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Rajasthan Tickets Distribution Row: मंत्रियों का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब, फीडबैक होगा टिकट वितरण का आधार

राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ गई हैं. भले ही साल के अंत में सत्ता का संग्राम हो लेकिन पार्टियां अपनी तैयारियों में जुटी हुई है. इस सबके बीच मंत्रियों के खराब ट्रैक रिकॉर्ड की भी चर्चा जोरों पर है (Congress Tickets Distribution Row).

Rajasthan Tickets Distribution Row
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Published : Jan 17, 2023, 11:13 AM IST

Updated : Jan 17, 2023, 11:40 AM IST

फीडबैक होगा टिकट वितरण का आधार

जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज आपने तमाम मंत्रियों के साथ चिंतन शिविर में हैं. मंत्रिगण यहां अपने विभागों का लेखा जोखा पेश कर रहे हैं. प्रेजेंटेशन के आधार पर परफॉर्मेंस को लेकर विभिन्न तरीकों से फीडबैक लिया जाएगा. काम का रिपोर्ट कार्ड तैयार होगा. बताया जा रहा है कि सीएम खुद इसको जांचेंगे परखेंगे और यही आधार बनेगा माननीयों के टिकट पाने का.

मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड इसलिए भी तैयार होगा क्योंकि गहलोत पर आरोप लगता रहा है कि वो मुख्यमंत्री तो बन जाते हैं, 5 साल राज भी करते हैं. दावा किया जाता है कि जनता का खास ख्याल भी रखा जा रहा है और जनहितकारी फैसले लिए जा रहे हैं. सब कुछ परफेक्ट चलता है लेकिन जब चुनाव होते हैं तो सरकार रिपीट नहीं हो पाती. सरकार के ज्यादातर मंत्री ही चुनाव हार जाते हैं. यानी कि anti-incumbency की शुरुआत मंत्रियों से ही होती है. सवाल फिर यही उठता है कि ये फैसले लागू कराने वाले उनके मंत्री ही चुनाव क्यों हार जाते है? कवायद इससे ही पार पाने की है.

सूत्रों की मानें तो प्रेजेंटेशन में अगर कोई मंत्री कमजोर नजर आएगा तो फिर आने वाले दिनों में उसकी छुट्टी तय होगी और चेहरा बदल दिया जाएगा. इतना ही नहीं इस कमजोर कड़ी का टिकट भी कट जाएगा. जयपुर चिंतन शिविर में विधानसभा में रखे जाने वाले बिलों को लेकर Proposal भी पास होगा. शिक्षा, स्वास्थ्य, यूडीएच ,पर्यटन और ग्रामीण पंचायती राज विभाग के प्रस्ताव भी इसमें शामिल होंगे.

ये खराब ट्रैक रिकॉर्ड कुछ कहता है- राजस्थान में भले ही सरकार भाजपा की रही हो या कांग्रेस की लेकिन मंत्रियों के हारने का सिलसिला दोनों ही पार्टियों में जारी रहता है, लेकिन इस खराब ट्रैक रिकॉर्ड में भी कांग्रेस के मंत्री भाजपा से कहीं आगे हैं. 1998 के बाद से बात करें तो हालात यह है कि कांग्रेस के तो 90% मंत्री चुनाव हार जाते हैं और 10% ही मुश्किल से जीत दर्ज कर विधायक बन पाते है. 2013 में तो जीतने वाले मन्त्रियों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम रह गई थी. 1998 में जब गहलोत सरकार बनी तो गहलोत ने 31 मंत्री बनाए और जब 2003 में गहलोत विधानसभा चुनावों में उतरे तो 31 में से केवल 4 मंत्री दोबारा विधानसभा में विधायक बनकर पहुंचे.

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कांग्रेस जीती भाजपा हारी पर मंत्रियों का रिकॉर्ड खराब
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2003- कांग्रेस के मंत्री जो हारे
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जीती भाजपा
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भाजपा के हारे 14

साल 2008 में जब दूसरी बार गहलोत मुख्यमंत्री बने तो गहलोत ने 25 मंत्री बनाए उनमें से केवल 2 मंत्री ही विधानसभा पहुंच सके. उनमें से भी एक बसपा के टिकट पर जीतकर आने वाले राजकुमार शर्मा थे. हालांकि भाजपा के मंत्रियों का भी कोई खास रिकॉर्ड नहीं रहा और 2003 में वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री बनकर जो 33 मंत्री बनाए थे, उनमें से 11 और 2013 में बनाए गए 29 मंत्रियों में से केवल 7 मंत्री विधानसभा में विधायक के तौर पर वापसी कर सकें ,लेकिन भाजपा का रिकॉर्ड कांग्रेस से काफी बेहतर रहा है. वो इसलिए भी क्योंकि भाजपा सीटिंग मंत्रियों के टिकट काटने से भी नहीं कतराती (Congress Tickets Distribution Row).

