ETV Bharat / state

SPECIAL: व्यर्थ हो रहे पानी को संरक्षित कर दूर किया जल संकट, श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने पेश की मिसाल

25 साल तक पानी की समस्या से जूझने के बाद बेहतर जल प्रबंधन के जरिए जोबनेर के कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने अपनी और क्षेत्र के आसपास के गांवों के जल संकट को दूर कर दिया है. विवि को अब पानी की समस्या नहीं झेलनी पड़ेगी. पहाड़ों से निकलने वाले पानी का संचय कर विवि प्रशासन ने भूजल स्तर में सुधार किया है जिससे बंजर हो रही धरती पर अब फसलें लहलहा रही है.

karna narendra agricultural university solve the water crises problem
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने दूर किया जल संकट
author img

By

Published : Jul 8, 2020, 10:32 PM IST

जयपुर. जल संकट से जूझ रहे जोबनेर क्षेत्र के लोगों को कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने नया जीवन दिया है. विवि प्रशासन के जल संरक्षण के प्रयासों से न केवल कृषि विश्वविद्यालय ने खुद की पानी की समस्या का समाधान किया बल्कि आसपास के गांवों का भी संकट दूर कर दिया. विवि प्रशासन ने क्षेत्र के ज्वाला माता के मंदिर की पहाड़ियों से निकलकर व्यर्थ जाने वाले पानी को तालाबों में संचित कर प्रयोग करना शुरू किया. इससे एक ओर लोगों को भरपूर पानी मिलने लगा है तो वहीं दूसरी ओर तालाब खुदाई से भूजल स्तर बढ़ने से खेती भी अच्छी होने लगी है.

श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने दूर किया जल संकट

प्रदेश के पश्चिमी इलाकों बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर में तो लोगों को कई किलोमीटर का सफर तय करके पानी लाना पड़ता है. लेकिन अब प्रदेश के कई अन्य इलाके डार्क जोन में आ गए हैं. ऐसे में अब राज्य के अन्य जिलों के हालात भी सीमावर्ती इलाकों की तरह बन चुके हैं. राजधानी जयपुर से महज 40 किलोमीटर दूर स्थित जोबनेर क्षेत्र में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं. यहां भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है.

karna narendra agricultural university solve the water crises problem
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने दूर किया जल संकट

जल संरक्षण कर बढ़ाया ग्राउंड वॉटर लेवल

देश का सबसे पुराना एग्रीकल्चर कॉलेज जो कि आजादी के पहले बना था वह जोबनेर क्षेत्र में ही है. हांलाकि यह कॉलेज अब श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रूप में संचालित है. यूं तो यह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है जहां छात्रों को फसलों के बारे में बताने के साथ पशुओं को भी रखा जाता है ताकि छात्र प्रैक्टिकल कर सकें. लेकिन सालों से यूनिवर्सिटी प्रशासन पानी की कमी से जूझ रहा था. हालात ये थे कि साल 1995 के बाद से यूनिवर्सिटी को मजबूरन टैंकरों से पानी लेना पड़ रहा था, लेकिन विवि प्रशासन के बेहतर जल प्रबंधन के बाद अब न केवल यूनिवर्सिटी बल्कि आसपास के क्षेत्र की भी पानी की समस्या समाप्त हो गई है. यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से जल संरक्षण के क्षेत्र में किए गए इस कार्य से आसपास के इलाकों में भी भूजल स्तर 50 फीट ऊपर आ गया है.

सवा सौ हेक्टेयर में बनी इस यूनिवर्सिटी में साल 1985 तक पानी की कोई कमी नहीं थी. यहां तक कि इस यूनिवर्सिटी में दो फसलें ली जाती थी, लेकिन साल 1985 के बाद क्षेत्र का जलस्तर गिरता चला गया. साल 1995 तक इलाके में पानी बिल्कुल समाप्त हो गया और करीब 25 साल तक यूनिवर्सिटी को बाहरी स्रोतों के माध्यम से पानी की व्यवस्था करनी पड़ी.

