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Rajasthan High Court: यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को राहत, एकल पट्टा प्रकरण में एसीबी कोर्ट की कार्रवाई रद्द करने के आदेश

एकल पट्टा प्रकरण में राजस्थान हाईकोर्ट ने यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल (gives relief to UDH Minister Shanti Dhariwal) को बड़ी राहत दी है. अदालत ने एसीबी कोर्ट में चल रही प्रोटेस्ट पिटिशन सहित अन्य आपराधिक कार्रवाई को शांति धारीवाल की हद तक रद्द कर दिया है.

Rajasthan High Court gives relief,  gives relief to UDH Minister Shanti Dhariwal
यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को राहत.
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Published : Nov 15, 2022, 8:51 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एकल पट्टा प्रकरण में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को बडी राहत दी है. अदालत ने प्रकरण में एसीबी में दर्ज एफआईआर के आधार पर एसीबी कोर्ट में चल रही प्रोटेस्ट पिटिशन सहित अन्य आपराधिक कार्रवाई को शांति धारीवाल की हद (orders to cancel ACB court action) तक रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा कि प्रकरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है. ऐसे में यदि उनके खिलाफ कार्रवाई जारी रखी गई तो वह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. जस्टिस नरेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश शांति धारीवाल की आपराधिक याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम नहीं है. यूडीएच के प्रमुख सचिव ने एकल पट्टा की फाइल याचिकाकर्ता के समक्ष रखी थी. जिसे हाईकोर्ट के आदेश के तहत परीक्षण के बाद वापस विभाग में भेजा गया. वहीं जेडीए की ओर से गणपति कंस्ट्रक्शन कंपनी के पार्टनर शैलेन्द्र गर्ग को जारी एकल पट्टा को निरस्त कर दिया गया. मामले में रामशरण सिंह की शिकायत पर तत्कालीन जोन उपायुक्त ओंकार मल सैनी, निष्काम दिवाकर, यूडीए के पूर्व सचिव जीएस संधू और शैलेन्द्र गर्ग के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया गया.

पढ़ेंः एकल पट्टा प्रकरण में यूडीएच मंत्री धारीवाल सहित तीन अन्य की भूमिका नहीं- ACB

लेकिन याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई जांच लंबित नहीं रखी गई. वहीं एसीबी कोर्ट की ओर से तीन मार्च 2016 को लिए प्रसंज्ञान में एक शब्द भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं लिखा गया. इसके बाद एसीबी की ओर से पेश प्रगति रिपोर्ट में भी याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध प्रमाणित नहीं माना गया. एसीबी की ओर से सात जुलाई 2021 को पेश एफआर में भी याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ नहीं कहा गया. ऐसे में एसीबी कोर्ट ने प्रकरण की अग्रिम जांच के आदेश गलत दिए हैं. याचिका में कहा गया कि एसीबी क्रम-4 कोर्ट ने 13 जून 2019 और सात जुलाई 2021 की क्लोजर रिपोर्ट को निरस्त करते हुए कुछ बिन्दुओं पर अग्रिम जांच के आदेश दिए थे. याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं होने के चलते याचिकाकर्ता की हद तक कार्रवाई को रद्द किया जाए. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता तब भी यूडीएच मंत्री था, इसके बाद भी प्रकरण में अभियोजन स्वीकृति नहीं ली गई.

