जयपुर. इस विधानसभा सत्र में सरकार एक बार फिर राइट टू हेल्थ बिल लाने जा रही है ताकि लोगों को स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार मिल सके, लेकिन चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े विभिन्न चिकित्सक संगठन इसके विरोध में उतर आए हैं. रविवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और जयपुर मेडिकल एसोसिएशन की ओर से प्रदेशभर के निजी अस्पताल सांकेतिक बंद पर रहे. प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम सोसाइटी की ओर से 23 जनवरी को जयपुर के निजी अस्पतालों को बंद रखने का निर्णय लिया गया है. इस बिल के विरोध में रविवार को एक बार फिर चिकित्सकों ने स्टैचू सर्किल पर प्रदर्शन किया.
इसलिए हो रहा बिल का विरोध: आईएमए के निजी चिकित्सकों का कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान हैं जो वास्तविक रूप में व्यवहारिक नहीं हैं. इस बिल में न इमरजेंसी की कोई परिभाषा है और न ही विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई है.
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राइट टू हेल्थ बिल में आपातकाल में यानी इमरजेंसी के दौरान निजी अस्तालों को निशुल्क इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है. मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी उसे इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता. निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है. हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर निशुल्क इलाज लेगा तो अस्पताल वाले अपना खर्च कैसे उठाएंगे.
- राइट टू हेल्थ बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतलों के महंगे इलाज और मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राधिकरण का गठन प्रस्तावित है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए ताकि वे अस्पताल की परिस्थितियों को समझते हुए तकनीकी इलाज की प्रक्रिया को समझ सकें. अगर विषय विशेषज्ञ नहीं होंगे तो प्राधिकरण में पदस्थ सदस्य निजी अस्पतालों को ब्लैकमेल करेंगे. इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा.
- राइट टू हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि अगर मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसे इलाज के लिए किसी अन्य अस्पताल में रेफर करना है तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है. इस नियम पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्च कौन वहन करेगा. अगर सरकार भुगतान करेगी तो इसके लिए क्या प्रावधान है, यह स्पष्ट किया जाए.
- राइट टू हेल्थ बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के तहत सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है. सरकार अपनी योजना को सरकारी अस्पतालों के जरिए लागू कर सकती है. इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है. योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं हैं. ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे. इससे या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा.
- दुर्घटनाओं में घायल मरीज, ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक से ग्रसित मरीजों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है. ये मामले भी इमरजेंसी इलाज की श्रेणी में आते हैं. ऐसे में निजी अस्पताल इन मरीजों का इलाज कैसे कर सकेंगे. इसके लिए सरकार को अलग से स्पष्ट नियम बनाने चाहिए.
- दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाए जाने वालों को 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है. दूसरी तरफ अस्पताल वालों को पूरा इलाज निशुल्क करना होगा. ऐसा कैसे संभव होगा.
- अस्पताल खोलने से पहले 48 तरह की एनओसी लेनी पड़ती है. इसके साथ ही हर साल रिन्यूअल फीस, स्टाफ की तनख्वाह और अस्पताल के रखरखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है. अगर सभी मरीजों का पूरा इलाज मुफ्त में करना होगा तो अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा. ऐसे में राइट टू हेल्थ बिल को जबरन लागू किया तो निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे.