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CM के करीबी ने बढ़ाई पूर्व सैनिकों की चिंता, पूर्व मंत्री की मांग पर मचा सियासी घमासान - Jaipur latest news

कांग्रेस के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने OBC आरक्षण (Political tussle over OBC reservation) कोटे से पूर्व सैनिकों को बाहर करने की मांग की, लेकिन सरकार ऐसा करती है तो इसका बड़ा असर पूर्व सैनिकों पर पड़ेगा. आरक्षण के जानकार मानते हैं कि मौजूदा आरक्षण से छेड़छाड़ का मतलब ही पूर्व सैनिकों के आरक्षण कोटे को खत्म करना है.

Political tussle over OBC reservation
CM के करीबी ने बढ़ाई पूर्व सैनिकों की चिंता
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Published : Nov 16, 2022, 2:24 PM IST

जयपुर. पूर्व सैनिकों को ओबीसी आरक्षण कोटे से अलग करने की मांग पर प्रदेश कांग्रेस के मंत्री और पूर्व मंत्री आमने-सामने हैं. पूर्व मंत्री हरीश चौधरी (former minister Harish Chaudhary) ने OBC आरक्षण कोटे से पूर्व सैनिकों को बाहर करने की मांग की है, जबकि सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने (Rajendra Singh Gudha) स्पष्ट कर दिया है कि ओबीसी आरक्षण में कोई विसंगति नहीं है. ऐसे में अगर सरकार दबाव में (raises voice against ex servicemen) आकर कोई छेड़छाड़ करती है तो वो किसी भी हद तक पूर्व सैनिकों के समर्थन में जाएंगे. आरक्षण को लेकर मची सियासी घमासान के बीच Etv Bharat ने आरक्षण के प्रावधानों के जानकार व समता आंदोलन समिति के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा (Parashar Narayan Sharma) से खास बातचीत की. इस दौरान शर्मा ने कहा कि संविधान में सिर्फ और सिर्फ पिछड़ों को आरक्षण देने का प्रावधान है. मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में ही पूर्व सैनिकों को आरक्षण दिया जा सकता है. अगर इसमें कोई भी बदलाव होता है तो पूर्व सैनिकों का आरक्षण भी खत्म हो सकता है.

क्या हैं नियम: आरक्षण प्रावधान के जानकार पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि पूर्व मंत्री व विधायक हरीश चौधरी जातिवादी मांग के बीच पूर्व सैनिकों के आरक्षण को खत्म करवाने पर तुले हैं. यह सभी जानते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में केवल पिछड़ों को ही आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने का प्रावधान संविधान के किसी भी अनुच्छेद के अधीन अनुमोदित नहीं है. लिहाजा केंद्र सरकार की ओर से भी और कुछ राज्यों की सरकारें भी होरिजेंटल आरक्षण की आड़ में पूर्व सैनिकों को आरक्षण का लाभ देने की कोशिश की है.

CM के करीबी ने बढ़ाई पूर्व सैनिकों की चिंता

इसे भी पढ़ें - पूर्व सैनिक आरक्षण मामला: समर्थन में उतरे राजेंद्र गुढ़ा, कहा- पूर्व सैनिकों के अधिकारों पर कुठाराघात नहीं होने दूंगा

उन्होंने कहा कि यदि सूबे के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी की मांग को स्वीकार किया गया तो पूर्व सैनिकों के आरक्षण को किसी भी तरह से होरिजेंटल की बजाय वर्टिकल करने यानी पूर्व सैनिकों को कृत्रिम रूप से "पिछड़ा" मानकर आरक्षण देने का प्रयास होगा. जो पूरी तरह अविधिक, असंवैधानिक और सम्मानित पूर्व सैनिकों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम होगा.

उन्होंने कहा कि हरीश चौधरी की अविधिक और असंवैधानिक मांग को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो फिर समता आंदोलन को मजबूर होकर सरकार की अविधिक, असंवैधानिक कार्यवाही को कोर्ट में चुनौती देकर निरस्त करवाना होगा. उन्होंने कहा कि अगर यह मामला कोर्ट में जाता है तो पूर्व सैनिकों का हॉरिजेंटल आरक्षण भी खतरे में पड़ सकता है. समता आंदोलन समिति ने आरक्षण में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हो, इसको लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया है.

क्या है हरीश चौधरी की मांग: पूर्व कैबिनेट मंत्री व पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. चौधरी ने ओबीसी और पूर्व सैनिकों के आरक्षण की विसंगतियों को फिर से मुद्दा बनाया है. कभी सीएम गहलोत के करीबी व वफादार रहे हरीश चौधरी ने कहा है कि पूर्व सैनिकों को मिल रहा आरक्षण ओबीसी आरक्षण को कमजोर कर रहा है. इसलिए इसे तत्काल ओबीसी कोटे से अलग किया जाना चाहिए.

भूतपूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में साल 1988 से आरक्षण प्राप्त है, उन्हें होरिजेंटल आरक्षण के तहत राज्य सेवा में 5 प्रतिशत, अधीनस्थ सेवाओं में 12.5 प्रतिशत और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में 15 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के कार्यकाल में 17 अप्रैल, 2018 को कार्मिक विभाग ने भूतपूर्व सैनिकों के आरक्षण नियमों में बदलाव किया था. इस बदलाव के तहत होरिजेंटल आरक्षण नियम में आरक्षित वर्गों के पदों की तय संख्या की सीमा को खत्म कर दिया गया था.

OBC अभ्यर्थियों की बढ़ी मुश्किलें: चूंकि प्रदेश में 90 प्रतिशत भूतपूर्व सैनिक ओबीसी वर्ग से आते हैं, लिहाजा आरक्षित वर्ग के पदों की तय संख्या को खत्म करने से ओबीसी के भूतपूर्व सैनिक 12.5 प्रतिशत पदों के साथ ओबीसी वर्ग के अन्य पदों पर भी चयनित होने लगे. जिससे ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों का अपने वर्ग के पदों पर चयन होना मुश्किल हो गया. राजस्थान में पिछले कुछ सालों में हुई भर्तियों में ओबीसी वर्ग के सभी पदों पर भूतपूर्व सैनिकों का चयन हुआ. इसके बाद से ही यह मुद्दा सुर्खियों में है.

जानें क्या है वर्टिकल और होरिजेंटल आरक्षण... वर्टिकल आरक्षण का तात्पर्य जन्मजात दिए जाने वाले आरक्षण से है. यानी कोई व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है, उसे राज्य सरकार की ओर से दिए गए जातिगत आरक्षण में उस जाति को दिए गए आरक्षण के तहत ही आरक्षण का लाभ मिलता है. जैसे कोई व्यक्ति जाट, सैनी, यादव, कुमावत, बिश्नोई आदि जाति में जन्म लेता है तो उन्हें आरक्षण व्यवस्था के तहत ओबीसी वर्ग का लाभ मिलेगा. होरिजेंटल आरक्षण का तात्पर्य आरक्षण में दिए गए आरक्षण से है. सरकारी नौकरियों में भूतपूर्व सैनिक, दिव्यांग, विधवा, परित्यक्ता और उत्कृष्ट खिलाड़ियों को होरिजेंटल आरक्षण प्राप्त है. इन्हें होरिजेंटल आरक्षण के तहत आरक्षण का दोहरा फायदा मिलता है. यानी पहले भूतपूर्व सैनिक या उत्कृष्ट खिलाड़ी होने का लाभ और फिर अपनी जाति के आरक्षण का लाभ.

पूर्व सैनिकों के साथ नहीं होने दूंगा कुठाराघात: प्रदेश सैनिक कल्याण राज्य मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने कहा कि सैनिक कल्याण विभाग उनके पास है. लिहाजा वो पूर्व सैनिकों पर कोई कुठाराघात नहीं होने देंगे. इस मामले के लिए चाहे किसी भी हद तक उन्हें जाना पड़े, वो जाने को तैयार हैं. गुढ़ा ने कहा कि हरीश चौधरी हो या फिर कोई और वे पूर्व सैनिकों के हितों के साथ किसी को खिलवाड़ नहीं करने देंगे.

पूर्व सैनिकों ने दिया धरना: ओबीसी आरक्षण में पूर्व सैनिकों के कोटे को लेकर चल रही इस मांग के बाद अब पूर्व सैनिक भी विरोध शुरू कर दिए हैं. पूर्व सैनिकों ने कहा कि यह दुख का विषय है कि जाति, धर्म, सम्प्रदाय और वर्ग के नाम पर कुछ व्यक्ति या समूह अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए समय-समय पर ऐसी मांग करते रहे हैं, जो सामाजिक सौहार्द और एकता को खंडित करते हैं.

सिविल सेवाओं में पूर्व सैनिकों के लिए जारी नोटिफिकेशन 1988 के अनुसार अब तक बिना भेदभाव के पूर्व सैनिकों को 12.5% और 15% आरक्षण विभिन्न पदों पर मिलता रहा था. जिसे चयनित पूर्व सैनिक से सम्बद्ध वर्ग को प्राप्त आरक्षित सीमा में समायोजित किया जाता रहा है.