पढ़ेंः एकल पट्टा प्रकरण में परिवादी का यूटर्न, कार्रवाई आगे चलाने से इनकार

प्रकरण में यूडीएच विभाग ने एकल पट्टे के लिए एक अप्रैल 2011 को स्वीकृति दी थी. जिसके आधार पर जेडीए ने 29 जून 2011 को पट्टा जारी किया था, लेकिन पट्टे में रही त्रुटि के कारण 10 मई 2013 को पट्टा निरस्त कर दिया गया. इसके बावजूद डेढ़ साल बाद एसीबी में रिपोर्ट दर्ज कराई गई. इसके अलावा एफआईआर, प्रथम और पूरक चार्जशीट के साथ ही एसपी स्तर के अधिकारी की अग्रिम अनुसंधान रिपोर्ट में याचिकाकर्ता का नाम नहीं था. इसके बावजूद परिवादी ने गत तीन जनवरी को प्रोटेस्ट प्रार्थना पत्र पेश कर याचिकाकर्ता को आरोपी बनाने की प्रार्थना की. जिस पर सुनवाई करते हुए 18 अप्रैल 2022 को एसीबी कोर्ट ने कुछ बिन्दुओं पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से अग्रिम जांच के आदेश दे दिए. इसलिए प्रकरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को रद्द किया जाए. वहीं राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने याचिकाकर्ता का समर्थन करते हुए कहा कि जांच में याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध साबित नहीं था. एसीबी ने सह आरोपियों के खिलाफ अभियोजन वापस लेने का प्रार्थना पत्र भी पेश किया था, लेकिन एसीबी कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. जिसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एकल पट्टा प्रकरण में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को बडी राहत दी है. अदालत ने प्रकरण में एसीबी में दर्ज एफआईआर के आधार पर एसीबी कोर्ट में चल रही प्रोटेस्ट पिटिशन सहित अन्य आपराधिक कार्रवाई को शांति धारीवाल की हद (orders to cancel ACB court action) तक रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा कि प्रकरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है. ऐसे में यदि उनके खिलाफ कार्रवाई जारी रखी गई तो वह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. जस्टिस नरेन्द्र सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश शांति धारीवाल की आपराधिक याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम नहीं है. यूडीएच के प्रमुख सचिव ने एकल पट्टा की फाइल याचिकाकर्ता के समक्ष रखी थी. जिसे हाईकोर्ट के आदेश के तहत परीक्षण के बाद वापस विभाग में भेजा गया. वहीं जेडीए की ओर से गणपति कंस्ट्रक्शन कंपनी के पार्टनर शैलेन्द्र गर्ग को जारी एकल पट्टा को निरस्त कर दिया गया. मामले में रामशरण सिंह की शिकायत पर तत्कालीन जोन उपायुक्त ओंकार मल सैनी, निष्काम दिवाकर, यूडीए के पूर्व सचिव जीएस संधू और शैलेन्द्र गर्ग के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया गया.

पढ़ेंः एकल पट्टा प्रकरण में यूडीएच मंत्री धारीवाल सहित तीन अन्य की भूमिका नहीं- ACB

लेकिन याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई जांच लंबित नहीं रखी गई. वहीं एसीबी कोर्ट की ओर से तीन मार्च 2016 को लिए प्रसंज्ञान में एक शब्द भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं लिखा गया. इसके बाद एसीबी की ओर से पेश प्रगति रिपोर्ट में भी याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध प्रमाणित नहीं माना गया. एसीबी की ओर से सात जुलाई 2021 को पेश एफआर में भी याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ नहीं कहा गया. ऐसे में एसीबी कोर्ट ने प्रकरण की अग्रिम जांच के आदेश गलत दिए हैं. याचिका में कहा गया कि एसीबी क्रम-4 कोर्ट ने 13 जून 2019 और सात जुलाई 2021 की क्लोजर रिपोर्ट को निरस्त करते हुए कुछ बिन्दुओं पर अग्रिम जांच के आदेश दिए थे. याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं होने के चलते याचिकाकर्ता की हद तक कार्रवाई को रद्द किया जाए. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता तब भी यूडीएच मंत्री था, इसके बाद भी प्रकरण में अभियोजन स्वीकृति नहीं ली गई.

पढ़ेंः एकल पट्टा प्रकरण में परिवादी का यूटर्न, कार्रवाई आगे चलाने से इनकार

प्रकरण में यूडीएच विभाग ने एकल पट्टे के लिए एक अप्रैल 2011 को स्वीकृति दी थी. जिसके आधार पर जेडीए ने 29 जून 2011 को पट्टा जारी किया था, लेकिन पट्टे में रही त्रुटि के कारण 10 मई 2013 को पट्टा निरस्त कर दिया गया. इसके बावजूद डेढ़ साल बाद एसीबी में रिपोर्ट दर्ज कराई गई. इसके अलावा एफआईआर, प्रथम और पूरक चार्जशीट के साथ ही एसपी स्तर के अधिकारी की अग्रिम अनुसंधान रिपोर्ट में याचिकाकर्ता का नाम नहीं था. इसके बावजूद परिवादी ने गत तीन जनवरी को प्रोटेस्ट प्रार्थना पत्र पेश कर याचिकाकर्ता को आरोपी बनाने की प्रार्थना की. जिस पर सुनवाई करते हुए 18 अप्रैल 2022 को एसीबी कोर्ट ने कुछ बिन्दुओं पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से अग्रिम जांच के आदेश दे दिए. इसलिए प्रकरण में याचिकाकर्ता के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को रद्द किया जाए. वहीं राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने याचिकाकर्ता का समर्थन करते हुए कहा कि जांच में याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध साबित नहीं था. एसीबी ने सह आरोपियों के खिलाफ अभियोजन वापस लेने का प्रार्थना पत्र भी पेश किया था, लेकिन एसीबी कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. जिसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है.

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