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भाजपा की बम्पर जीत, हारे कई मंत्री
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भाजपा की बम्पर जीत, हारे कई मंत्री
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2013 में कांग्रेस के मंत्रियों का प्रदर्शन

अब सर्वे का सहारा- चाहें राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा हो या फिर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दोनों ही नेता चुनाव में जीतने वाले चेहरों को ही टिकट देने का दावा करते नजर आ रहे हैं. रंधावा ने तो साफ कर दिया है कि कांग्रेस आलाकमान जो सर्वे करवाएगा और उस सर्वे में जो नेता जीत रहा होगा कांग्रेस उसी को टिकट देगी. मतलब साफ है कि कांग्रेस पार्टी टिकट देने के लिए सर्वे करवाएगी इसमें चाहे कोई कितना ही बड़ा मंत्री क्यों न हो अगर उसका नाम सर्वे में नहीं आया तो उसका टिकट कट सकता है. यही बात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा भी कह चुके हैं कि इस बार टिकट केवल जिताऊ उम्मीदवारों को ही दिए जाएंगे.

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भाजपा में मंत्रियों का ट्रैक रिकॉर्ड

पढ़ें- Pilot in Nagaur : पायलट का केंद्र पर आरोप, कहा- गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ करती है पक्षपातपूर्ण व्यवहार

क्या बदलेगी परम्परा!- राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदलती है. एक तरह से ये परम्परा बन गई है. पिछला रिकॉर्ड तो यही कहता है. चाहें 1998 की बात हो जब कांग्रेस की सरकार बनी तो 153 सीटें आईं लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 56 पर सिमट गई. 2008 में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो कांग्रेस की 96 सीट आई लेकिन 2013 में कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई. अब इस बार फिर राजस्थान में गहलोत सरकार है. शुरुआत में 99 सीटों पर आने वाली कांग्रेस उपचुनावों और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के बल पर 108 पर पहुंच गई. अब विधानसभा चुनाव में 1 साल से भी कम का समय बचा है. ऐसे में गहलोत उन मंत्रियों का फीडबैक ले रहे हैं जिन पर हमेशा एंटी इनकंबेंसी फैलाने और दोबारा जीतकर नहीं आने के आरोप लगते रहे हैं.

फीडबैक होगा टिकट वितरण का आधार

जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज आपने तमाम मंत्रियों के साथ चिंतन शिविर में हैं. मंत्रिगण यहां अपने विभागों का लेखा जोखा पेश कर रहे हैं. प्रेजेंटेशन के आधार पर परफॉर्मेंस को लेकर विभिन्न तरीकों से फीडबैक लिया जाएगा. काम का रिपोर्ट कार्ड तैयार होगा. बताया जा रहा है कि सीएम खुद इसको जांचेंगे परखेंगे और यही आधार बनेगा माननीयों के टिकट पाने का.

मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड इसलिए भी तैयार होगा क्योंकि गहलोत पर आरोप लगता रहा है कि वो मुख्यमंत्री तो बन जाते हैं, 5 साल राज भी करते हैं. दावा किया जाता है कि जनता का खास ख्याल भी रखा जा रहा है और जनहितकारी फैसले लिए जा रहे हैं. सब कुछ परफेक्ट चलता है लेकिन जब चुनाव होते हैं तो सरकार रिपीट नहीं हो पाती. सरकार के ज्यादातर मंत्री ही चुनाव हार जाते हैं. यानी कि anti-incumbency की शुरुआत मंत्रियों से ही होती है. सवाल फिर यही उठता है कि ये फैसले लागू कराने वाले उनके मंत्री ही चुनाव क्यों हार जाते है? कवायद इससे ही पार पाने की है.

सूत्रों की मानें तो प्रेजेंटेशन में अगर कोई मंत्री कमजोर नजर आएगा तो फिर आने वाले दिनों में उसकी छुट्टी तय होगी और चेहरा बदल दिया जाएगा. इतना ही नहीं इस कमजोर कड़ी का टिकट भी कट जाएगा. जयपुर चिंतन शिविर में विधानसभा में रखे जाने वाले बिलों को लेकर Proposal भी पास होगा. शिक्षा, स्वास्थ्य, यूडीएच ,पर्यटन और ग्रामीण पंचायती राज विभाग के प्रस्ताव भी इसमें शामिल होंगे.

