जयपुर. साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. भाजपा और कांग्रेस विधानसभा सीटवार रणनीति तैयार करने में जुट गए हैं. किस विधानसभा सीट से कौन मजबूत है और कौन बाजी मार सकता है?, ऐसे ही कई सवालों को टटोलते हुए राजनीतिक दल चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं. राजनीतिक दलों की ओर से तैयार की जा रही रणनीति के बीच आज हम आपको चूरू जिले की सादुलपुर विधानसभा सीट के बारे में बताएंगे.
इस बार के विधानसभा चुनाव को लेकर माना जा रहा है कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों वर्तमान प्रत्याशियों की टिकट काटेगी और इसके लिए दोनों ही पार्टियों की ओर से सर्वे भी करवाया जा रहा है. वहीं, सादुलपुर विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर कांग्रेस की स्टार खिलाड़ी कृष्णा पूनिया विधायक हैं.
पूर्व ओलंपियन और कॉमनवेल्थ में भारत को पदक दिलाने वाली कृष्णा पूनिया इस सीट से 2018 के विधानसभा चुनाव में जीती थी. अब वह खेलों के साथ ही राजनीति के खेल में भी पारंगत हो गई हैं, लेकिन सादुलपुर विधानसभा सीट को दोबारा जीतना कृष्णा पूनिया के लिए आसान नहीं है.
बसपा के साथ भाजपा-कांग्रेस से मिलेगी चुनौतीः राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की वीआईपी सीटों में शामिल सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र में कृष्णा पूनिया को एक बार फिर उनकी विधानसभा में मजबूत बसपा और भाजपा के मजबूत प्रत्याशी की चुनौती का सामना करना पड़ेगा. साथ ही उनके सामने स्थानीय मुद्दे और कांग्रेस पार्टी से ही दावेदारी जता रहे स्थानीय नेता के रूप में प्रताप पूनिया का भी सामना होगा. प्रताप पूनिया साल 2014 में चूरू लोकसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी भी रह चुके हैं और वर्तमान में भी चूरू से जिला अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं. ऐसे में कृष्णा पूनिया को इस विधानसभा चुनाव में पार्टी के अंदर और बाहर बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. सादुलपुर प्रदेश की त्रिकोणीय और मुश्किल सीटों में शामिल है.
1993 के बाद विधायक नहीं हुआ रिपीटः राजस्थान में सत्तासीन सीएम अशोक गहलोत आने वाले विधानसभा चुनाव में सरकार रिपीट होने का दावा कर रहे हैं. लेकिन सादुलपुर का सियासी मिजाज इससे कहीं जुदा है. इस सीट पर 1993 के बाद चाहे विधायक कांग्रेस पार्टी का हो या भाजपा का कोई भी रिपीट नहीं हुआ है. इतना ही नहीं सादुलपुर विधानसभा में 1993 के बाद एक बार विधायक बन चुके चेहरे को भी दोबारा विधायक नहीं बनाया यानी कि इस विधानसभा की तासीर है हर चुनाव में यहां की जनता नए चेहरे पर दांव लगाती है. कभी सादुलपुर विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी और इंदर सिंह पूनिया यहां से चुनाव जीतते रहे. एकमात्र इंदर सिंह पूनिया ही सादुलपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे जो 1985 से 1993 तक लगातार तीन बार विधायक बने. 1993 के बाद 24 साल तक लगातार सादुल शहर की जनता अपनी सीट के लिए पार्टी और विधायक बदल देती है. जिस प्रत्याशी को पार्टी अपना दावेदार दोबारा बनाती है उस प्रत्याशी को भी जीत नसीब नहीं होती.
