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Right to Health Bill : चिकित्सक संगठनों की चेतावनी, कहा-बिल हुआ लागू, तो करेंगे हड़ताल - राइट टू हेल्थ बिल

इस विधानसभा सत्र में सरकार राइट टू हेल्थ बिल ला रही है. चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए विभिन्न चिकित्सक संगठन इस बिल के विरोध में उतर गए (Private hospitals opposed Right to health bill) हैं. उन्होंने इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन चलाने की चेतावनी दी है.

Private hospitals opposed Right to health bill
चिकित्सक संगठनों की चेतावनी, कहा-बिल हुआ लागू, तो करेंगे हड़ताल
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Published : Jan 23, 2023, 5:06 PM IST

Updated : Jan 23, 2023, 5:45 PM IST

राइट हेल्थ बिल के खिलाफ क्यों हैं चिकित्सक...

जयपुर. चिकित्सक संगठन राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में उतर गए हैं. पहले जहां चिकित्सक संगठनों का कहना था कि बिल में सुधार किया जाए, तो वहीं अब चिकित्सक संगठनों का कहना है कि हमें बिल ही मंजूर नहीं और यदि इसे जबरन प्राइवेट अस्पतालों पर लागू किया गया तो प्राइवेट अस्पताल से जुड़े तमाम चिकित्सक हड़ताल पर उतर आएंगे. सरकार एक बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहे.

प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी की ओर से सोमवार को बंद का आह्वान किया गया था. जिसके तहत सभी प्राइवेट अस्पतालों को बंद करने का निर्णय लिया गया था. जिसके बाद दोपहर बाद एक बैठक आयोजित की गई जिसमें तमाम चिकित्सक संगठन शामिल हुए. इस मौके पर प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी के सचिव डॉ विजय कपूर ने बताया कि पहले हम इस बिल में सुधार की मांग कर रहे थे, लेकिन लगता है कि सरकार इस बिल में सुधार करना नहीं चाहती. ऐसे में अब सरकार द्वारा लाया जा रहा राइट टू हेल्थ बिल हमें मंजूर नहीं है.

पढ़ें: Right To Health Bill : चिकित्सक संगठनों ने सुधार के दिए सुझाव, मांग नहीं मानने पर आंदोलन की चेतावनी

चिकित्सक संगठनों ने कहा है कि यदि इसे जबरन प्राइवेट अस्पतालों पर थोपा गया, तो प्रदेश के तमाम प्राइवेट अस्पतालों से जुड़े चिकित्सक हड़ताल पर चले जाएंगे और एक बड़ा आंदोलन सरकार के खिलाफ किया जाएगा. इसके अलावा अब अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ भी इस बिल के विरोध में उतर गया है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय चौधरी का कहना है कि सरकार यदि यह बिल लाना चाहती है, तो पहले इसमें सुधार की जरूरत है. सुधार के लिए चिकित्सकों को पैनल में शामिल किया जाना चाहिए ताकि बिल में उनकी भी राय रखी जा सके.

पढ़ें: सवालों के घेरे में स्वास्थ्य सुरक्षा! दो माह बाद भी नहीं बन सकी सेलेक्ट कमेटी, जानें इसके पीछे की वजह

क्यों हो रहा राइट टू हेल्थ बिल का विरोध: आईएमए के निजी चिकित्सकों का कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान हैं जो डॉक्टर के पैर में कील ठोकने के बराबर हैं. बिल में ना तो इमरजेंसी की कोई परिभाषा है और ना ही बिल में विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई है.

  1. राइट टू हेल्थ बिल में आपातकाल में यानी इमरजेंसी के दौरान निजी अस्पतालों को निशुल्क इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है. मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी उसे इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता. निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है. हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर निशुल्क इलाज लेगा, तो अस्पताल वाले अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.
  2. राइट टू हेल्थ बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतलों के महंगे इलाज और मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राधिकरण का गठन प्रस्तावित है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए ताकि वे अस्पताल की परिस्थितियों को समझते हुए तकनीकी इलाज की प्रक्रिया को समझ सकें. अगर विषय विशेषज्ञ नहीं होंगे, तो प्राधिकरण में पदस्थ सदस्य निजी अस्पतालों को ब्लैकमेल करेंगे. इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा.
  3. राइट टू हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि अगर मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसे इलाज के लिए किसी अन्य अस्पताल में रैफर करना है तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है. इस नियम पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्चा कौन वहन करेगा. अगर सरकार भुगतान करेगी तो इसके लिए क्या प्रावधान हैं. यह स्पष्ट किया जाए.
  4. राइट टू हेल्थ बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है. सरकार अपनी योजना को सरकारी अस्पतालों के जरिए लागू कर सकती है. इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है. योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं हैं. ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे. इससे या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा.
  5. दुर्घटनाओं में घायल मरीज, ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक से ग्रसित मरीजों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है. ये मामले भी इमरजेंसी इलाज की श्रेणी में आते हैं. ऐसे में निजी अस्पताल इन मरीजों का इलाज कैसे करेंगे. इसके लिए सरकार को अलग से स्पष्ट नियम बनाने चाहिए.
  6. दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाए जाने वालों को 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है. दूसरी तरफ अस्पताल वालों को पूरा इलाज निशुल्क करना होगा. ऐसा कैसे संभव होगा.
  7. अस्पताल खोलने से पहले 48 तरह की एनओसी लेनी पड़ती है. इसके साथ ही हर साल रिन्यूअल फीस, स्टाफ की तनख्वाह और अस्पताल के रखरखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है. अगर सभी मरीजों का पूरा इलाज मुफ्त में करना होगा, तो अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा. ऐसे में अगर राइट टू हेल्थ बिल को जबरन लागू किया तो निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे.