ये खराब ट्रैक रिकॉर्ड कुछ कहता है- राजस्थान में भले ही सरकार भाजपा की रही हो या कांग्रेस की लेकिन मंत्रियों के हारने का सिलसिला दोनों ही पार्टियों में जारी रहता है, लेकिन इस खराब ट्रैक रिकॉर्ड में भी कांग्रेस के मंत्री भाजपा से कहीं आगे हैं. 1998 के बाद से बात करें तो हालात यह है कि कांग्रेस के तो 90% मंत्री चुनाव हार जाते हैं और 10% ही मुश्किल से जीत दर्ज कर विधायक बन पाते है. 2013 में तो जीतने वाले मन्त्रियों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम रह गई थी. 1998 में जब गहलोत सरकार बनी तो गहलोत ने 31 मंत्री बनाए और जब 2003 में गहलोत विधानसभा चुनावों में उतरे तो 31 में से केवल 4 मंत्री दोबारा विधानसभा में विधायक बनकर पहुंचे.

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कांग्रेस जीती भाजपा हारी पर मंत्रियों का रिकॉर्ड खराब
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2003- कांग्रेस के मंत्री जो हारे
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जीती भाजपा
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भाजपा के हारे 14

साल 2008 में जब दूसरी बार गहलोत मुख्यमंत्री बने तो गहलोत ने 25 मंत्री बनाए उनमें से केवल 2 मंत्री ही विधानसभा पहुंच सके. उनमें से भी एक बसपा के टिकट पर जीतकर आने वाले राजकुमार शर्मा थे. हालांकि भाजपा के मंत्रियों का भी कोई खास रिकॉर्ड नहीं रहा और 2003 में वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री बनकर जो 33 मंत्री बनाए थे, उनमें से 11 और 2013 में बनाए गए 29 मंत्रियों में से केवल 7 मंत्री विधानसभा में विधायक के तौर पर वापसी कर सकें ,लेकिन भाजपा का रिकॉर्ड कांग्रेस से काफी बेहतर रहा है. वो इसलिए भी क्योंकि भाजपा सीटिंग मंत्रियों के टिकट काटने से भी नहीं कतराती (Congress Tickets Distribution Row).

Rajasthan Tickets Distribution Row
भाजपा की बम्पर जीत, हारे कई मंत्री
Rajasthan Tickets Distribution Row
भाजपा की बम्पर जीत, हारे कई मंत्री
Rajasthan Tickets Distribution Row
2013 में कांग्रेस के मंत्रियों का प्रदर्शन

अब सर्वे का सहारा- चाहें राजस्थान के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा हो या फिर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दोनों ही नेता चुनाव में जीतने वाले चेहरों को ही टिकट देने का दावा करते नजर आ रहे हैं. रंधावा ने तो साफ कर दिया है कि कांग्रेस आलाकमान जो सर्वे करवाएगा और उस सर्वे में जो नेता जीत रहा होगा कांग्रेस उसी को टिकट देगी. मतलब साफ है कि कांग्रेस पार्टी टिकट देने के लिए सर्वे करवाएगी इसमें चाहे कोई कितना ही बड़ा मंत्री क्यों न हो अगर उसका नाम सर्वे में नहीं आया तो उसका टिकट कट सकता है. यही बात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा भी कह चुके हैं कि इस बार टिकट केवल जिताऊ उम्मीदवारों को ही दिए जाएंगे.

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भाजपा में मंत्रियों का ट्रैक रिकॉर्ड

पढ़ें- Pilot in Nagaur : पायलट का केंद्र पर आरोप, कहा- गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ करती है पक्षपातपूर्ण व्यवहार

क्या बदलेगी परम्परा!- राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदलती है. एक तरह से ये परम्परा बन गई है. पिछला रिकॉर्ड तो यही कहता है. चाहें 1998 की बात हो जब कांग्रेस की सरकार बनी तो 153 सीटें आईं लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 56 पर सिमट गई. 2008 में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो कांग्रेस की 96 सीट आई लेकिन 2013 में कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई. अब इस बार फिर राजस्थान में गहलोत सरकार है. शुरुआत में 99 सीटों पर आने वाली कांग्रेस उपचुनावों और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के बल पर 108 पर पहुंच गई. अब विधानसभा चुनाव में 1 साल से भी कम का समय बचा है. ऐसे में गहलोत उन मंत्रियों का फीडबैक ले रहे हैं जिन पर हमेशा एंटी इनकंबेंसी फैलाने और दोबारा जीतकर नहीं आने के आरोप लगते रहे हैं.

Last Updated : Jan 17, 2023, 11:40 AM IST
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