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SPECIAL: लापोडिया का चौका सिस्टम बना वरदान, पानी सहेजने की इस तकनीक से 58 गांव बने आत्मनिर्भर - जयपुर का लापोडिया गांव

दूदू और मालपुरा तहसील के इन गांवों में जल क्रांति के लिए चौका सिस्टम कारगर साबित हो रहा है. जिसने बीते तीन दशक में इन गांव की सूरत को बदल कर रख दिया है.

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लापोडिया का चौका सिस्टम
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Published : Aug 31, 2020, 7:01 PM IST

जयपुर. जल क्रांति कह दिया जाए या फिर जल संस्कृति, राजधानी के दूदू तहसील का लापोडिया गांव इन दिनों पानी को लेकर सुर्खियों में है. करीब 40 साल की मेहनत के बाद सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह लापोडिया की मेहनत से करीब 58 गांव जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने हैं.

जल क्रांति लाया लापोडिया

जल यात्रा के दूसरे पड़ाव में ईटीवी भारत की टीम लापोडिया गांव पहुंची. आत्मनिर्भर गांव बनने के चौका सिस्टम को जानेंगे. यहां से हम आपको पानी सहेजने की पूरी प्रक्रिया को समझाएंगें.

जानिए कैसे काम करता है चौका सिस्टम

दूदू समेत टोंक जिले की मालपुरा तहसील में जल क्रांति पर लक्ष्मण सिंह लापोडिया दावा करते हैं कि 3 साल तक अकाल पड़ने की स्थिति में ये सभी गांव अन्न, चारा और जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने रहेंगे और उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी मदाद की जरूरत नहीं होगी. लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि वे सालाना जल यात्रा करते हुए लोगों को इकोसिस्टम बचाने के लिए जागरूक करते हैं. साथ में गांव-गांव पानी को सहेजने के लिए खुद की तरफ से तैयार किए गए चौका सिस्टम (जिसे स्थानीय भाषा में चोगा सिस्टम भी कहा जाता है) को लेकर लोगों को जागरूक करते हैं और पानी को व्यवस्थित रूप से इस्तेमाल करते हुए इसे जल प्रसाद समझने की सीख देते हैं.

चौके में होती है तरह-तरह की वनस्पतियां

पढ़ें- SPECIAL: जल क्रांति का वाहक बना 'लापोडिया', 50 से ज्यादा गांवों में दूर हुआ पानी का संकट

लक्ष्मण सिंह लापोडिया के प्रयासों से दूदू तहसील के गागरडू गांव से लेकर टोंक जिले की मालपुरा तहसील के ग्वालापुरा गांव तक जल क्रांति की अलख जगी हुई है. करीब 50 किलोमीटर की दूरी में पहले इन गांव में बांडी नदी में मिलने वाली एक बरसाती नाले के पानी का इस्तेमाल हो रहा है और गांव वाले इस पानी को सहेजते हुए ना सिर्फ अपने जल स्रोतों को रिचार्ज करते हैं, बल्कि गांव की भूमि के लिए आवश्यक पानी जुटा लेते हैं.

इसके बाद ईटीवी भारत की टीम मालपुरा के ग्वालापुरा गांव पहुंची, जहां पर लक्ष्मण सिंह की टीम में काम करने वाले हनुमान सिंह ने 2 साल पहले तैयार हुए चौका सिस्टम को ईटीवी भारत के साथ साझा किया और बताया कि किस तरह से गांव में जाकर वे लोग ग्राम विकास समितियों का गठन करते हैं और गांव के प्रमुख लोगों को साथ में लेकर श्रमदान के लिए प्रेरित करते हैं.

ऐसे काम करता है चौका सिस्टम...

गांव के कैचमेंट एरिया में वॉटर लेवल देखने के बाद चौका सिस्टम को तैयार किया जाता है. बड़े चौके के अंदर छोटी-छोटी चौकड़िया बनाई जाती है. जिनकी गहराई 1 फीट के आसपास होती है तो चौड़ाई 7 फीट और लंबाई 12 फीट के करीब होती है.

इन चौकड़ियों की मदद से चारागाह क्षेत्र में पशुओं के लिए जरूरी चारा उगाया जाता है. साथ ही राजस्थान की परंपरागत वनस्पतियां जैसे खेजड़ी, बबूल, पीपल और केर जैसे पेड़ भी उगाए जाते हैं. इस चौका सिस्टम की मदद से इन गांवों में पशुओं के लिए जरूरी 30 प्रकार की घास इन मैदानों में मिल जाती हैं. साथ ही छोटी चौकड़ियों के माध्यम से पानी को व्यर्थ बहने से रोका जाता है.

