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Rajasthan Election 2023 : राजस्थान में यात्राओं के जरिए राजनीति, बीजेपी के साथ स्थानीय दलों ने भी निभाई 'परंपरा' - राजनीतिक यात्राओं का मकसद

Political Tour in Rajasthan, राजस्थान में राजनीतिक यात्राओं का बड़ा जोर रहा है. बीजेपी के बाद कांग्रेस और स्थानीय दलों ने भी अपनी जमीन मजबूत करने के लिए यात्राओं का सहारा लिया है. देखिए जयपुर से ये खास रिपोर्ट...

Political Tour in Rajasthan
Political Tour in Rajasthan
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 27, 2023, 4:33 PM IST

वरिष्ठ पत्रकार श्यामसुंदर शर्मा ने क्या कहा...

जयपुर. राजस्थान में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल सक्रिय हैं और यात्राओं के जरिए अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने जहां चुनाव से पहले परिवर्तन संकल्प यात्रा निकाल कर एक्टिव मोड में आ गई है, वहीं अब सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी सत्ता संकल्प व्यवस्था परिवर्तन यात्रा शुरू करने जा रही है.

28 सितंबर से चूरू जिले के सालासर धाम से शुरू हो रही इस यात्रा के जरिए बेनीवाल पार्टी की जमीन को मजबूत करेंगे. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में बीजेपी के बाद आरएलपी राजनीतिक यात्रा निकाल रही है. इससे पहले भी कांग्रेस ने प्रदेश के कुछ जिलों में किसान यात्रा निकाली थी. इसके अलावा स्थानीय दल भारत वाहिनी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी भी चुनावी यात्रा निकाल चुकी है.

सत्ता संकल्प-व्यवस्था परिवर्तन यात्रा : बीजेपी की परिवर्तन संकल्प यात्रा पूरी हो चुकी है. यात्राओं के समापन पर पीएम नरेंद्र मोदी की महासभा भी हो चुकी है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी 27 सितंबर से 7 अक्टूबर तक प्रदेश भर में यात्रा निकालने का ऐलान किया था. हालांकि, उस यात्रा को रद्द कर दिया गया. अब प्रदेश में तीसरे मोर्चे के रूप में अपना अस्तित्व बनाने में लगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी प्रदेश में सत्ता संकल्प व्यवस्था परिवर्तन यात्रा निकालने जा रही है. आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में यात्रा की शुरुआत 28 सितंबर से चूरू जिले के सालासर बालाजी से होने जा रही हैं. आरएलपी सुप्रीमो बेनीवाल ने दावा किया है कि पार्टी के 3 विधायकों ने अभी तक विधानसभा में हर मुद्दे पर मजबूती से पक्ष रखा. आदिवासी समाज सहित अन्य समाज के हक की लड़ाई हमने लड़ी. अब हम इस यात्रा के जरिए प्रदेश में सत्ता का संकल्प लेंगे.

पढे़ं : Rajasthan : वसुंधरा राजे बोलीं - द्रौपदी को बचाने श्रीकृष्ण आए थे, मेरे लिए आएंगी नारी शक्ति, मैं नहीं छोड़ूंगी राजस्थान

राजस्थान में यात्राओं का इतिहास : ऐसा नहीं है कि बीजेपी या आरएलपी राजनीतिक यात्रा निकाल रही हो. इससे पहले भी प्रदेश में राजनीतिक यात्राएं निकाली जाती रही हैं. प्रदेश में सबसे पहले बड़े स्तर पर साल 2002 में राजस्थान में वसुंधरा राजे ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूरे राज्य में परिवर्तन यात्रा निकाली थी, जिसका असर यह हुआ कि 2003 में भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ ही नहीं बल्कि बड़ी जीत के साथ सरकार बनाई. इसके बाद फिर 2013 में कांग्रेस की गहलोत सरकार के खिलाफ वसुंधरा राजे ने सुराज संकल्प यात्रा निकाली, जिसका भी बड़ा असर हुआ और प्रदेश में बड़े बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी.

Rally in Rajasthan
एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा नेता...

कांग्रेस ने भी सत्ता में रहते हुए 2013 में मुख्यमंत्री गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. चंद्रभान के नेतृत्व में सन्देश यात्रा निकाली थी, लेकिन जब दिसंबर-2013 में चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 2017 में सचिन पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद किसान न्याय पद यात्रा निकाली थी. हालांकि, ये यात्रा पूरे प्रदेश भर में नहीं बल्कि कोटा संभाग में निकाली गई थी, जिसका सकारात्मक असर दिखा और 2018 में हाड़ौती संभाग में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की.

