जयपुर. निजी चिकित्सकों और विपक्ष के विरोध के बावजूद राजस्थान विधानसभा में जन स्वास्थ्य अधिकार विधेयक 2023 पास कर दिया गया. इस बिल के पास होने के साथ ही राजस्थान देश का अब पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने स्वास्थ्य के अधिकार को कानूनी अमलीजामा पहनाया है. हालांकि इस कानून का चिकित्सक विरोध कर रहे हैं, लेकिन इस बीच इस विधेयक को लाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने वाले जन स्वास्थ्य अभियान ने इसका स्वागत किया. कहा है कि प्रदेश और प्रदेशवासियों के लिए ये गर्व की बात है, लेकिन प्रभावी धाराएं होने के बावजूद ये कमजोर कानून है.
मजबूत धाराओं के बावजूद कमजोर बिल
जन स्वास्थ्य अभियान की प्रतिनिधि छाया पचौली ने कहा कि सदन में पारित स्वास्थ्य का अधिकार कानून का स्वागत है और इस अहम कदम को उठाने के लिए गहलोत सरकार को ढेरों बधाई, लेकिन हमें इस बात की निराशा भी है कि इस कानून में कई प्रभावी धाराएं होने के बावजूद यह एक मजबूत कानून की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें कुछ ऐसी कमियां हैं जो इसे कई मायनों में कमज़ोर बनाती हैं.
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22 सितंबर 2022 को विधानसभा में राज्य सरकार की ओर से स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक 2022 पेश किया गया था जिसे अगले ही दिन संक्षिप्त चर्चा के बाद प्रवर समिति को भेजने का निर्णय लिया गया था. इस विधेयक का निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता पुरज़ोर विरोध कर रहे थे, जिसके चलते विधेयक में कई संशोधन किये गए थे. इनमें से कुछ संशोधन अत्यंत चिंता का विषय हैं जो की इस कानून के तहत जवाबदेही और शिकायत निवारण प्रणाली को काफी हद तक ध्वस्त करते हैं.
इन बिंदुओं की वजह से कमजोर
कानून में राज्य और ज़िला स्तरीय प्राधिकरणों में केवल सरकारी अधिकारी और IMA के चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व है. अन्य कोई भी प्रतिनिधि जैसे जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, जन प्रतिनिधि, सिविल सोसाइटी की इन प्राधिकरणों में कोई सदस्यता नहीं रखी गयी है. इस प्रकार यह प्राधिकरण बेहद गैर समावेशी और अलोकतांत्रिक सरकारी ढांचे की तरह ही प्रतीत होते हैं. यह प्राधिकरण जिनकी रोगी शिकायत निवारण प्रक्रिया में अहम भूमिका है. ऐसे में वे किस प्रकार अपनी भूमिका निष्पक्ष तरीके से निभा पाएंगे ये एक बड़ा प्रश्न है.
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पूर्व में विधेयक में रोगी की ओर से किसी स्वास्थ्य सेवा केंद्र या चिकित्सालय से सम्बंधित शिकायत दर्ज करने के लिए वेब पोर्टल और हेल्पलाइन के प्रावधानों की बात की गई थी. वहीं अब इन दोनों प्रावधानों को हटा दिया गया है और अब केवल लिखित में शिकायत दर्ज कराने के प्रावधान की बात कही गई है. यह शिकायत रोगी की ओर से सम्बंधित चिकित्सालय के प्रभारी को दी जानी होगी. इसके चलते मरीज के लिए शिकायत दर्ज कराने के रास्तों को पूरी तरह सिमित कर दिया गया है और जिस तरह की प्रणाली की बात की गई है, उससे निश्चित ही कई मरीज शिकायत दर्ज करने में सहज नहीं होंगे.
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यह कानून सिर्फ राजस्थान के निवासियों पर लागू होगा. यह अत्यंत भेदभावपूर्ण है. इसके चलते राज्य की जनसंख्या का एक बड़ा ज़रूरतमंद तबका जिसमें कि प्रवासी मजदूर, शरणार्थी, घुमंतू, बेघर जनसंख्या है इस कानून के लाभ से वंचित रह जाएगी. यह कानून पूर्ण रूप से उन सभी रोगियों पर लागू होना चाहिए जो कि राजस्थान के किसी भी चिकित्सालय से उपचार लेते हों, भले ही वो राज्य के स्थाई या अस्थायी निवासी हों. इस महत्वपूर्ण कानून को किसी निश्चित जनसंख्या वर्ग तक सीमित कर देने से बड़ी जनसंख्या के स्वास्थ्य अधिकारों का हनन होगा और उनकी सुनवाई नहीं होगी.
ये दिए सुझाव
छाया पचौली ने कहा कि हमारी राज्य सरकार से मांग है कि उन बिन्दुओं पर वे विशेष ध्यान दें जो इस कानून को कमजोर कर रहे हैं. जहां तक संभव हो कानून में इन विसंगतियों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि कानून के नियम तैयार करने की प्रक्रिया सरकार जल्द से जल्द प्रारंभ करेगी और इस दौरान इन कमियों को दूर करने का पूर्ण प्रयास किया जाएगा. इस कानून के आने से सरकारी स्वास्थ्य तंत्र और मजबूत होगा जिससे आमजन और खासकर निर्धन और वंचित जनसंख्या वर्ग को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं बिना किसी आर्थिक भार के मिल सकेंगी. स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के भीतर अधिक पारदर्शिता आएगी और रोगी अधिकारों का संरंक्षण होगा.