इस टीम का दावा है कि 1200 एमएम बरसात में भी इन गांवों में जल प्लावन की स्थिति नहीं होगी और पानी को वे लोग डायवर्ट करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाएंगे. ताकि भूमि भी रिचार्ज हो जाए खेतों को जरूरी पाने के लिए गांवों के तालाबों की पूर्ति हो जाए और साथ ही कम बारिश वाले क्षेत्र में पानी पहुंच जाए.

गांव के चारागाह क्षेत्र में बनाए जाने वाले चौका सिस्टम की चौकड़ियों में पानी को रोकने के लिए बंड (स्थानीय भाषा में मिट्टी की दीवार) का निर्माण किया जाता है. इस दीवार को बनाने के लिए कंक्रीट-सीमेंट की जगह चौकड़ियों से निकली मिट्टी को ही काम में लिया जाता है. ताकि वहां भी घास को उगाया जा सके. फिर पानी को व्यवस्थित रूप से दीवारों की ऊंचाई को तय करते हुए डायवर्ट किया जाता है. इस बंड का फायदा यह होता है कि पानी आबादी क्षेत्र और कृषि भूमि की जगह गांव के बाहर से होते हुए जल स्रोतों तक पहुंच जाता है. 50 किलोमीटर के 58 गांव और लगभग 60,000 बीघा कृषि भूमि इसी प्रकार लाभान्वित हो रही है.

पढ़ें- स्पेशल: 'वेस्ट को बेस्ट' बनाने का नायाब तरीका...बिना लागत तैयार कर दिए 2 हजार नीम के पौधे

लक्ष्मण सिंह ने बताया कि लापोडिया गांव में आज तीन बड़े तालाब हैं. जिन्हें अन्न सागर, फूल सागर और देव सागर कहा गया. अन्न सागर को कृषि भूमि की सिंचाई के लिए काम में लिया जाता है, तो फूल सागर को गांव के लोग पेयजल के रूप में इस्तेमाल करते हैं और देव सागर को गांव की भूमि को रिचार्ज करने के लिए उपयोग में लिया जाता है. इस प्रकार दूदू और मालपुरा तहसील के इन गांवों में जल क्रांति के लिए लक्ष्मण सिंह लापोडिया का चौका सिस्टम कारगर साबित हो रहा है. जिसने बीते तीन दशक में इन गांव की सूरत को बदल कर रख दिया है. बिना किसी तकनीकी उपकरणों के पानी सहेजकर, माकूल इस्तेमाल कर गांव को आत्मनिर्भर बनाना वाकई अद्भुत है.

जयपुर. जल क्रांति कह दिया जाए या फिर जल संस्कृति, राजधानी के दूदू तहसील का लापोडिया गांव इन दिनों पानी को लेकर सुर्खियों में है. करीब 40 साल की मेहनत के बाद सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह लापोडिया की मेहनत से करीब 58 गांव जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने हैं.

जल क्रांति लाया लापोडिया

जल यात्रा के दूसरे पड़ाव में ईटीवी भारत की टीम लापोडिया गांव पहुंची. आत्मनिर्भर गांव बनने के चौका सिस्टम को जानेंगे. यहां से हम आपको पानी सहेजने की पूरी प्रक्रिया को समझाएंगें.

जानिए कैसे काम करता है चौका सिस्टम

दूदू समेत टोंक जिले की मालपुरा तहसील में जल क्रांति पर लक्ष्मण सिंह लापोडिया दावा करते हैं कि 3 साल तक अकाल पड़ने की स्थिति में ये सभी गांव अन्न, चारा और जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने रहेंगे और उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी मदाद की जरूरत नहीं होगी. लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि वे सालाना जल यात्रा करते हुए लोगों को इकोसिस्टम बचाने के लिए जागरूक करते हैं. साथ में गांव-गांव पानी को सहेजने के लिए खुद की तरफ से तैयार किए गए चौका सिस्टम (जिसे स्थानीय भाषा में चोगा सिस्टम भी कहा जाता है) को लेकर लोगों को जागरूक करते हैं और पानी को व्यवस्थित रूप से इस्तेमाल करते हुए इसे जल प्रसाद समझने की सीख देते हैं.