वहीं, 17 अप्रैल, 2018 के नोटिफिकेशन में भी इसी सिस्टम को बरकरार रखते हुए केवल मात्र राज्य सेवाओं में 5% अतिरिक्त आरक्षण का विधान जोड़ा गया है, न कि कोई नया बदलाव किया गया. सर्वमान्य और विधि सम्मत होने के कारण 1988 से अब तक किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई, लेकिन अब कुछ लोग निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए पूर्व सैनिकों के लिए विभिन्न वर्ग में निर्धारित आरक्षण से अलग आरक्षण की मांग का दबाव सरकार पर बना रहे हैं.

जयपुर. पूर्व सैनिकों को ओबीसी आरक्षण कोटे से अलग करने की मांग पर प्रदेश कांग्रेस के मंत्री और पूर्व मंत्री आमने-सामने हैं. पूर्व मंत्री हरीश चौधरी (former minister Harish Chaudhary) ने OBC आरक्षण कोटे से पूर्व सैनिकों को बाहर करने की मांग की है, जबकि सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने (Rajendra Singh Gudha) स्पष्ट कर दिया है कि ओबीसी आरक्षण में कोई विसंगति नहीं है. ऐसे में अगर सरकार दबाव में (raises voice against ex servicemen) आकर कोई छेड़छाड़ करती है तो वो किसी भी हद तक पूर्व सैनिकों के समर्थन में जाएंगे. आरक्षण को लेकर मची सियासी घमासान के बीच Etv Bharat ने आरक्षण के प्रावधानों के जानकार व समता आंदोलन समिति के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा (Parashar Narayan Sharma) से खास बातचीत की. इस दौरान शर्मा ने कहा कि संविधान में सिर्फ और सिर्फ पिछड़ों को आरक्षण देने का प्रावधान है. मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में ही पूर्व सैनिकों को आरक्षण दिया जा सकता है. अगर इसमें कोई भी बदलाव होता है तो पूर्व सैनिकों का आरक्षण भी खत्म हो सकता है.

क्या हैं नियम: आरक्षण प्रावधान के जानकार पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि पूर्व मंत्री व विधायक हरीश चौधरी जातिवादी मांग के बीच पूर्व सैनिकों के आरक्षण को खत्म करवाने पर तुले हैं. यह सभी जानते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में केवल पिछड़ों को ही आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने का प्रावधान संविधान के किसी भी अनुच्छेद के अधीन अनुमोदित नहीं है. लिहाजा केंद्र सरकार की ओर से भी और कुछ राज्यों की सरकारें भी होरिजेंटल आरक्षण की आड़ में पूर्व सैनिकों को आरक्षण का लाभ देने की कोशिश की है.

CM के करीबी ने बढ़ाई पूर्व सैनिकों की चिंता

इसे भी पढ़ें - पूर्व सैनिक आरक्षण मामला: समर्थन में उतरे राजेंद्र गुढ़ा, कहा- पूर्व सैनिकों के अधिकारों पर कुठाराघात नहीं होने दूंगा

उन्होंने कहा कि यदि सूबे के पूर्व मंत्री हरीश चौधरी की मांग को स्वीकार किया गया तो पूर्व सैनिकों के आरक्षण को किसी भी तरह से होरिजेंटल की बजाय वर्टिकल करने यानी पूर्व सैनिकों को कृत्रिम रूप से "पिछड़ा" मानकर आरक्षण देने का प्रयास होगा. जो पूरी तरह अविधिक, असंवैधानिक और सम्मानित पूर्व सैनिकों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम होगा.

उन्होंने कहा कि हरीश चौधरी की अविधिक और असंवैधानिक मांग को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो फिर समता आंदोलन को मजबूर होकर सरकार की अविधिक, असंवैधानिक कार्यवाही को कोर्ट में चुनौती देकर निरस्त करवाना होगा. उन्होंने कहा कि अगर यह मामला कोर्ट में जाता है तो पूर्व सैनिकों का हॉरिजेंटल आरक्षण भी खतरे में पड़ सकता है. समता आंदोलन समिति ने आरक्षण में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हो, इसको लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया है.

क्या है हरीश चौधरी की मांग: पूर्व कैबिनेट मंत्री व पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. चौधरी ने ओबीसी और पूर्व सैनिकों के आरक्षण की विसंगतियों को फिर से मुद्दा बनाया है. कभी सीएम गहलोत के करीबी व वफादार रहे हरीश चौधरी ने कहा है कि पूर्व सैनिकों को मिल रहा आरक्षण ओबीसी आरक्षण को कमजोर कर रहा है. इसलिए इसे तत्काल ओबीसी कोटे से अलग किया जाना चाहिए.

भूतपूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में साल 1988 से आरक्षण प्राप्त है, उन्हें होरिजेंटल आरक्षण के तहत राज्य सेवा में 5 प्रतिशत, अधीनस्थ सेवाओं में 12.5 प्रतिशत और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में 15 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के कार्यकाल में 17 अप्रैल, 2018 को कार्मिक विभाग ने भूतपूर्व सैनिकों के आरक्षण नियमों में बदलाव किया था. इस बदलाव के तहत होरिजेंटल आरक्षण नियम में आरक्षित वर्गों के पदों की तय संख्या की सीमा को खत्म कर दिया गया था.

OBC अभ्यर्थियों की बढ़ी मुश्किलें: चूंकि प्रदेश में 90 प्रतिशत भूतपूर्व सैनिक ओबीसी वर्ग से आते हैं, लिहाजा आरक्षित वर्ग के पदों की तय संख्या को खत्म करने से ओबीसी के भूतपूर्व सैनिक 12.5 प्रतिशत पदों के साथ ओबीसी वर्ग के अन्य पदों पर भी चयनित होने लगे. जिससे ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों का अपने वर्ग के पदों पर चयन होना मुश्किल हो गया. राजस्थान में पिछले कुछ सालों में हुई भर्तियों में ओबीसी वर्ग के सभी पदों पर भूतपूर्व सैनिकों का चयन हुआ. इसके बाद से ही यह मुद्दा सुर्खियों में है.

जानें क्या है वर्टिकल और होरिजेंटल आरक्षण... वर्टिकल आरक्षण का तात्पर्य जन्मजात दिए जाने वाले आरक्षण से है. यानी कोई व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है, उसे राज्य सरकार की ओर से दिए गए जातिगत आरक्षण में उस जाति को दिए गए आरक्षण के तहत ही आरक्षण का लाभ मिलता है. जैसे कोई व्यक्ति जाट, सैनी, यादव, कुमावत, बिश्नोई आदि जाति में जन्म लेता है तो उन्हें आरक्षण व्यवस्था के तहत ओबीसी वर्ग का लाभ मिलेगा. होरिजेंटल आरक्षण का तात्पर्य आरक्षण में दिए गए आरक्षण से है. सरकारी नौकरियों में भूतपूर्व सैनिक, दिव्यांग, विधवा, परित्यक्ता और उत्कृष्ट खिलाड़ियों को होरिजेंटल आरक्षण प्राप्त है. इन्हें होरिजेंटल आरक्षण के तहत आरक्षण का दोहरा फायदा मिलता है. यानी पहले भूतपूर्व सैनिक या उत्कृष्ट खिलाड़ी होने का लाभ और फिर अपनी जाति के आरक्षण का लाभ.

पूर्व सैनिकों के साथ नहीं होने दूंगा कुठाराघात: प्रदेश सैनिक कल्याण राज्य मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने कहा कि सैनिक कल्याण विभाग उनके पास है. लिहाजा वो पूर्व सैनिकों पर कोई कुठाराघात नहीं होने देंगे. इस मामले के लिए चाहे किसी भी हद तक उन्हें जाना पड़े, वो जाने को तैयार हैं. गुढ़ा ने कहा कि हरीश चौधरी हो या फिर कोई और वे पूर्व सैनिकों के हितों के साथ किसी को खिलवाड़ नहीं करने देंगे.

पूर्व सैनिकों ने दिया धरना: ओबीसी आरक्षण में पूर्व सैनिकों के कोटे को लेकर चल रही इस मांग के बाद अब पूर्व सैनिक भी विरोध शुरू कर दिए हैं. पूर्व सैनिकों ने कहा कि यह दुख का विषय है कि जाति, धर्म, सम्प्रदाय और वर्ग के नाम पर कुछ व्यक्ति या समूह अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए समय-समय पर ऐसी मांग करते रहे हैं, जो सामाजिक सौहार्द और एकता को खंडित करते हैं.

सिविल सेवाओं में पूर्व सैनिकों के लिए जारी नोटिफिकेशन 1988 के अनुसार अब तक बिना भेदभाव के पूर्व सैनिकों को 12.5% और 15% आरक्षण विभिन्न पदों पर मिलता रहा था. जिसे चयनित पूर्व सैनिक से सम्बद्ध वर्ग को प्राप्त आरक्षित सीमा में समायोजित किया जाता रहा है.

वहीं, 17 अप्रैल, 2018 के नोटिफिकेशन में भी इसी सिस्टम को बरकरार रखते हुए केवल मात्र राज्य सेवाओं में 5% अतिरिक्त आरक्षण का विधान जोड़ा गया है, न कि कोई नया बदलाव किया गया. सर्वमान्य और विधि सम्मत होने के कारण 1988 से अब तक किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई, लेकिन अब कुछ लोग निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए पूर्व सैनिकों के लिए विभिन्न वर्ग में निर्धारित आरक्षण से अलग आरक्षण की मांग का दबाव सरकार पर बना रहे हैं.

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