यह भी पढ़ें : MSME उद्योगों की नई परिभाषा तय, अब उद्यम पोर्टल पर होगा रजिस्ट्रेशन

मंदिर की पहाड़ी से निकलने वाले पानी को किया संचित

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने आत्मनिर्भर बनने के लिए समीप के ज्वाला माता मंदिर की पहाड़ी से व्यर्थ बहने वाले पानी को नगर पालिका के सहयोग से नाले के माध्यम से विवि परिसर में संचित किया. कहने का मतलब जो पानी पहले व्यर्थ बह रहा था उसे तालाब बनाकर संचित किया गया. यूनिवर्सिटी ने 33 लाख लीटर क्षमता के तीन पक्के तालाब बनाने के साथ एक अन्य पक्का तालाब 3 करोड़ लीटर क्षमता का बनाया. वहीं आसपास के इलाके में कई कच्चे तालाब भी बनाए गए. जो पानी पहाड़ों से बहकर पहले व्यर्थ चला जाता था उसे पहले पक्के तालाब में डाला गया और फिर बचे पानी को दूसरे जो तालाब बनाए गए हैं, उनमें रखा गया. जब यह तालाब ओवरफ्लो हो जाते तो इन्हें ज्वाला सागर में निकाल दिया जाता है. पक्के तालाब के जरिए यूनिवर्सिटी अपने उपयोग का पानी खुद ही इंतजाम कर लेती है. इन्हीं कच्चे तालाबों से इस क्षेत्र का ग्राउंड वॉटर लेवल एक तरह से रिचार्ज हो रहा है.

यह भी पढ़ें : जलशक्ति मंत्री की अनूठी पहल, कहा- कर्नाटक के 'कामेगौड़ा' जैसे अन्य लोगों की मदद को तैयार हैं हम

यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन जीएस बंगरवा जिनके प्रयासों से ये काम संभव हो सका था, बताते हैं कि 33 लाख लीटर के तीन तालाब बनाए गए हैं. 3 करोड़ लीटर क्षमता का भी पूर्ण तालाब बनाया गया है. इससे यूनिवर्सिटी के इस्तेमाल में आने वाले पानी की पूर्ति हो जाती है और बाकी के कच्चे तालाब में पानी भरा रहता है जिससे वाटर लेवल रिचार्ज होता रहता है. उन्होंने बताया कि न केवल यूनिवर्सिटी बल्कि इस सिस्टम से आसपास के इलाकों में भी 50 फीट तक वाटर लेवल ऊपर आ गया है. पहले इन इलाकों में खेती नहीं होती थी लेकिन भूजल स्तर बढ़ने के बाद आसपास के इलाकों के नलकूपों में भी पानी आ गया है.

यह भी पढ़ें : जयपुर के SMS अस्पताल में BSF जवान डोनेट करेंगे Plasma

क्यों जरूरी है इस प्रकार पानी का संरक्षण

राजस्थान में पानी का संरक्षण और भूजल स्तर को ऊपर लाने के प्रयास इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि राजस्थान में 295 में से 185 ब्लॉक डार्क जोन में चले गए हैं. 2013 में 10 जून को यह संख्या 164 थी जो अब बढ़कर 185 हो चुकी है. डार्क जोन में जाने का मतलब यह है कि उन इलाकों में जमीन के नीचे से पानी तो लिया जा रहा है, लेकिन वॉटर लेवल रिचार्ज नहीं किया जा रहा है.

जयपुर. जल संकट से जूझ रहे जोबनेर क्षेत्र के लोगों को कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने नया जीवन दिया है. विवि प्रशासन के जल संरक्षण के प्रयासों से न केवल कृषि विश्वविद्यालय ने खुद की पानी की समस्या का समाधान किया बल्कि आसपास के गांवों का भी संकट दूर कर दिया. विवि प्रशासन ने क्षेत्र के ज्वाला माता के मंदिर की पहाड़ियों से निकलकर व्यर्थ जाने वाले पानी को तालाबों में संचित कर प्रयोग करना शुरू किया. इससे एक ओर लोगों को भरपूर पानी मिलने लगा है तो वहीं दूसरी ओर तालाब खुदाई से भूजल स्तर बढ़ने से खेती भी अच्छी होने लगी है.

श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने दूर किया जल संकट

प्रदेश के पश्चिमी इलाकों बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर में तो लोगों को कई किलोमीटर का सफर तय करके पानी लाना पड़ता है. लेकिन अब प्रदेश के कई अन्य इलाके डार्क जोन में आ गए हैं. ऐसे में अब राज्य के अन्य जिलों के हालात भी सीमावर्ती इलाकों की तरह बन चुके हैं. राजधानी जयपुर से महज 40 किलोमीटर दूर स्थित जोबनेर क्षेत्र में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं. यहां भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है.

karna narendra agricultural university solve the water crises problem
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने दूर किया जल संकट