स्थानीय दलों ने निभाई 'परंपरा' : राजस्थान की राजनीति में यात्राओं का महत्व इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि जब-जब भी किसी दल ने बड़े स्तर पर यात्रा निकाली तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आए. हालांकि, यात्राओं का इतिहास बीजेपी के इर्द गिर्द ही रहा है. बाकी राजनीतक दलों को यात्राओं का लाभ नहीं मिला, फिर चाहे भारतीय जनता पार्टी को छोड़ अपनी अलग से पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी हों या फिर किरोड़ी लाल मीणा. दोनों ही नेताओं ने बीजेपी का दामन छोड़ अपनी-अपनी पार्टी बनाई और प्रदेश भर में चुनावी यात्रा भी निकाली, लेकिन न घनश्याम तिवाड़ी की भारत वाहिनी पार्टी को जन समर्थन मिला और न किरोड़ी लाल मीणा की राष्ट्रीय जनता पार्टी कोई खास असर दिखाई पाई.

हालांकि, किरोड़ी लाल मीणा ने प्रदेश भर में जो यात्रा निकाली, उसका कुछ असर हुआ और राजपा को 2013 के विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर जीत मिली. वहीं, भाजपा से अलग होकर भारत वाहिनी पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी ने भी यात्रा निकाली, लेकिन उन्हें एक भी विधानसभा सीट पर सफलता नहीं मिली. बाद में दोनों नेता किरोड़ी लाल मीणा और घनश्याम तिवाड़ी ने फिर से भाजपा का दामन थाम लिया.

राजनीतिक यात्राओं का मकसद : प्रदेश में निकाली जाने वाले राजनीतिक यात्राओं को लेकर वरिष्ठ पत्रकार श्यामसुंदर शर्मा बताते हैं कि राजस्थान में राजनीतिक यात्राओं का सिलसिला पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की 2003 की परिवर्तन यात्रा के बाद से शरू हुआ था. इसके बाद कांग्रेस के साथ अन्य राजनीतक दलों और व्यक्तिगत नेताओं ने भी यात्रा निकालने का ट्रेंड अपनाया था. किसी बड़े चुनाव से ठीक पहले अगर राजनीतिक दलों को चुनावी यात्राओं की याद आती है, तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है.

पार्टियों को लगता है कि बड़े पैमाने पर यात्राएं करने से लोगों में जागरूकता फैलेगी. लोगों के बीच में जाकर उनसे सीधा जुड़ाव बनाने का ये बड़ा माध्यम है और चुनाव में इन सबका फायदा मिलेगा. इन यात्राओं के जरिए पार्टियों को मतदाताओं के मन-मिजाज को टटोलने में मदद मिलती है. इसके साथ ग्राउंड लेवल पर आम जनता की मूलभूत समस्याओं तक भी आसानी जाया जा सकता है. ये एक जरिया है, जनता के दिलों तक असर बनाने का.

वरिष्ठ पत्रकार श्यामसुंदर शर्मा ने क्या कहा...

जयपुर. राजस्थान में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल सक्रिय हैं और यात्राओं के जरिए अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने जहां चुनाव से पहले परिवर्तन संकल्प यात्रा निकाल कर एक्टिव मोड में आ गई है, वहीं अब सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी सत्ता संकल्प व्यवस्था परिवर्तन यात्रा शुरू करने जा रही है.

28 सितंबर से चूरू जिले के सालासर धाम से शुरू हो रही इस यात्रा के जरिए बेनीवाल पार्टी की जमीन को मजबूत करेंगे. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में बीजेपी के बाद आरएलपी राजनीतिक यात्रा निकाल रही है. इससे पहले भी कांग्रेस ने प्रदेश के कुछ जिलों में किसान यात्रा निकाली थी. इसके अलावा स्थानीय दल भारत वाहिनी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी भी चुनावी यात्रा निकाल चुकी है.

सत्ता संकल्प-व्यवस्था परिवर्तन यात्रा : बीजेपी की परिवर्तन संकल्प यात्रा पूरी हो चुकी है. यात्राओं के समापन पर पीएम नरेंद्र मोदी की महासभा भी हो चुकी है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी 27 सितंबर से 7 अक्टूबर तक प्रदेश भर में यात्रा निकालने का ऐलान किया था. हालांकि, उस यात्रा को रद्द कर दिया गया. अब प्रदेश में तीसरे मोर्चे के रूप में अपना अस्तित्व बनाने में लगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी प्रदेश में सत्ता संकल्प व्यवस्था परिवर्तन यात्रा निकालने जा रही है. आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में यात्रा की शुरुआत 28 सितंबर से चूरू जिले के सालासर बालाजी से होने जा रही हैं. आरएलपी सुप्रीमो बेनीवाल ने दावा किया है कि पार्टी के 3 विधायकों ने अभी तक विधानसभा में हर मुद्दे पर मजबूती से पक्ष रखा. आदिवासी समाज सहित अन्य समाज के हक की लड़ाई हमने लड़ी. अब हम इस यात्रा के जरिए प्रदेश में सत्ता का संकल्प लेंगे.

