जयपुर. ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब आलाकमान के फरमान को सिरे से राजस्थान कांग्रेस के बड़े से लेकर छोटे नेताओं ने न कह दिया था. 25 सितम्बर को गहलोत समर्थक विधायकों ने एक लाइन के प्रस्ताव संग भेजे पर्यवेक्षकों की मीटिंग का बहिष्कार कर दिया था. अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को बैरंग लौटना पड़ा. देश की Grand Old Party के अब तक के इतिहास में अप्रत्याशित था.
कई तरह की बातें सुनी और कही गईं. इसके बाद नाराज पर्यवेक्षक बिना बैठक लिए दिल्ली लौट गए. इस रवैए को अनुशासनहीनता मानी गई. काफी चिंतन मनन का दौर चला. गहरे मंथन के बाद गहलोत गुट के मंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी और आरटीडीसी के चेयरमैन धर्मेंद्र राठौर को इस नाफरमानी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.
राजनीति जैसी दिखती है वैसी होती नहीं. भले ही इन नेताओं को जिम्मेदार बताया गया हो लेकिन खलिश बरकरार है. दरअसल, अपनी आवाज बुलंद करने वाले सभी विधायक और मंत्री जिन्होंने स्पीकर को इस्तीफे सौंपे वो सभी गहलोत समर्थक ही हैं. कहा जा रहा है कि आलाकमान इस बात से काफी नाराज है कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक नहीं हो पाई. पर्यवेक्षकों को प्रदेश में कांग्रेस का मुख्यमंत्री होने के बावजूद बिना एक लाइन का प्रस्ताव लिए वापस आना पड़ा.
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जो कुछ भी हुआ उससे स्वभाविक है कि कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी नाराज है. सूत्रों की मानें तो राजस्थान में सीएम का चेहरा बदल सकता है. पहले कहा जा रहा था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के 19 अक्टूबर को आने वाले नतीजों के बाद ये निर्णय हो जाएगा (Gehlot may get 1 month extension). फिर दिवाली के बाद की बात कही जाने लगी और अब माना जा रहा है कि हिमाचल और गुजरात चुनाव के मतदान बाद ही राजस्थान में चल रही उठापटक को लेकर कोई अंतिम निर्णय कांग्रेस आलाकमान ले सकता है.
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क्यों 1 महीने का अभयदान?: राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर मलिकार्जुन खड़गे 26 अक्टूबर को पदभार ग्रहण करेंगे. खड़गे खुद पर्यवेक्षक के तौर पर राजस्थान में हुए Big Political drama के गवाह रहे हैं. वो पूरे मामले से वाकिफ हैं और उन्हें इस मामले में किसी अन्य साक्ष्य की आवश्यकता भी नहीं है. लेकिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव भी नए कांग्रेस प्रेसिडेंट के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होंगे.
जो तस्वीर सामने है, जो चुनावी चुनौती मुंह खोले खड़गे के सामने खड़ी है उसे देखते हुए लगता नही है कि वो हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव से पहले राजस्थान को लेकर कोई सख्त फैसला लेंगे. जिससे राजस्थान में विवाद खड़ा हो और जिसका सीधा असर हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव पर पड़े.
गुजरात के वरिष्ठ पर्यवेक्षक का पद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास है और गहलोत गुट के 20 विधायक और मंत्रियों को गुजरात की 20 लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी मिली हुई है. ऐसे में अगर राजस्थान में कोई राजनीतिक उठापटक होती है तो उसका असर निश्चित तौर पर गुजरात चुनाव में पड़ेगा जो पार्टी नहीं चाहेगी. लगता यही है कि गहलोत को अभी 1 महीने का अभयदान कांग्रेस आलाकमान की ओर से और मिल सकता है.
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ताकि, आलाकमान का इकबाल बुलंद रहे: भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हिमाचल और गुजरात चुनाव तक अभय दान मिल जाए. लेकिन अगर ऐसा होता है तो भी आलाकमान को राजस्थान के विधायकों और मंत्रियों को एक सख्त मैसेज देने की आवश्यकता होगी. ऐसे में आलाकमान के पास मंत्री महेश जोशी, शांति धारीवाल और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौर पर कार्रवाई की जा सकती है. कहा जा सकता है कि भले ही गुजरात और हिमाचल चुनाव से पहले गहलोत की कुर्सी पर खतरा न हो लेकिन महेश जोशी ,धर्मेंद्र राठौर और शांति धारीवाल पर कार्रवाई की गाज गिर सकती है, क्योंकि सवाल आलाकमान के इकबाल को बुलंद करने का और पार्टी पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ सिखाने का भी है.