जल संरक्षण कर बढ़ाया ग्राउंड वॉटर लेवल

देश का सबसे पुराना एग्रीकल्चर कॉलेज जो कि आजादी के पहले बना था वह जोबनेर क्षेत्र में ही है. हांलाकि यह कॉलेज अब श्री कर्ण नरेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रूप में संचालित है. यूं तो यह एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है जहां छात्रों को फसलों के बारे में बताने के साथ पशुओं को भी रखा जाता है ताकि छात्र प्रैक्टिकल कर सकें. लेकिन सालों से यूनिवर्सिटी प्रशासन पानी की कमी से जूझ रहा था. हालात ये थे कि साल 1995 के बाद से यूनिवर्सिटी को मजबूरन टैंकरों से पानी लेना पड़ रहा था, लेकिन विवि प्रशासन के बेहतर जल प्रबंधन के बाद अब न केवल यूनिवर्सिटी बल्कि आसपास के क्षेत्र की भी पानी की समस्या समाप्त हो गई है. यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से जल संरक्षण के क्षेत्र में किए गए इस कार्य से आसपास के इलाकों में भी भूजल स्तर 50 फीट ऊपर आ गया है.

सवा सौ हेक्टेयर में बनी इस यूनिवर्सिटी में साल 1985 तक पानी की कोई कमी नहीं थी. यहां तक कि इस यूनिवर्सिटी में दो फसलें ली जाती थी, लेकिन साल 1985 के बाद क्षेत्र का जलस्तर गिरता चला गया. साल 1995 तक इलाके में पानी बिल्कुल समाप्त हो गया और करीब 25 साल तक यूनिवर्सिटी को बाहरी स्रोतों के माध्यम से पानी की व्यवस्था करनी पड़ी.

यह भी पढ़ें : MSME उद्योगों की नई परिभाषा तय, अब उद्यम पोर्टल पर होगा रजिस्ट्रेशन

मंदिर की पहाड़ी से निकलने वाले पानी को किया संचित

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने आत्मनिर्भर बनने के लिए समीप के ज्वाला माता मंदिर की पहाड़ी से व्यर्थ बहने वाले पानी को नगर पालिका के सहयोग से नाले के माध्यम से विवि परिसर में संचित किया. कहने का मतलब जो पानी पहले व्यर्थ बह रहा था उसे तालाब बनाकर संचित किया गया. यूनिवर्सिटी ने 33 लाख लीटर क्षमता के तीन पक्के तालाब बनाने के साथ एक अन्य पक्का तालाब 3 करोड़ लीटर क्षमता का बनाया. वहीं आसपास के इलाके में कई कच्चे तालाब भी बनाए गए. जो पानी पहाड़ों से बहकर पहले व्यर्थ चला जाता था उसे पहले पक्के तालाब में डाला गया और फिर बचे पानी को दूसरे जो तालाब बनाए गए हैं, उनमें रखा गया. जब यह तालाब ओवरफ्लो हो जाते तो इन्हें ज्वाला सागर में निकाल दिया जाता है. पक्के तालाब के जरिए यूनिवर्सिटी अपने उपयोग का पानी खुद ही इंतजाम कर लेती है. इन्हीं कच्चे तालाबों से इस क्षेत्र का ग्राउंड वॉटर लेवल एक तरह से रिचार्ज हो रहा है.

यह भी पढ़ें : जलशक्ति मंत्री की अनूठी पहल, कहा- कर्नाटक के 'कामेगौड़ा' जैसे अन्य लोगों की मदद को तैयार हैं हम

यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन जीएस बंगरवा जिनके प्रयासों से ये काम संभव हो सका था, बताते हैं कि 33 लाख लीटर के तीन तालाब बनाए गए हैं. 3 करोड़ लीटर क्षमता का भी पूर्ण तालाब बनाया गया है. इससे यूनिवर्सिटी के इस्तेमाल में आने वाले पानी की पूर्ति हो जाती है और बाकी के कच्चे तालाब में पानी भरा रहता है जिससे वाटर लेवल रिचार्ज होता रहता है. उन्होंने बताया कि न केवल यूनिवर्सिटी बल्कि इस सिस्टम से आसपास के इलाकों में भी 50 फीट तक वाटर लेवल ऊपर आ गया है. पहले इन इलाकों में खेती नहीं होती थी लेकिन भूजल स्तर बढ़ने के बाद आसपास के इलाकों के नलकूपों में भी पानी आ गया है.

यह भी पढ़ें : जयपुर के SMS अस्पताल में BSF जवान डोनेट करेंगे Plasma

क्यों जरूरी है इस प्रकार पानी का संरक्षण

राजस्थान में पानी का संरक्षण और भूजल स्तर को ऊपर लाने के प्रयास इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि राजस्थान में 295 में से 185 ब्लॉक डार्क जोन में चले गए हैं. 2013 में 10 जून को यह संख्या 164 थी जो अब बढ़कर 185 हो चुकी है. डार्क जोन में जाने का मतलब यह है कि उन इलाकों में जमीन के नीचे से पानी तो लिया जा रहा है, लेकिन वॉटर लेवल रिचार्ज नहीं किया जा रहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.