेज देने की कोशिश की थी कि राजस्थान में ऑल इज वेल की तर्ज पर अब कांग्रेस आगे बढ़ेगी, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो सका. मालाखेड़ा की सभा में राहुल गांधी के भाषण में गहलोत सिरमौर नजर आए. इस दौरान सचिन पायलट को लेकर राहुल गांधी का रुख खास नहीं था. ये तमाम मसले सचिन पायलट की सब्र को तोड़कर अनशन में तब्दील कर रहे हैं. मंगलवार को जब पायलट का अनशन शुरू होगा तब यह सवाल जरूर उठेगा की उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद दिल्ली में जयराम रमेश की ओर से जारी किए गए बयान में सचिन पायलट के तत्काल जारी किये बयान पर भी गहलोत को ऊपर कैसे रखा गया.

Last Updated : Apr 10, 2023, 3:58 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.