राइट हेल्थ बिल के खिलाफ क्यों हैं चिकित्सक...

जयपुर. चिकित्सक संगठन राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में उतर गए हैं. पहले जहां चिकित्सक संगठनों का कहना था कि बिल में सुधार किया जाए, तो वहीं अब चिकित्सक संगठनों का कहना है कि हमें बिल ही मंजूर नहीं और यदि इसे जबरन प्राइवेट अस्पतालों पर लागू किया गया तो प्राइवेट अस्पताल से जुड़े तमाम चिकित्सक हड़ताल पर उतर आएंगे. सरकार एक बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहे.

प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी की ओर से सोमवार को बंद का आह्वान किया गया था. जिसके तहत सभी प्राइवेट अस्पतालों को बंद करने का निर्णय लिया गया था. जिसके बाद दोपहर बाद एक बैठक आयोजित की गई जिसमें तमाम चिकित्सक संगठन शामिल हुए. इस मौके पर प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी के सचिव डॉ विजय कपूर ने बताया कि पहले हम इस बिल में सुधार की मांग कर रहे थे, लेकिन लगता है कि सरकार इस बिल में सुधार करना नहीं चाहती. ऐसे में अब सरकार द्वारा लाया जा रहा राइट टू हेल्थ बिल हमें मंजूर नहीं है.

पढ़ें: Right To Health Bill : चिकित्सक संगठनों ने सुधार के दिए सुझाव, मांग नहीं मानने पर आंदोलन की चेतावनी

चिकित्सक संगठनों ने कहा है कि यदि इसे जबरन प्राइवेट अस्पतालों पर थोपा गया, तो प्रदेश के तमाम प्राइवेट अस्पतालों से जुड़े चिकित्सक हड़ताल पर चले जाएंगे और एक बड़ा आंदोलन सरकार के खिलाफ किया जाएगा. इसके अलावा अब अखिल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ भी इस बिल के विरोध में उतर गया है. संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय चौधरी का कहना है कि सरकार यदि यह बिल लाना चाहती है, तो पहले इसमें सुधार की जरूरत है. सुधार के लिए चिकित्सकों को पैनल में शामिल किया जाना चाहिए ताकि बिल में उनकी भी राय रखी जा सके.

पढ़ें: सवालों के घेरे में स्वास्थ्य सुरक्षा! दो माह बाद भी नहीं बन सकी सेलेक्ट कमेटी, जानें इसके पीछे की वजह

क्यों हो रहा राइट टू हेल्थ बिल का विरोध: आईएमए के निजी चिकित्सकों का कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान हैं जो डॉक्टर के पैर में कील ठोकने के बराबर हैं. बिल में ना तो इमरजेंसी की कोई परिभाषा है और ना ही बिल में विशेषज्ञों की कमेटी बनाई गई है.

  1. राइट टू हेल्थ बिल में आपातकाल में यानी इमरजेंसी के दौरान निजी अस्पतालों को निशुल्क इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है. मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी उसे इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता. निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है. हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर निशुल्क इलाज लेगा, तो अस्पताल वाले अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.
  2. राइट टू हेल्थ बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतलों के महंगे इलाज और मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राधिकरण का गठन प्रस्तावित है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए ताकि वे अस्पताल की परिस्थितियों को समझते हुए तकनीकी इलाज की प्रक्रिया को समझ सकें. अगर विषय विशेषज्ञ नहीं होंगे, तो प्राधिकरण में पदस्थ सदस्य निजी अस्पतालों को ब्लैकमेल करेंगे. इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा.
  3. राइट टू हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि अगर मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसे इलाज के लिए किसी अन्य अस्पताल में रैफर करना है तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है. इस नियम पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्चा कौन वहन करेगा. अगर सरकार भुगतान करेगी तो इसके लिए क्या प्रावधान हैं. यह स्पष्ट किया जाए.
  4. राइट टू हेल्थ बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है. निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है. सरकार अपनी योजना को सरकारी अस्पतालों के जरिए लागू कर सकती है. इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है. योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं हैं. ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे. इससे या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा.
  5. दुर्घटनाओं में घायल मरीज, ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक से ग्रसित मरीजों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है. ये मामले भी इमरजेंसी इलाज की श्रेणी में आते हैं. ऐसे में निजी अस्पताल इन मरीजों का इलाज कैसे करेंगे. इसके लिए सरकार को अलग से स्पष्ट नियम बनाने चाहिए.
  6. दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाए जाने वालों को 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है. दूसरी तरफ अस्पताल वालों को पूरा इलाज निशुल्क करना होगा. ऐसा कैसे संभव होगा.
  7. अस्पताल खोलने से पहले 48 तरह की एनओसी लेनी पड़ती है. इसके साथ ही हर साल रिन्यूअल फीस, स्टाफ की तनख्वाह और अस्पताल के रखरखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है. अगर सभी मरीजों का पूरा इलाज मुफ्त में करना होगा, तो अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा. ऐसे में अगर राइट टू हेल्थ बिल को जबरन लागू किया तो निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे.
Last Updated : Jan 23, 2023, 5:45 PM IST
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