इस बार यह है रणनीतिः 1990 से पूर्व सांसद रामसिंह कस्वा या उनका परिवार सादुल शहर विधानसभा से चुनाव लड़ रहा है. 1990 में रामसिंह कस्वां ने निर्दलीय चुनाव लड़ा, हालांकि वह चुनाव हार गए, लेकिन भाजपा ने उन्हें 1991 में चूरू लोकसभा से टिकट दे दिया और वह सांसद बन गए. यही कारण था कि सादुलपुर विधानसभा से 1993 में पहली बार भाजपा ने उनके परिवार को टिकट देना शुरू किया. कस्वा परिवार 1999 से चूरू लोकसभा सीट भाजपा झोली में डाल रहा है. तीन बार रामसिंह कस्वा और दो बार उनके बेटे राहुल कस्वा सांसद बने. यही कारण है कि कस्वा परिवार को सादुलपुर विधानसभा से लगातार टिकट मिल रहा है, लेकिन जीत 6 में से 2 चुनाव में मिली है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी या तो इस बार कस्वा परिवार से राहुल कस्वा को इस सीट से उतारकर चूरू लोकसभा की सीट पैरा ओलंपिक रहे देवेंद्र झाझरिया को लड़ा सकती. साथ ही देवेंद्र झाझरिया को कृष्णा पूनिया के सामने उतारा जा सकता है. हालांकि, देवेंद्र झाझरिया को लेकर अभी केवल कयास ही लगाए जा रहे हैं.
बीते 3 चुनाव से बसपा से दोनों पार्टियों का मुकाबलाः सादुलपुर राजस्थान की ऐसी विधानसभा सीटों में शुमार है जहां भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला होने की जगह दोनों पार्टियों का मुकाबला बहुजन समाज पार्टी से होता है. 2008 में बसपा के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे, 2013 में बसपा के मनोज न्यांगली विधायक बने और 2018 में जब कृष्णा पूनिया विधायक बनी तो भी दूसरे नंबर पर बसपा के प्रत्याशी मनोज न्यांगली ही रहे. ऐसे में इस विधानसभा सीट पर बसपा का असर जबरदस्त है और मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में न होकर कांग्रेसी और बसपा या भाजपा और बसपा में होता है.
यह है जातिगत समीकरणः सादुलपुर विधानसभा में कुल 240886 मतदाता हैं, जिनमे से 125306 पुरुष और 115580 महिलाएं हैं. इस सीट पर सबसे ज्यादा जाट मतदाता हैं, लेकिन जाट मतदाताओं में भी पूनिया मतदाता करीब 40,000 हैं. यही कारण है कि इस सीट पर ज्यादातर चुनाव पूनिया उम्मीदवार ने ही जीते हैं. वहीं दूसरे नंबर पर एससी वोटर हैं, जिनकी तादाद करीब 45 से 50 हजार है. यही कारण है कि बसपा का उम्मीदवार यहां से हमेशा टक्कर में रहता है. इसके अलावा सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र में वैश्य, गोस्वामी, खाती, नाई ,स्वामी और कालबेलिया भी हैं
सीट पर यह है समीकरणः इस सीट पर 2003 के बाद से जीत के लिए तरस रही कांग्रेस की मुराद को कृष्णा पूनिया ने पूरा किया था. कृष्णा पूनिया ही चूरू जिले में वह एकमात्र विधायक हैं जो अपनी स्टार इमेज के चलते किसी दूसरी सीट पर भी चुनाव लड़ सकती हैं. वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी चाहते हैं कि नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ जो लगातार चूरू विधानसभा से चुनाव जीत रहे हैं, उनके सामने मजबूत उम्मीदवार उतारा जाए. ऐसे में कृष्णा पूनिया को राजेंद्र राठौड़ के सामने चूरू से भी चुनाव के मैदान में उतारा जा सकता है, वैसे भी कृष्णा पूनिया के साथ उनकी विधानसभा सीट सादुलपुर में सीआई विष्णु दत्त विश्नोई की सुसाइड का मामला और अन्य स्थानीय विवाद जुड़े हैं. ऐसे में अगर कृष्णा की सीट कांग्रेस बदल देती है तो इससे कांग्रेस के साथ ही कृष्णा को भी फायदा हो सकता है.