पढे़ं : Rajasthan : वसुंधरा राजे बोलीं - द्रौपदी को बचाने श्रीकृष्ण आए थे, मेरे लिए आएंगी नारी शक्ति, मैं नहीं छोड़ूंगी राजस्थान

राजस्थान में यात्राओं का इतिहास : ऐसा नहीं है कि बीजेपी या आरएलपी राजनीतिक यात्रा निकाल रही हो. इससे पहले भी प्रदेश में राजनीतिक यात्राएं निकाली जाती रही हैं. प्रदेश में सबसे पहले बड़े स्तर पर साल 2002 में राजस्थान में वसुंधरा राजे ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूरे राज्य में परिवर्तन यात्रा निकाली थी, जिसका असर यह हुआ कि 2003 में भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ ही नहीं बल्कि बड़ी जीत के साथ सरकार बनाई. इसके बाद फिर 2013 में कांग्रेस की गहलोत सरकार के खिलाफ वसुंधरा राजे ने सुराज संकल्प यात्रा निकाली, जिसका भी बड़ा असर हुआ और प्रदेश में बड़े बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी.

Rally in Rajasthan
एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा नेता...

कांग्रेस ने भी सत्ता में रहते हुए 2013 में मुख्यमंत्री गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. चंद्रभान के नेतृत्व में सन्देश यात्रा निकाली थी, लेकिन जब दिसंबर-2013 में चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 2017 में सचिन पायलट ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद किसान न्याय पद यात्रा निकाली थी. हालांकि, ये यात्रा पूरे प्रदेश भर में नहीं बल्कि कोटा संभाग में निकाली गई थी, जिसका सकारात्मक असर दिखा और 2018 में हाड़ौती संभाग में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की.

स्थानीय दलों ने निभाई 'परंपरा' : राजस्थान की राजनीति में यात्राओं का महत्व इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि जब-जब भी किसी दल ने बड़े स्तर पर यात्रा निकाली तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आए. हालांकि, यात्राओं का इतिहास बीजेपी के इर्द गिर्द ही रहा है. बाकी राजनीतक दलों को यात्राओं का लाभ नहीं मिला, फिर चाहे भारतीय जनता पार्टी को छोड़ अपनी अलग से पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी हों या फिर किरोड़ी लाल मीणा. दोनों ही नेताओं ने बीजेपी का दामन छोड़ अपनी-अपनी पार्टी बनाई और प्रदेश भर में चुनावी यात्रा भी निकाली, लेकिन न घनश्याम तिवाड़ी की भारत वाहिनी पार्टी को जन समर्थन मिला और न किरोड़ी लाल मीणा की राष्ट्रीय जनता पार्टी कोई खास असर दिखाई पाई.

हालांकि, किरोड़ी लाल मीणा ने प्रदेश भर में जो यात्रा निकाली, उसका कुछ असर हुआ और राजपा को 2013 के विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर जीत मिली. वहीं, भाजपा से अलग होकर भारत वाहिनी पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी ने भी यात्रा निकाली, लेकिन उन्हें एक भी विधानसभा सीट पर सफलता नहीं मिली. बाद में दोनों नेता किरोड़ी लाल मीणा और घनश्याम तिवाड़ी ने फिर से भाजपा का दामन थाम लिया.

राजनीतिक यात्राओं का मकसद : प्रदेश में निकाली जाने वाले राजनीतिक यात्राओं को लेकर वरिष्ठ पत्रकार श्यामसुंदर शर्मा बताते हैं कि राजस्थान में राजनीतिक यात्राओं का सिलसिला पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की 2003 की परिवर्तन यात्रा के बाद से शरू हुआ था. इसके बाद कांग्रेस के साथ अन्य राजनीतक दलों और व्यक्तिगत नेताओं ने भी यात्रा निकालने का ट्रेंड अपनाया था. किसी बड़े चुनाव से ठीक पहले अगर राजनीतिक दलों को चुनावी यात्राओं की याद आती है, तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है.

पार्टियों को लगता है कि बड़े पैमाने पर यात्राएं करने से लोगों में जागरूकता फैलेगी. लोगों के बीच में जाकर उनसे सीधा जुड़ाव बनाने का ये बड़ा माध्यम है और चुनाव में इन सबका फायदा मिलेगा. इन यात्राओं के जरिए पार्टियों को मतदाताओं के मन-मिजाज को टटोलने में मदद मिलती है. इसके साथ ग्राउंड लेवल पर आम जनता की मूलभूत समस्याओं तक भी आसानी जाया जा सकता है. ये एक जरिया है, जनता के दिलों तक असर बनाने का.

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