चौके में होती है तरह-तरह की वनस्पतियां

पढ़ें- SPECIAL: जल क्रांति का वाहक बना 'लापोडिया', 50 से ज्यादा गांवों में दूर हुआ पानी का संकट

लक्ष्मण सिंह लापोडिया के प्रयासों से दूदू तहसील के गागरडू गांव से लेकर टोंक जिले की मालपुरा तहसील के ग्वालापुरा गांव तक जल क्रांति की अलख जगी हुई है. करीब 50 किलोमीटर की दूरी में पहले इन गांव में बांडी नदी में मिलने वाली एक बरसाती नाले के पानी का इस्तेमाल हो रहा है और गांव वाले इस पानी को सहेजते हुए ना सिर्फ अपने जल स्रोतों को रिचार्ज करते हैं, बल्कि गांव की भूमि के लिए आवश्यक पानी जुटा लेते हैं.

इसके बाद ईटीवी भारत की टीम मालपुरा के ग्वालापुरा गांव पहुंची, जहां पर लक्ष्मण सिंह की टीम में काम करने वाले हनुमान सिंह ने 2 साल पहले तैयार हुए चौका सिस्टम को ईटीवी भारत के साथ साझा किया और बताया कि किस तरह से गांव में जाकर वे लोग ग्राम विकास समितियों का गठन करते हैं और गांव के प्रमुख लोगों को साथ में लेकर श्रमदान के लिए प्रेरित करते हैं.

ऐसे काम करता है चौका सिस्टम...

गांव के कैचमेंट एरिया में वॉटर लेवल देखने के बाद चौका सिस्टम को तैयार किया जाता है. बड़े चौके के अंदर छोटी-छोटी चौकड़िया बनाई जाती है. जिनकी गहराई 1 फीट के आसपास होती है तो चौड़ाई 7 फीट और लंबाई 12 फीट के करीब होती है.

इन चौकड़ियों की मदद से चारागाह क्षेत्र में पशुओं के लिए जरूरी चारा उगाया जाता है. साथ ही राजस्थान की परंपरागत वनस्पतियां जैसे खेजड़ी, बबूल, पीपल और केर जैसे पेड़ भी उगाए जाते हैं. इस चौका सिस्टम की मदद से इन गांवों में पशुओं के लिए जरूरी 30 प्रकार की घास इन मैदानों में मिल जाती हैं. साथ ही छोटी चौकड़ियों के माध्यम से पानी को व्यर्थ बहने से रोका जाता है.

इस टीम का दावा है कि 1200 एमएम बरसात में भी इन गांवों में जल प्लावन की स्थिति नहीं होगी और पानी को वे लोग डायवर्ट करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाएंगे. ताकि भूमि भी रिचार्ज हो जाए खेतों को जरूरी पाने के लिए गांवों के तालाबों की पूर्ति हो जाए और साथ ही कम बारिश वाले क्षेत्र में पानी पहुंच जाए.

गांव के चारागाह क्षेत्र में बनाए जाने वाले चौका सिस्टम की चौकड़ियों में पानी को रोकने के लिए बंड (स्थानीय भाषा में मिट्टी की दीवार) का निर्माण किया जाता है. इस दीवार को बनाने के लिए कंक्रीट-सीमेंट की जगह चौकड़ियों से निकली मिट्टी को ही काम में लिया जाता है. ताकि वहां भी घास को उगाया जा सके. फिर पानी को व्यवस्थित रूप से दीवारों की ऊंचाई को तय करते हुए डायवर्ट किया जाता है. इस बंड का फायदा यह होता है कि पानी आबादी क्षेत्र और कृषि भूमि की जगह गांव के बाहर से होते हुए जल स्रोतों तक पहुंच जाता है. 50 किलोमीटर के 58 गांव और लगभग 60,000 बीघा कृषि भूमि इसी प्रकार लाभान्वित हो रही है.

पढ़ें- स्पेशल: 'वेस्ट को बेस्ट' बनाने का नायाब तरीका...बिना लागत तैयार कर दिए 2 हजार नीम के पौधे

लक्ष्मण सिंह ने बताया कि लापोडिया गांव में आज तीन बड़े तालाब हैं. जिन्हें अन्न सागर, फूल सागर और देव सागर कहा गया. अन्न सागर को कृषि भूमि की सिंचाई के लिए काम में लिया जाता है, तो फूल सागर को गांव के लोग पेयजल के रूप में इस्तेमाल करते हैं और देव सागर को गांव की भूमि को रिचार्ज करने के लिए उपयोग में लिया जाता है. इस प्रकार दूदू और मालपुरा तहसील के इन गांवों में जल क्रांति के लिए लक्ष्मण सिंह लापोडिया का चौका सिस्टम कारगर साबित हो रहा है. जिसने बीते तीन दशक में इन गांव की सूरत को बदल कर रख दिया है. बिना किसी तकनीकी उपकरणों के पानी सहेजकर, माकूल इस्तेमाल कर गांव को आत्मनिर्भर बनाना वाकई अद्भुत है.

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