जयपुर. राजधानी जयपुर में नशाखोरी बढ़ने के साथ ही नशे की सामग्री की डिमांड बढ़ी तो तस्करी का ग्राफ भी बढ़ा है. ऐसे मामलों में पुलिस ने सख्ती दिखाई तो नशे के सौदागरों ने तस्करी का ट्रेंड बदल लिया. पुलिस कमिश्नरेट की एएसपी (संगठित अपराध) रानू शर्मा के अनुसार पहले अन्य राज्यों से नशे की सामग्री की बड़ी खेप एक साथ जयपुर में मंगवाकर, यहां से सभी जगहों पर इसकी सप्लाई की जा रही थी, लेकिन अब मादक पदार्थों के तस्कर राजधानी के आसपास के शहरों और कस्बों को अपना टारगेट बना रहे हैं.
ये है नया ट्रेंड : पुलिस कमिश्नरेट की एएसपी (संगठित अपराध) रानू शर्मा ने बताया कि राजधानी में पुलिस की बढ़ती सख्ती और पकड़े जाने के डर से नशे के सामाग्री की बड़ी खेप नहीं लाई जाती है. आसपास के शहरों में ठिकाने बनाकर माल रखा जाता है और वहां से डिमांड के हिसाब से सप्लाई के लिए कम मात्रा में नशे की खेप लाई जाती है.
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थोड़ी मात्रा में करते हैं सप्लाई : उन्होंने बताया कि इसके पीछे स्ट्रेटेजी यह है कि कभी पुलिस तस्करों तक पहुंच भी जाए तो बड़ी खेप बच जाती है और पुलिस के हाथ कम माल लग पाता है. आसपास के शहरों और कस्बों से थोड़ी मात्रा में बाइक या अन्य वाहनों से नशे की खेप पहुंचाई जा रही है, लेकिन हमारी कार्रवाई लगातार जारी है. इससे नशे की तस्करी के मामलों में कमी आई है. अभी भी इस दिशा में काफी काम किया जाना बाकी है.
युवाओं को इस जहर से बचाना प्राथमिकता : राजधानी में युवाओं में नशाखोरी का चलन बढ़ रहा है. खास तौर पर स्कूल और कॉलेज के स्टूडेंट्स नशे की लत के ज्यादा शिकार हो रहे हैं. ऐसे में युवाओं को नशाखोरी की लत से बचाने पर पुलिस का विशेष ध्यान है और इसी मकसद से राजधानी में नशे की तस्करी और तस्करों के खिलाफ 2019 में ऑपरेशन क्लीन स्वीप शुरू किया गया था. यह अभियान निरंतर जारी है और आमतौर पर हर दिन जयपुर में दो-तीन कार्रवाइयां हो रही हैं.
दो हजार से ज्यादा तस्कर दबोचे : एएसपी रानू शर्मा का कहना है कि ऑपरेशन क्लीन स्वीप के तहत अब तक जयपुर में 1680 मुकदमे दर्ज किए गए हैं. इस अभियान में 2,112 तस्कर और पैडलर्स को गिरफ्तार किया जा चुका है, जबकि 1.85 करोड़ रुपए और 350 से ज्यादा गाड़ियां जब्त की जा चुकी हैं. इनमें 108 लग्जरी कारें और 225 मोटर साइकिल हैं.
कोडवर्ड में बेचते हैं, स्कोर पॉइंट्स पर बिकता है नशा : पुलिस की पड़ताल में सामने आया है कि राजधानी में अपने टारगेट को नशे की पुड़िया बेचने के लिए पैडलर्स कोडवर्ड का प्रयोग करते हैं. कोडवर्ड में नशे को स्कोर कहते हैं और जहां नशे का सामान बिकता है, उसे स्कोर पॉइंट कहा जाता है. यह तरकीब पुलिस को चकमा देने और बचने के लिए अपनाई जाती है. खास तौर पर शिक्षण संस्थाओं के आसपास नशे के तस्करों और पैडलर्स की गतिविधियां ज्यादा देखी जा सकती हैं.
छोटी सी पुड़िया पर डबल मुनाफा : एएसपी रानू शर्मा का कहना है कि बड़े तस्कर ओडिशा, बंगाल, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों से सस्ते भाव में गांजा लाकर जयपुर सहित अन्य इलाकों में छोटे तस्करों को 8 हजार रुपए प्रति किलो के भाव में बेचते हैं. ये लोग इनकी 50-100 ग्राम की पुड़िया बनाकर बेचते हैं. इस पुड़िया की ये मनमानी कीमत वसूल करते हैं. इससे इन्हें करीब दो गुना तक मुनाफा होता है. गांजे का चलन आजकल कॉलेज और स्कूली बच्चों में भी तेजी से बढ़ रहा है, जबकि स्मैक का चलन मजदूर वर्ग और अपराधी किस्म के लोगों के बीच ज्यादा है.