जयपुर. साल 2022 अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है. तीन दिन के बाद साल और कैलेंडर दोनों बदल जाएंगे. लेकिन जाते हुए साल को पीछे मुड़कर देखें तो राजनीतिक रूप से केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा के लिए भी उथल-पुथल वाला रहा है. यह साल भाजपा के लिए भी (Tussle between Poonia and Vasundhara) सियासी सरगर्मियों वाला रहा है. बाहरी रूप से एकजुटता जुटता का दावा करने वाली प्रदेश भाजपा में गुटबाजी खत्म नहीं हो पाई है. प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के वर्चस्व ने पार्टी के कार्यकर्ता को असमंजस में डाल रखा है. दोनों की अदावत के बीच पार्टी प्रदेश में सत्ता पक्ष के खिलाफ जन आक्रोश यात्रा को छोड़ दें तो कोई बड़ा मूवमेंट खड़ा नहीं कर पाई .
पूनिया व राजे खेमे में अदावतः बीजेपी में केंद्रीय नेतृत्व मजबूत है. लिहाजा प्रदेश बीजेपी की अदावत खुल कर तो सामने नहीं आई, लेकिन अंदर खाने मजबूती से चलती रहती है. वर्ष 2022 में कई बार ऐसे मौके आए जब पार्टी की गुटबाजी दिखी. फिर वो यात्रा निकालने को लेकर हो या फिर उप चुनाव. इस गुटबाजी के बीच पार्टी को नुकसान भी उठाना पड़ा है . अब 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगर यह गुटबाजी रही तो पार्टी को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हों या प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, दोनों नेताओं और उनके समर्थकों के बीच अदावत जारी है . कई मौके ऐसे भी आए जब दोनों तरफ से बयानबाजी करने से भी नेता नहीं चूके.
प्रदेश संगठन ने किया वसुंधरा को दरकिनारः बीजेपी की गुटबाजी को लेकर बात इस लिए की जाती है क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कम ही ऐसे मोके है जब एक साथ मंच साझा किया हो. सवाल उस समय भी उठे जब कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे को लेकर प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन देने एक प्रतिनिधिमंडल पहुंचा था. जयपुर में होने के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बुलावा नहीं भेजा गया . जबकि विधानसभा अध्यक्ष के बंगले के ठीक सामने वसुंधरा राजे का बंगला है और वो उस दिन वहीं मौजूद थी. राजे को नहीं बुलाने का मामले में दिल्ली तक शिकायत हुई. इसके बाद पहली बार कोर कमेटी की बैठक दिल्ली में हुई . इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हुए . शाह ने कार्यसमिति के सभी सदस्यों को सख्त हिदायत दी कि आपस में लड़ने की बजाए राजस्थान की गहलोत सरकार के खिलाफ एक साथ खड़े हों. उन्होंने सभी नेताओं को एक जाजम पर आने के भी निर्देश दिए . मगर उनकी यह हिदायत भी अभी तक रंग नहीं ला पाई है.
जन आक्रोश यात्रा से राजे की दूरीः वैसे तो बीजेपी ने इस एक साल में अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मूवमेंट खड़ा नहीं किया. लेकिन इस साल के अंत में सरकार के चार साल पूरे होने पर जन आक्रोश यात्रा और सभाओं के जरिए एक जन आंदोलन खड़ा करने की कोशिश हुई. लेकिन इसमें भी पार्टी का बिखराव खुल कर सामने आया. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जन आक्रोश यात्रा से पूरी तरह दूर हैं. जेपी नड्डा की सभा को छोड़ दें तो न वसुंधरा राजे इस जन आक्रोश में में जुड़ी और न उनके खेमे के नेता. वसुंधरा राजे की दूरी की चर्चाएं आम रही हैं, इसे भी पार्टी की गुटबाजी से जोड़कर देखा जा रहा है.
नड्डा की सभा में भीड़ तक नहीं जुटीः जन आक्रोश यात्रा की शुरुआत जयपुर के रामलीला मैदान से राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने की थी. इस दौरान सभा का आयोजन किया गया था. 10 हजार लोगों के शामिल होने का लक्ष्य रखा गया. मगर सभा में भीड़ नहीं जुट पाई. आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्र में हुई इस जनसभा में भीड़ नहीं जुटने को भी आपसी गुटबाजी का ही नतीजा माना जा रहा है. इस घटनाक्रम को पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने भी गंभीरता से लिए और प्रदेश संगठन से स्पष्टीकरण मांगा.
काली दुल्हन का बयान देकर फंसे पूनियाः मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 23 फरवरी को राजस्थान का बजट पेश किया था. बजट के बाद पूनिया ने कहा था कि बजट लीपापोती वाला है. ऐसा लग रहा है कि किसी काली दुल्हन को ब्यूटी पार्लर पर ले जाकर अच्छे से श्रृंगार कर पेश किया गया हो. इससे ज्यादा बजट में कुछ नहीं लगा. पूनिया के इस बयान पर सदन और सड़क तक बवाल मचा, जिसके बाद पूनिया ने बयान के लिए माफी मांगी.
उपचुनाव में भी गुटबाजी दिखीः प्रदेश में इस साल में हुए उपचुनाव में बीजेपी को गुटबाजी का सामना करना पड़ा. गुटबाजी के बीच पार्टी को हर का भी सामना करना पड़ा . सरदारशहर उप चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पूरी तरह से दूर रही . केवल वसुंधरा राजे ही नहीं बल्कि उनके खेमे के नेता भी चुनाव से दूर रहे. पार्टी की गुटबाजी का खामियाजा चुनाव परिणाम में सामने आया.
माथुर का बयान हुआ वायरलः साल के आखिर में जाते जाते पूर्व राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय नेता ओम माथुर का बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ . जिसमें उन्होंने पीएम मोदी को भी अपने निर्णय के अधीन माना. माथुर ने नागौर जिले के परबतसर में जन आक्रोश सभा में दावा किया कि जिस आदमी का टिकट वो फाइनल कर दें , उसका पीएम मोदी भी टिकट नहीं काट सकते हैं. माथुर ने राजस्थानी भाषा में कहा कि मैं जहां खूंटा गाड़ देता हूँ, उसके बाद उसे तो मोदी भी नहीं हिला सकते.
इस साल रहे दिग्गजों के दौरेः ये साल बीजेपी के केंद्रीय नेताओं का राजस्थान दौरे के लिहाज से भी महत्वपूर्ण रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानगढ़ धाम से आदिवासियों समुदाय में नहीं बल्कि आसपास के राज्यों में एक बड़ा मैसेज देकर गए. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का भाजपा में दबदबा किसी से छुपा नहीं है. अमित शाह का जयपुर आना और भाजपा प्रदेश मुख्यालय में प्रमुख नेताओं के साथ बैठक करना पार्टी के कार्यकर्ताओं में जान फूंक कर गया. इस साल जेपी नड्डा के दौरे सर्वाधिक चर्चाओं में रहे.